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Category Archives: Health

Breast Cancer

Breast Cancer: अक्टूबर को ब्रेस्ट कैंसर के महीने के तौर पर भी जानते हैं। बताती चलूं कि ये कैंसर काफी खतरनाक होने के साथ-साथ जानलेवा भी होता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार वर्ष 2022 में दुनिया भर में इस कैंसर से तकरीबन 6,70,000 जानें गईं थीं। इनमें से 99 फीसदी से ज्यादा केस महिलाओं में पाए गए थे। अमेरिकन कैंसर सोसाइटी के एक अध्ययन में पता चला है कि साल 2012 से 2021 तक 50 से कम उम्र की महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले में सलाना 1.4 प्रतिशत का इजाफा दर्ज हुआ है। एक स्टडी के मुताबिक अमेरिका में 20 साल की लड़कियां भी अब इस कैंसर जैसी बीमारी से ग्रसित हो रही हैं। आइये जानते भारत कहां खड़ा है-

बीस साल की लड़कियों में भी Breast Cancer

Breast Cancer

JAMA नेटवर्क ओपन में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक अमेरिका में 20 से 49 वर्ष की महिलाओं में तेजी से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ रहा है। शोध करने वाली टीम ने साल 2000 से 2019 तक ब्रेसट कैंसर से पीड़ित 2,17,000 से अधिक अमेरिकी महिलाओं के डेटा एनालिसिस किया। साल 2000 में 20 से 49 साल की महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर की शिकायत हर एक लाख लोगों पर करीब 64 मामले दर्ज किए गए। अगले 16 सालों में यह रेट बढ़कर सालाना करीब 0.24 फीसदी हो गई। साल 2016 तक हर एक लाख पर 66 केस ब्रेस्ट कैंसर के मिले पर इसके बाद इसमें काफी ज्यादा तेजी आ गई। अचानक से बढकर यह रेट 3.76 फीसदी सालाना हो गई। साल 2019 तक यानी सिर्फ 03 साल में ही यह रेट हर 01 लाख पर 74 तक पहुंच गई।

अश्वेत महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा ज्यादा

सेंट लुइस में वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए एक स्टडी के अनुसार पिछले दो दशकों में 50 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ा है। डेटा का एक दिलचस्प पहलू ये भी सामने आया है कि अश्वेत महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम काफी ज्यादा है। खासकर 20 से 29 साल की अश्वेत महिलाओं में बाकियों की तुलना में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा 53 फीसदी अधिक है।

ब्रेस्ट कैंसर में भारत

Breast Cancer

वर्ष 2018 में भारत में ब्रेस्ट कैंसर के कुल 1,62,468 केस सामने आए थे। इनमें से 87,090 महिला पीड़ितों की मौत हो गई। भारत में ब्रेस्ट कैंसर से बचने का रेट 60 फीसदी है, जो अमेरिका से 20 प्रतिशत कम है। देश में ब्रेस्ट कैंसर शहरों में ही नहीं ग्रामीण इलाकों में भी तेजी से बढ़ रहे हैं। भारत में भी कम उम्र की महिलाएं कैंसर जैसी घातक बीमारी की चपेट में आ रही हैं। इलाज में देरी के कारण मौत का खतरा भी बढ़ रहा है। इस कैंसर के बढ़ने की सबसे बड़ी वजह में तंबाकू, शराब, मोटापा, गलत लाइफस्टाइल और पॉल्यूशन है।

Heart Blockage: Abnormal changes in the body mean the risk of heart blockage

Heart Blockage: गलत खाने-पीने की आदतें शरीर में कोलेस्ट्रोल के लेवल को काफी बढ़ा देती हैं। इससे आर्टरीज में प्लाक जैसे पदार्थ जमा होने लगते हैं, जो हार्ट में ब्लड के दबाव को कम कर देता है। इससे शरीर को हार्ट संबंधी प्रोब्लम्स का सामना करना पड़ता है। गलत खानपान के अलावा नींद की कमी और दिनों दिन बढ़ रहा स्ट्रेस भी हार्ट ब्लॉकेज की वजह बनने लगता है। आर्टरीज में बढ़ने वाली ब्लॉकेज को कम करने के लिए कुछ खास बातों का ख्याल रखना जरूरी है लेकिन उससे पहले जानते हैं शरीर में दिखने वाले वो साइन जो हार्ट ब्लॉकेज की ओर इशारा करते हैं।

