Durga Puja: पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा विश्व विख्यात है। हर वर्ष पूरी दुनिया कई देशों से लोग बंगाल की दुर्गा पूजा का दर्शन करने आते हैं। आज वहां भव्य मंडप, रोशनी से चकाचौंध मां दुर्गा की प्रतिमा होती है पर क्या आप जानते हैं कि बंगाल की यह भव्य दुर्गापूजा कब शुरू हुई ? किसने पहली बार दुर्गा पूजा की थी? आखिर दुर्गा पूजा करने का कारण क्या था? सनातन धर्मानुसार इतने देवताओं के होने के बाद 10 भुजा वाली मां दुर्गा की पूजा क्यों? ऐसे ही कई सवाल लोगों के मन में उठते हैं तो चलिए बताते हैं बंगाल की दुर्गा पूजा का शानदार इतिहास।
इतिहास के पन्नों पर बंगाल के दुर्गा पूजा के पीछे की रोचक कहानी-
बंगाल के इतिहास के पन्नों को पलटें तो हमें मालूम चलता है कि लगभग 16वीं शताब्दी के आखिर में 1576 ई में पहली बार दुर्गापूजा हुई थी। उस समय बंगाल अविभाजित था जो वर्तमान समय में बांग्लादेश है। इसी बांग्लादेश के ताहिरपुर में एक राजा कंसनारायण हुआ करते थे। कहा जाता है कि 1576 ई में राजा कंस नारायण ने अपने गांव में देवी दुर्गा की पूजा की शुरुआत की थी। कुछ और विद्वानों के मुताबिक मनुसंहिता के टीकाकार कुलुकभट्ट के पिता उदयनारायण ने सबसे पहले दुर्गा पूजा की शुरुआत की। उसके बाद उनके पोते कंसनारायण ने की थी। इधर कोलकाता में दुर्गापूजा पहली बार 1610 ईस्वी में कलकत्ता में बड़िशा (बेहला साखेर का बाजार क्षेत्र) के राय चौधरी परिवार के आठचाला मंडप में आयोजित की गई थी। तब कोलकाता शहर नहीं था। तब कोलकाता एक गांव था जिसका नाम था ‘कोलिकाता’।
अश्वमेघ यज्ञ का विकल्प बनी दुर्गा पूजा
विवेकानंद विश्वविद्यालय में संस्कृत और दर्शन के प्रोफेसर राकेश दास ने बताया कि राजा कंसनारायण ने अपनी प्रजा की समृद्धि के लिए और अपने राज्य विस्तार के लिए अश्वमेघ यज्ञ की कामना की थी। उन्होंने यह इस बात की चर्चा अपने कुल पुरोहितों से की। ऐसा कहा जाता है कि अश्वमेघ यज्ञ की बात सुनकर राजा कंस नारायण के पुरोहितों ने कहा कि अश्वमेघ यज्ञ कलियुग में नहीं किया जा सकता। इसे भगवान राम ने सतयुग में किया था पर अब कलियुग करने का कोई फल नहीं है।
इस काल में अश्वमेघ यज्ञ की जगह दुर्गापूजा की जा सकती है। तब पुरोहितों ने उन्हें दुर्गापूजा महात्मय बारे में बताया। पुरोहितों ने बताया कि कलियुग में शक्ति की देवी महिषासुरमर्दिनी मां दुर्गा की पूजा करें। मां दुर्गा सभी को सुख समृद्धि, ज्ञान और शाक्ति सब प्रदान करती हैं। इसी के बाद राजा कंसनारायण ने धूमधाम से मां दुर्गा की पूजा की। तब से आज तक बंगाल में दुर्गापूजा का सिलसिला चल पड़ा।
देवी भागवतपुराण में है दुर्गापूजा का उल्लेख
इतिहास के अनुसार राजा कंसनारायण की पूजा के पहले दुर्गापूजा की व्याख्या देवी भागवतपुराण और दुर्गा सप्तशती में मिलती है। दुर्गा सप्तशती और देवी भागवतपुराण में शरद ऋतु में होने वाली दुर्गापूजा का वर्णन है। देवी भागवतपुराण में इसका भी जिक्र है कि भगवान श्रीराम ने लंका जाने से पहले शक्ति के लिए देवी मां दुर्गा की पूजा की थी। देवी भागवत पुराण की रचना की तिथि पर विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वानों का कहना है कि यह एक प्राचीन पुराण है और 6वीं शताब्दी ईस्वीं से पहले रचा गया था। कुछ के मुताबिक इस पुस्तक की रचना 9वीं और 14वीं शताब्दी के मध्य ईस्वीं बीच हुई थी।