Search
  • Noida, Uttar Pradesh,Email- masakalii.lifestyle@gmail.com
  • Mon - Sat 10.00 - 22.00

उस दिन समझ आ गया कि यह छोटा सा शब्द ‘सब्र’ अंदर से कितना गहरा है!

Small Kid

एक छोटे बच्चे ने बहुत बड़ा सवाल किया आज, जिसका जवाब तो था मेरे पास बस मुश्किल यह थी कि उसे कैसे समझाऊं?

खैर! उसे तो उसके उम्र के हिसाब से जवाब देकर मैंने अभी के लिए संतुष्ट कर दिया और आगे के लिए वक्त पर छोड़ दिया। मैंने उसे कहा कि जब सुबह पापा ऑफिस जाते हैं और तुम उनके साथ जाने की जिद करते हो, तब वह तुम्हें अक्सर कहते हैं कि मैं शाम को तुम्हारे लिए चीज लाऊंगा, फिर तुम सुबह से शाम तक जिस तरह से उनकी राह देखते हो उसी को सब्र कहते हैं।

इससे ज्यादा और क्या कहती, क्योंकि उस छोटे बच्चे के लिए अभी इंतजार और सब्र जैसे भारी शब्दों की एक ही परिभाषा है। जैसे-जैसे बड़ा होगा अपने आप दोनों शब्दों को अलग कर पाएगा, सही अर्थ समझ पाएगा और सबसे अहम कि इनमें फर्क महसूस कर पाएगा।।

ठीक वैसे ही जैसे मैंने समझा। उस छोटे बच्चे की ही उम्र में मैंने भी किसी से यही सवाल किया था कि सब्र क्या होता है? लेकिन मुझे इसका जवाब देने वाला शख्स शायद यही चाहता था कि मैं जल्द ही समझ लूं कि सब्र दुनिया की कितनी बड़ी ताकत है। इसलिए उसने बिना छुपाए मुझे बताया कि जब तुम्हारी आंखें आंसुओं से भरी हो और दिल इस बात की गवाही दे रहा हो कि जो रब करता है वही बेहतर होता है।

इतने पर भी जब मैंने ना समझने जाने की बात कही तो मुझे समझाया गया कि जब तुम्हारी मां हर त्यौहार पर तुम्हें नए कपड़े दिला देती है और खुद उसी पुरानी साड़ी में त्यौहार मनाती है तो उसे सब्र कहते हैं। जब तुम्हारे पापा तुम्हें खिला कर खुद भूखे सो जाते हैं, तो वो सब्र हैं। जब गलती तुम्हारी ना हो लेकिन तुम्हारे पास अपनी सफाई में कुछ ना हो तुम्हारी आंखें आंसुओं से भरी हों और तुम आसमान की तरफ देख रहे हो, तो वह सब्र है।

उस दिन सच में समझ आ गया कि यह छोटा सा शब्द अंदर से कितना गहरा है, कितनी खामोशियों, कितनी सिसकियों कितनी घुटन को अपने अंदर समेटे हुए हैं। और फिर जैसे-जैसे बड़ी हुई, चीजें और साफ होती गई कि सब्र करना एक बहुत साहसी काम है। इसी क्रम में एक दिन एक बच्चे को देखा जो हलवाई की दुकान पर काम करता था, और सच कहूं यह कहने की हिम्मत नहीं है कि वह कितना सब्र करता है। मिठाई उसके सामने है पर वह खा नहीं सकता।

वह बूढ़े अंकल जो 80 की उम्र में रोज ठंड में ठिठुरते हुए ठेला लगाते हैं, कितना सब्र हैं उनमें वरना, इस उम्र में तो दिल और शरीर दोनों हार जाते हैं। एक औरत जिसके बच्चे हैं और उसका पति रोज शराब पीकर उसे मारता है, अपने बच्चों के लिए वह सब बर्दाश्त करती है। और सब्र का हाथ थामे अपने अच्छे दिनों की प्रतीक्षा में है।।

यह सब देखकर एक चीज और ज्यादा साफ हो गई कि सब्र शब्द भले ही खामोशियों, सिसकियों और दर्दों से भरा है लेकिन यह एक अंतिम छोर वाला सकारात्मक शब्द है। जिसके साथ जो भी इंसान जीना शुरू करता है, वह सचमुच जीने लगता है। अक्सर हम सुनते हैं कि ‘सब्र कर तेरा वक्त भी आएगा’ मतलब भविष्य में यह शब्द तुम्हारे लिए कुछ अच्छा लेकर आएगा। दूसरे शब्दों में कहूं तो सब्र वह कड़ी है जिसके सहारे हम अपनी जिंदगी के अंधेरों की दलदल से बाहर आ जाते हैं । मैंने सब्र को और सब्र करने वालों को बहुत करीब से महसूस किया और समझा है, लेकिन मैं फिर भी उस बच्चे को नहीं समझा पाई, क्योंकि यह समय उसकी जिंदगी को जीने का है ना कि जिंदगी को समझने का। और वैसे भी बड़ा होने दो, यह दुनिया इतनी जालिम है उसे खुद बा खुद सिखा देगी कि सब्र किसे कहते हैं?

फोटो सौजन्य- गूगल

Author