कैसे होता है हार्ट ब्लॉकेज

If you get such signs, then understand that heart problems have started

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक जब प्लाक रूपी चिपचिपा पदार्थ हार्ट को ब्लड पहुंचाने वाली आर्टरीज में जमा हो जाता है तो उस स्थिति को हार्ट ब्लॉकेज कहा जाता है। ये प्लाक अनहेल्दी फैट्स, कॉलेस्ट्रॉल, सेलुलर वेस्ट प्रॉडक्ट्स, कैल्शियम और फाइब्रिन नाम के क्लॉटिंग सबस्टांस से बना होता है। इस बारे में बातचीत करते हुए इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट का कहना है कि कोरोनरी आर्टरीज में ब्लॉकेज के कारण ब्लड पूरी तरह से हार्ट तक नहीं पहुंच पाता है। शरीर में किसी भी तरह का असामान्य बदलाव महसूस होने पर फौरन डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज यानी सीएडी हार्ट डिजीज का सबसे आम वजह है। जब हार्ट में ब्लड की आपूर्ति करने वाली आर्टरीज़ समय के साथ संकुचित होने लगती हैं और बल्ड सप्लाई में बाधा आने लगती है। ये रुकावटें फैट्स के निर्माण के कारण बढ़ने लगती हैं। आर्टरीज़ में ब्लॉकेज से हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बना रहता है। इस्केमिक स्ट्रोक उस समस्या को कहते हैं, जब रक्त वाहिका में रूकावट आती है जो ब्रेन को ब्लड और ऑक्सीजन की सप्लाई करती है।

आइये जानते हैं हार्ट ब्लॉकेज़ के क्या हैं संकेत-

1. थकान और कमज़ोरी का अनुभव

नेशनल हार्ट, लंग एंड ब्लड इंस्टीट्यूट के मुताबिक आर्टरीज़ में ब्लॉकेज के कारण ब्लड फ्लो की अनियमितता बढ़ने लगती है। इससे ऑक्सीजन का प्रवाह भी प्रभावित होने लगता है। ऐसे में सिरदर्द, थकान और काम करने में असमर्थता का सामना करना पड़ता है। किसी कार्य को करने के दौरान ये थकान तेज़ी से बढ़ने लगती है।

2. सीने में दर्द या एंजाइना

WHO warning: Long working hours increase the risk of heart disease and heart attack

सीने में उठने वाला दर्द और किसी भी प्रकार की असुविधा धमनियों में जमने वाले प्लॉक का संकेत देती हैं। ये दर्द छाती से होता हुआ बाहों के नीचे, गर्दन या जबड़े तक पहुंच जाता हैं। इसके कारण सीने में जकड़न महसूस होने लगती है। ये समस्या कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक बनी रहती है। ऐसे में स्वैटिंग और सांस फूलने का सामना करना पड़ता है।

3. सांस लेने में दिक्कत

हार्वर्ड हेल्थ के मुताबिक सीढ़िया चढ़ने या कोई अन्य कार्य करने के दौरान सांस फूलने की समस्या का सामना करना पड़ता है। ये समस्या हृदय रोग को दर्शाती है। इससे एंजाइना, हार्ट अटैक और हार्टफेलियर का खतरा बढ़ने लगता है। दरअसल, जब हार्ट को ब्लड पंप करने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन की प्राप्ति नहीं होती है, तो उस समय सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में शरीर तेज़ी से सांस लेने का प्रयास करता है।

4. पैरों के निचले हिस्से में सूजन

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की रिसर्च के अनुसार टांगों के निचले हिस्से में सूजन दिल की समस्या का एक मुख्य संकेत है। शरीर में रक्त का प्रवाह धीमा होने से पैरों की नसों में वापिस लौटने लगता है। इससे टिशूज़ में तरल पदार्थ का निर्माण होने लगता है। हार्ट डिजीज से ग्रस्त होने पर पैरों के अलावा पेट में भी सूजन हो सकती है, जिससे वेटगेन का सामना पड़ता है।

5. खांसी का बढ़ना

जब हृदय ब्लड को पूरी तरह से पंप नहीं कर पाता है, तो ऐसे में बॉडी में खासतौर से फेफड़ों में फ्लूइड बनने लगता है, जो म्यूकस की शक्ल में शरीर से बाहर निकलता है। इस तरह के म्यूकस का रंग गहरा होता है। इसके चलते बार-बार खांसी का सामना करना पड़ता है।

हार्ट ब्लॉकेज से बचने के लिए इन सुझावों का करें पालन

1. स्वस्थ आहार लें

आहार में विटामिन, मिनरल और फाइबर की भरपूर मात्रा लें। इससे कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित बनाए रखने में मदद मिलती है। इसके अलावा नट्स और सीड्स का सेवन भी फायदा पहुंचाते हैं। साथ ही मछली का सेवन करने से शरीर को ओमेगा-3 फैटी एसिड की प्राप्ति होती है। इससे ब्लॉकेज को रेगुलेट किया जा सकता है।

2. स्मोकिंग करने से बचें

नियमित रूप से स्मोकिंग करने से ब्लड वेसल्स डैमेज होने का खतरा बढ़ जाता है और प्लाक बिल्डअप होने लगता है। ऐसे में शरीर में ब्लड का प्रवाह प्रभावित होता है। हृदय रोगों से बचने के लिए स्मोकिंग से दूरी बनाकर रखें।

3. रेगुलर एक्सरसाइज़ करें

किसी फिटनेस एक्सपर्ट की मदद से हृदय रोगों से बचने के लिए व्यायाम के अलावा मेडिटेशन करें। इससे शरीर में बढ़ने वाले तनाव और वसा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। दिनभर में कुछ देर वॉक करने से शरीर को फायदा मिलता है और ब्लॉकेज से राहत मिलती है।

फोटो सौजन्य- गूगल

Can you become a mother even after menopause

IVF: किसी भी फिमेल के लिए एक मां बनने की राह काफी व्यक्तिगत और अक्सर टफ होता है। इसमें कई महिलाओं को गर्भधारण के लिए ऐसे प्रोब्लम्स का सामना करना पड़ता है जिसके निदान के लिए मे़डिकल हेल्प की जरूरत पड़ सकती है। हाल के दिनों में प्रजनन से जुड़ी टेक्नोलॉजी में हुई प्रगति, विशेष रूप से इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF), उन महिलाओं के लिए आशा की किरण बनकर आई है, जो पहले यह मानती थीं कि मातृत्व उनकी पहुंच से काफी बाहर है।

अक्सर एक प्रश्न जो सामने आता है वह यह है कि क्या मेनोपॉज यानी रजोनिवृत्ति (मासिक चक्र का बंद होना) की अवस्था से गुजर रही महिलाएं सफलतापूर्वक IVF करवा सकती हैं और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं?

मेनोपॉज और प्रेगनेंसी के बीच संबंध

मेनोपॉज एक प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया है, जो किसी महिला के मासिक चक्र के अंत को दर्शाती है। यह आमतौर पर 45 से 55 साल की उम्र की होती है। हालांकि, यह ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि मेनोपॉज एक धीरे-धीरे होने वाली प्रक्रिया है, जो पेरिमेनोपॉज से शुरू होती है। इस दौरान हार्मोनल बदलाव शुरू होते हैं, जिससे मासिक चक्र अनियमित हो जाता है और अंततः माहवारी बंद हो जाती है।

पेरिमेनोपॉज है मेनोपॉज का फर्स्ट स्टेप

जो महिलाएं मेनोपॉज के शुरुआती चरण में होती हैं, जिसे आमतौर पर पेरिमेनोपॉज कहा जाता है।उनके लिए गर्भधारणा के लिए आईवीएफ एक व्यवहार्य विकल्प हो सकता है। इस समय के दौरान, भले ही अंडाशय में अंडाणुओं का नंबर (ओवेरियन रिजर्व) कम हो रहा हो, फिर भी हार्मोन की सक्रियता और अंडाणुओं की गुणवत्ता पर्याप्त हो सकती है, जिससे IVF के माध्यम से सफल गर्भधारणा हो सके। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अंडाणुओं की उपलब्धता होनी चाहिए, चाहे वह प्राकृतिक रूप से हो या दान किए गए अंडाणुओं के माध्यम से।

प्रारंभिक मेनोपॉज में आईवीएफ की सफलता

Can you become a mother even after menopause

स्टडी से पता चला है कि जो महिलाएं मेनोपॉज़ की प्रारंभिक अवस्था में होती हैं, उन्हें आईवीएफ उपचार के सफल परिणाम मिल सकते हैं। खासकर जब वे दान किए गए अंडाणुओं का उपयोग करती हैं। कई अध्ययनों में दिखाया गया है कि 50 साल से कम उम्र की महिलाएं जो प्रारंभिक मेनोपॉज में थीं, उनके गर्भधारणा की दर युवा महिलाओं के समान थीं, जब उन्होंने दान किए गए अंडाणुओं का उपयोग किया।

इस आयु वर्ग में आईवीएफ की सफलता दर आमतौर पर 40-50 फीसदी के आसपास होती है। यह दर्शाती है कि उम्र और मेनोपॉज की स्थिति किसी महिला के सफल गर्भधारणा में बाधा नहीं बनती।

अलावा इसके IVF तकनीकों में हुई प्रगति, जैसे प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग (PGT), ने स्वस्थ गर्भधारणा की संभावनाओं को काफी हद तक बढ़ा दिया है। यह तकनीक उन भ्रूणों का चयन करना सुगम बनाती है, जिनमें सफलता की संभावना सबसे ज्यादा होती है।

मेनोपॉज के बाद की चुनौतियां

हालांकि, जब एक महिला पूरी तरह से मेनोपॉज में प्रवेश कर जाती है, यानी मासिक धर्म पूरी तरह से बंद हो जाता है, तो स्थिति बदल जाती है। इस चरण में, अंडाशय अंडाणु बनाना पूरी तरह से बंद कर देते हैं, और शरीर में महत्वपूर्ण हार्मोनल बदलाव होते हैं, जिससे प्राकृतिक गर्भधारणा असंभव हो जाता है। जबकि आईवीएफ एक विकल्प बना रहता है, लेकिन यह लगभग पूरी तरह से दान किए गए अंडाणुओं पर निर्भर होता है।

अलावा इसके मेनोपॉज की अवस्था में पहुंच चुकी महिलाएं गर्भावस्था को पूर्ण अवधि तक ले जाने का प्रयास करते वक्त अतिरिक्त जोखिम और चुनौतियों का सामना करती हैं। इनमें गर्भकालीन मधुमेह, उच्च रक्तचाप, और अन्य गर्भावस्था से संबंधित जटिलताओं का ज्यादा खतरा शामिल है, जो ज़्यादा उम्र की महिलाओं में अधिक सामान्य होते हैं। इसके साथ ही, इस श्रेणी में आईवीएफ की सफलता दर भी काफी कम हो जाती है, जो लगभग 5-10 फीसदी तक गिर जाती है।

प्रारंभिक मेनोपॉज में सफल संतान प्रसव

इन चुनौतियों के बावजूद, यह बताना महत्वपूर्ण है कि मेनोपॉज के शुरुआती चरण में महिलाएं फिर भी आईवीएफ के माध्यम से सफलतापूर्वक संतान को जन्म दे सकती हैं। खासकर जब वे दान किए गए अंडाणुओं का उपयोग करती हैं। जिन महिलाओं का मासिक धर्म पूरी तरह से बंद नहीं हुआ था, उनमें सफलता की दर अधिक पाई गई, और कई मामलों में यह देखा गया कि गर्भधारणा सफल रहा और स्वस्थ संतान का जन्म हुआ।

हालांकि, जो महिलाएं पूरी तरह से मेनोपॉज में प्रवेश कर चुकी हैं, उनके लिए सफल प्रसव की संभावना काफी कम हो जाती है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रारंभिक हस्तक्षेप और प्रजनन विशेषज्ञ से परामर्श लेना कितना महत्वपूर्ण है।

गर्भधारण और गर्भावस्था के लिए मेनोपॉज़ कुछ चुनौतियां पेश करता है, लेकिन यह मातृत्व की संभावना को पूरी तरह से समाप्त नहीं करता। मेनोपॉज के शुरुआती चरण में प्रवेश करने वाली महिलाएं अभी भी आईवीएफ के सफल परिणाम प्राप्त कर सकती हैं, विशेष रूप से जब दान किए गए अंडाणुओं का उपयोग किया जाता है।

जरूरी बातें

एक बार जब मासिक धर्म पूरी तरह से बंद हो जाता है, तो सफल आईवीएफ और संतान प्रसव की संभावना काफी कम हो जाती है। जो महिलाएं मेनोपॉज के दौरान या बाद में आईवीएफ पर विचार कर रही हैं, उनके लिए यह आवश्यक है कि वे एक योग्य प्रजनन विशेषज्ञ से सलाह लें ताकि वे अपने विकल्पों और संबंधित जोखिमों को समझ सकें।

प्रजनन से जुड़ी टेक्नोलॉजी में हुई तरक्की कई महिलाओं के लिए एक नई उम्मीद है। लेकिन इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से किए गए इलाज तभी सफल हो पाते हैं जब यह प्रारंभिक अवस्था में किया जाए, उम्मीदें वास्तविक हों और व्यक्तिगत रूप से देखभाल उपलब्ध कराई जाए।

फाइल फोटो- गूगल

Breastfeeding

Breast Feeding को लेकर कुछ जरूरी बातें हमें मालूम नहीं होती, जिससे मां और शिशु दोनों को नुकसान होता है। मां का दूध बच्चे के लिए न्यूट्रीशन से भरा वो आहार है जो उसकी समूचे ग्रोथ में मददगार साबित होता है। ब्रेस्टफीडिंग मां और बच्चे दोनों की सेहत के लिए फायदेमंद है। वैसे तो शिशु के लिए पैदा होने के 06 माह तक ब्रेस्टफीडिंग की सलाह दी जाती है लेकिन कई बार गलत तरीके से फीडिंग मां को तो थका देती ही है साथ-साथ बच्चे को भी कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं।

ब्रेस्टफीडिंग के वक्त कुछ बातों का अमल करना जरूरी है ताकि मां और बच्चे का स्वास्थ्य बिल्कुल सही रहे। आइये जानते हैं ब्रेस्टफीडिंग के दौरान मां को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए-

ब्रेस्टफीडिंग क्यों है ज़रूरी-

breastfeeding

इस बारे में विशेषज्ञ की राय हैं कि ब्रेस्टफीडिंग मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए अहम है। मां के दूध से नवजात शिशु को सभी जरूरी पोषण मिल जाते हैं, जिससे बच्चे की ग्रोथ में मदद मिलती है। अलावा इसके शिशु को पर्याप्त ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा भी कम हो जाता है। पर ब्रेस्टफीडिंग के दौरान कुछ खास बातों का ख्याल रखना भी आवश्यक है।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक ब्रेस्ट मिल्क में इम्युनोग्लोबुलिन या एंटीबॉडी पाई जाती हैं। इससे मिलने वाला प्रोटीन बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करते हैं। अलावा इसके बच्चों में टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज़ का जोखिम भी कम हो जाता है। वहीं, ब्रेस्टफीडिंग करवाने से ब्रेस्ट और ओवरी कैंसर का खतरा भी कम हो जाता है।

ब्रेस्टफीडिंग कराते समय इन बातों का रखें ध्यान

1. बच्चे की जरूरत का रखें ध्यान

 

Breast feeding

बच्चे को जब भी भूख लगे उसे स्तनपान करवाएं। अपनी तरफ से समय निर्धारित करने का प्रयास न करें। बार-बार स्तनपान कराने से दूध पर्याप्त मात्रा में बनता है और बच्चे को पूरा पोषण मिल पाता है। साथ ही किसी तरह के ब्लॉकेज या थक्का बनने का खतरा भी नहीं रहता। अगर वर्किंग मॉम हैं, तो ब्रेस्ट पंपिंग के जरिये दूध निकालकर भी बच्चे को पिलाया जा सकता है। बच्चा जब बड़ा होने लगे, तब अचानक स्तनपान बंद न करें। फीडिंग धीरे-धीरे छुड़ाने से आपके शरीर को ढलने का समय मिल जाता है और किसी तरह की परेशानी नहीं होती है।

2. क्लीनिंग पर ध्यान देना जरूरी

फीडिंग के समय हाइजीन का ख्याल रखना सबसे महत्वपूर्ण है। ब्रेस्ट फीडिंग के दौरान रोज नहाना, कपड़ों की साफ सफाई और नियमित रूप से कपड़े बदलना जरूरी है। ब्रेस्ट फीडिंग के लिए कपड़े ढीले पहनें और उनकी बनावट ऐसी हो, जिससे बच्चे को आसानी से स्तनपान कराया जा सके। स्तनों पर बार-बार हाथ लगाने से बचें। हाथ लगाने से संक्रमण का खतरा रहता है। अगर स्तनों की सफाई के लिए वाइप्स का इस्तेमाल करती हैं, तो ध्यान रहे कि वाइप्स में किसी तरह के रसायन का प्रयोग न हुआ हो।

3. सही पोश्चर में कराएं ब्रेस्टफीडिंग

breastfeeding

कुछ महिलाएं जब बच्चा लेटा हुआ होता है, तभी स्तनपान करवाने लगती हैं। ये पोश्चर बच्चे के लिए सही नहीं है। प्रयास करें कि बच्चे को करवट कराते हुए या गोद में लेकर सही तरह से उसे अपने स्तनों के पास लाएं। इससे मां और बच्चे दोनों का पोश्चर सही रहता है। जिससे कई तरह की शारीरिक परेशानियों से बचा जा सकता है। बच्चे को बारी-बारी से दोनों स्तनों से स्तनपान कराएं।

4. स्वयं को हाइड्रेटेड रखें

वॉटर इनटेक का ध्यान ब्रेस्टफीडिंग के दौरान रखना आवश्यक है। इससे शरीर हाइड्रेट रहता है और दूध न आने की समस्या हल हो जाती है। स्तनपान के दौरान पानी, जूस, शेक्स, हेल्दी सूप और अन्य तरल पदार्थों का सेवन करे। इससे शरीर में मिनरल्स की कमी पूरी हो जाती है। अलावा इसके शरीर एक्टिव और हेल्दी रहता है।

5. अपने खानपान का रखें ख्याल

हेल्दी और संतुलित आहार करना हमेशा जरूरी होता है। विशेषरूप से स्तनपान के समय यह और भी आवश्यक हो जाता है, क्योंकि मां से ही बच्चे को पोषण मिलता है। खानपान पर ध्यान देते हुए यह समझें कि अगर आपके कुछ खाने से बच्चे को परेशानी होती है, तो ऐसी चीजों से दूर रहें। बहुत भारी और मुश्किल से पचने वाले आहार की तुलना में सुपाच्य आहार ग्रहण करना सही रहता है। पानी भी पर्याप्त मात्रा में पीना चाहिए।

फोटो सौजन्य – गूगल

Do we have to face the risk of UTI after sex?

UTI मतलब यूरिनरी ट्रैक इन्फेक्शन एक काफी आम समस्या है जिसका सामना महिलाएं अपने लाइफ में एक बार जरूर करती हैं। यूरिनरी ट्रैक में होने वाले इस संक्रमण के पीछे हानिकारक बैक्टीरिया जिम्मेदार होते हैं, जो कई कारणों से आपके यूरिनरी ट्रैक में प्रवेश करते हैं। इन्हीं में से एक कारण है ‘SEX’। महिलाएं अक्सर ये सवाल पूछा करती हैं कि आखिर सेक्स के वक्त UTI होने का क्या कारण ? आज हेल्थ शॉट्स आपके इसी प्रश्न का जवाब लेकर आएं हैं। जानेंगे SEX और UTI के बीच क्या संबंध है।

एक्सपर्ट के मुताबिक सेक्स से होने वाले UTI के कुछ सामान्य कारण बताएं हैं। साथ ही उन्होंने कुछ बचाव के नुक्से भी बताएं हैं, जिन्हें याद रख सेक्स के बाद होने वाले UTI के खतरे को कम कर सकती हैं।

समझें सेक्स से यूटीआई होने की वजह

Do we have to face the risk of UTI after sex?

UTI पैदा करने वाले बैक्टीरिया एनस के आस-पास के क्षेत्र में रहते हैं। इंटरकोर्स ही नहीं बल्कि कोई भी अन्य सेक्सुअल एक्टिविटी बैक्टीरिया को यूरिनरी ट्रैक के करीब और ऊपर धकेल सकती है और यूटीआई का कारण बन सकती है। पुरुष और महिला दोनों को सेक्स से यूटीआई हो सकता है, महिलाओं में पोस्ट-कोइटल यूटीआई विकसित होने की संभावना अधिक होती है। डेटा की मानें तो यूटीआई के लक्षण अक्सर सेक्स करने के लगभग 02 दिनों के बाद शुरू होते हैं।

ज्यादातर यूटीआई गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (GI) ट्रैक से बैक्टीरिया के कारण होते हैं। 80 फीसदी से ज़्यादा यूटीआई एस्चेरिचिया कोली (ई कोलाई) बैक्टीरिया के कारण होते हैं। ये कीटाणु आंतों के अंदर सामान्य और आम होते हैं, जहां वे आपको बीमार किए बिना पाचन में मदद करते हैं।

1. सेक्सुअल इंटरकोर्स:

सेक्सुअल इंटरकोर्स का मोशन एनस के आस-पास रहने वाले बैक्टीरिया को मूत्रमार्ग की ओर धकेल सकती है। इससे बैक्टीरिया के शरीर में प्रवेश करने और संक्रमण पैदा करने का जोखिम बढ़ जाता है। सेक्स से इंटिमेट एरिया में जलन हो सकता है। यह जलन संक्रमण के जोखिम को बढ़ा देती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पेनेट्रेटिव सेक्स यूटीआई का एकमात्र कारण नहीं है। ओरल और मैनुअल सेक्स भी वेजाइनल ओपनिंग में हानिकारक बैक्टीरिया के प्रवेश का कारण बन सकता है, जिससे संक्रमण हो सकता है।

2. अनसेफ सेक्स:

कई बार लोग बिना प्रोटेक्शन के नियमित सेक्स करते हैं, जिसकी वजह से भी UTI का खतरा बढ़ जाता है। अगर आप बिना प्रोटेक्शन के सेक्स कर रही हैं, तो हाइजीन के प्रति बरती गई छोटी सी भी लापरवाही आपको UTI का शिकार बना सकती है। इंटरकोर्स के दौरान एक दूसरे के इंटिमेट एरिया पर मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया एक्सचेंज हो सकते हैं, जिसकी वजह से UTI हो जता है।

3. एनल सेक्स:

एनल सेक्स के दौरान एनस में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया आपके जेनिटल में पास हो सकते हैं, जिसकी वजह से यूरिनरी ट्रैक्ट इनफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। यदि कोई आदमी एनल सेक्स कर रहा है, तो उनमें इसका खतरा अधिक होता है।

4. बर्थ कंट्रोल:

कुछ गर्भनिरोधक, जैसे कि डायाफ्राम और स्पर्मिसाइड लुब्रिकेंट्स, यूटीआई के जोखिम को बढ़ा देते हैं। डायाफ्राम यूरिनरी ट्रैक्ट की ओर पुश होता है, जिससे इसके ब्लैडर में फंसने की संभावना अधिक होती है। जब ऐसा होता है, तो बैक्टीरिया बढ़ सकते हैं, जिससे संक्रमण हो सकता है। शुक्राणुनाशक (अक्सर लुब्रिकेंट और कंडोम में पाए जाते हैं) इंटिमेट एरिया के बैक्टिरियल बैलेंस को बदल सकते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

सेक्स के बाद UTI के खतरे को कम करने के कुछ प्रभावी तरीके

Do we have to face the risk of UTI after sex?

सेक्स के पहले और सेक्स के बाद यूरिन पास करना बहुत जरूरी है। इससे बैक्टीरिया यूरिनरी ट्रैक्ट से बाहर निकल आता है और उन्हें संक्रमण फैलने का समय नहीं मिलता।

सेक्सुअल इंटरकोर्स के दौरान प्रोटेक्शन यानी कि मेल और फीमेल कंडोम का इस्तेमाल करें। ताकि एक दूसरे के स्किन पर मौजूद बैक्टीरिया जेनिटल में ट्रांसफर हो कर आपको संक्रमंत न कर सके।

सेक्स से पहले और बाद में हाइजीन का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। अपने इंटिमेट एरिया को आगे से पीछे की ओर अच्छी तरह से क्लीन करें।

अपने जन्म नियंत्रण पर ध्यान से विचार करें। यदि आप डायाफ्राम या शुक्राणुनाशक का उपयोग करती हैं, तो ये स्वस्थ बैक्टीरिया को मार सकते हैं, जो कीटाणुओं को नियंत्रित रखते हैं। इसलिए इनके इस्तेमाल से बचें।

लुब्रिकेंट का उपयोग करें, सेक्सुअल इंटरकोर्स के दौरान लगातार फ्रिक्शन होने की वजह से इंटिमेट एरिया के आसपास जलन हो सकती है। वहीं कई बार कट लगने की वजह से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, लुब्रिकेंट आपके इंटरकोर्स को बेहद स्मूद बना देता है।

UTI के रिस्क को अवॉइड करने के लिए इन बातों का भी रखें ख्याल

इंटिमेट एरिया पर डौश, पाउडर या स्प्रे का उपयोग न करें। इससे हेल्दी बैक्टीरिया का प्रभाव कम हो जाता है जिससे की हानिकारक बैक्टीरिया हावी हो कर संक्रमण का कारण बन सकते हैं।

स्टॉल पास करने के बाद अपने एनस को अच्छी तरह से साफ करें, क्योंकि सबसे ज्यादा हानिकारक बैक्टीरिया इसी एरिया में होते हैं, जिनकी वजह से इंटरकोर्स के दौरान संक्रमण के ट्रांसफर होने का खतरा बढ़ जाता है।

नियमित रूप से प्रोबायोटिक जैसे की दही, कंबूजा, अचार आदि का सेवन करें। इससे UTI का खतरा कम होता है, अलावा इसके क्रैनबेरी जूस भी बचाव में आपकी मदद कर सकती है।

This is why people who take vegan diet have less risk of cancer

VEGAN DIET: आज कई लोग जैसे कि स्पोर्ट्स पर्सन, एथलीट और सेलिब्रिटी हैं जो वीगन डाइट यानी प्लांट बेस्ड डाइट लेटे हैं। वहीं, प्लांट बेस्ड डाइट के मद्देनजर कई स्टडी किए गए जिसमें सामने आया है कि यह एक व्यक्ति के उम्र को बढ़ा देता है। क्या वाकई ऐसा मुमकिन है? क्या प्लांट बेस्ड डाइट एनिमल बेस्ड डाइट से ज्यादासुरक्षित है? आज यहां आपके सभी प्रश्नों के जवाब लेकर आए हैं। तो आइये जानते हैं, प्लांट बेस्ड डाइट और लांगेविटी को लेकर क्या कहती है स्टडी।

जानें प्लांट बेस्ड डाइट और लोंगेविटी को लेकर क्या कहती है स्टडी-

साल 2020 में दो अध्ययन किए गए और उसमें पाया गया कि प्लांट बेस्ड डाइट लेने से किसी भी इंसान की उम्र ज्यादा लंबी हो सकती है। हार्वर्ड और तेहरान विश्व विद्यालयों के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक स्टडी में पाया गया कि जिन लोगों ने प्लांट बेस्ड डायट से अपने प्रोटीन की जरूरतों को पूरा किया है, उसमें वक्त से पहले मौत का जोखिम 05 फीसदी कम होता है।

JAMA इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि रेड मीट और अंडे की जगह प्लांट बेस्ड प्रोटीन का सेवन करने वाले पुरुषों में समय से पहले मौत का जोखिम 24 फीसदी और महिलाओं में 21 फीसदी तक कम होता है।

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन द्वारा प्रकाशित अध्ययन के अनुसार प्लांट बेस्ड डाइट एंटीऑक्सीडेंट का एक बेहतरीन स्रोत है, जो आपकी बॉडी सेल्स को फ्री रेडिकल्स के प्रभाव से बचाता है और बॉडी इन्फ्लेमेशन को कम कर देता है। अलावा इसके इसमें फाइटोकेमिकल्स पाए जाते हैं, जिन में एंटी इन्फ्लेमेटरी और एंटी कैंसर प्रॉपर्टीज होती हैं और यह शरीर को इस तरह की बीमारियों से बचाते हैं।

जानें प्लांट बेस्ड डाइट के फायदे

This is why people who take vegan diet have less risk of cancer

मणिपाल हास्पिटल, गाज़ियाबाद में हेड ऑफ न्यूट्रीशन और डाइटेटिक्स डॉ अदिति शर्मा ने वेगन डायट यानी कि प्लांट बेस्ड डाइट फॉलो करने के कुछ महत्वपूर्ण फायदे बताएं हैं। डॉक्टर के अनुसार यह खुद को स्वस्थ एवं सुरक्षित रखने का एक अच्छा तरीका है।

1. वेट लॉस में होती है मदद

This is why people who take vegan diet have less risk of cancer

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार वीगन डाइट में कम फैट और अधिक फाइबर होता है। नट्स, पालक, केला आदि जैसे फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ खाने से आपको संतुष्टि प्राप्त होती है और आप कम खाती हैं।

2. ब्लड शुगर करता है कंट्रोल

विगन डाइट आपको ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। प्लांट बेस्ड डायट में अधिक साबुत अनाज, ताजी सब्जियां और अन्य खाद्य पदार्थ होते हैं, जो ग्लाइसेमिक इंडेक्स में कम रैंक करते हैं। इस प्रकार यह ग्लूकोज के स्तर को सामान्य रखने में आपकी मदद करता है। प्लांट बेस्ड डायट में सैचुरेटेड फैट भी कम होता है, जो इसे टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए आदर्श बनाता है।

3. CANCER के खतरे को करें कम

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मोटापा, गतिहीन जीवनशैली आदि जैसे कई जीवनशैली कारक किसी व्यक्ति को कुछ प्रकार के कैंसर, विशेष रूप से पेट, लिवर, पेनक्रियाज, पित्ताशय आदि के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकते हैं। अधिक फलियां और क्रूसिफेरस सब्जियां खाने और रेड मांस जैसे रिफाइंड खाद्य पदार्थों का सेवन कम करने से कैंसर होने का खतरा काफी हद तक कम हो सकता है।

4. मेटाबॉलिज्म को बनाए बेहतर

प्लांट बेस्ड डाइट हमारे आंत में बैक्टीरिया/माइक्रोबायोम को बढ़ावा देता है। इस प्रकार हेल्दी बैक्टीरिया बेहतर पाचन में मदद करते हैं, साथ ही साथ मेटाबॉलिज्म भी बेहतर होता है। इससे पाचन संबंधी समस्याओं का खतरा कम हो जाता है। साथ ही साथ वेट मैनेजमेंट में भी मदन मिलती है।

5.हेल्दी हृदय को बढ़ावा दें

बता दें कि यह डाइट कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और साथ ही ब्लड शुगर और पुरानी सूजन को भी कम करता है, इसलिए यह हृदय स्वास्थ्य की रक्षा के लिए भी बहुत अच्छा है। बढ़ता कोलेस्ट्रॉल और क्रोनिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस दो ऐसे वजह हैं, जो अक्सर हार्ट अटैक का कारण बनते हैं।

फोटो सौजन्य- गूगल

Fertility Rate: If you want to plan a baby

Egg Quality: क्या आप कंसीव करने का सोच रही हैं? फिर जरूरी है कि पहले इसके लिए अपनी बॉडी को पूरी तरह तैयार करें। आजकल इनफर्टिलिटी के केस काफी ज्यादा सुनने को मिलते हैं। बहुत सी महिलाएं हैं, जो कंसीव करना चाहती हैं लेकिन इस दौरान प्रेगनेंसी फेलियर के बाद उन्हें पता चलता है कि वे कंसीव करने में समर्थ नहीं हैं। इस तरह के दिक्कतों से बचने के लिए शुरुआत से ही अपनी फर्टिलिटी पर ध्यान दें। जिस तरह आप अपनी स्किन एवं हेयर का केयर करती हैं, उसी तरह अपनी एग क्वालिटी का भी ख्याल रखें।

कई ऐसी नियमित हैबिट और स्थितियां हैं जो आपकी एग क्वालिटी को प्रभावित कर सकती हैं। ऐसे में सचेत रहना जरूरी होता है। विशेषज्ञ के मुताबिक एग क्वालिटी बेहतर बनाने के लिए कुछ खास सुझाव के बारे में विस्तार से जानते हैं-

अच्छी एग क्वालिटी के लिए अनिवार्य चीजें-

हॉर्मोन्स का संतुलित स्तर

नियमित पीरियड साइकिल

पीरियड के दौरान शरीर के बेसलाइन टर्म्प्रेचर

और सर्वाइकल फ्लूइड में भिन्नता।

एक स्वस्थ अंडे या ओवम में प्रॉपर जेनेटिक वाले 23 क्रोमोज़ोम होते हैं। क्रोमोज़ोम संबंधी असामान्यता वाले अंडे में 23 से कम या अधिक क्रोमोज़ोम होते हैं। इसके परिणामस्वरूप अंडे की गुणवत्ता कम होती है और आपको परेशानी हो सकती है।

खराब गुणवत्ता वाले एग के संकेतों में शामिल हैं-

Foods For Pregnant Woman

हार्मोनल असंतुलन अनियमित पीरियड्स का कारण हो सकते हैं, जिसका अंडों की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ सकता है।
खराब गुणवत्ता वाले अंडों का संकेत में क्रोमोज़ोम की असंतुलित संख्या भी शामिल है। असामान्य या कम गुणवत्ता वाले अंडों में सामान्य से कम या अधिक क्रोमोज़ोम होते हैं।

क्रोमोज़ोम सबंधी समस्या के कारण एबॉर्शन हो सकता है, यह अंडों की खराब गुणवत्ता का संकेत हो सालता है। फॉलिकल-स्टिम्युलेटिंग हॉरमोन (FSH) का कम स्तर अंडे की गुणवत्ता में गिरावट का संकेत हो सकता है। FSH एक हॉरमोन है जो पिट्यूटरी ग्लैंड द्वारा रिलीज किया जाता है। एस्ट्रोजन के स्तर में गिरावट, अंडे की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं।

जानें एग क्वालिटी बढ़ने के टिप्स

1. ब्लड फ्लो इम्प्रूव करें

हेल्दी एग प्रोडक्शन ओवरी में ऑक्सीजन युक्त ब्लड फ्लो पर निर्भर करता है। इन अंगों में ऑक्सीजन युक्त ब्लड फ्लो को बढ़ावा देने के लिए उचित हाइड्रेशन मेंटेन करना महत्वपूर्ण है। हर दिन कम से कम 6 से 8 गिलास पानी या अन्य हाइड्रेटिंग ड्रिंक पिएं। इसके अलावा नियमित रूप से एक्सरसाइज करें, क्योंकि यह पूरे शरीर में ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करता है और हृदय में रक्त प्रवाह को बढ़ाता है। इसके अलावा, मसाज चिकित्सा और योग ब्लड फ्लो को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।

2. हेल्दी वेट मैनेजमेंट पर ध्यान दें

keep obesity and stress away from yourself

आईवीएफ और प्रेगनेंसी के दौरान एग क्वालिटी में सुधार के लिए हेल्दी वेट मेंटेन करना महत्वपूर्ण है। अधिक वजन या कम वजन होने से हार्मोन का स्तर प्रभावित हो सकता है और मेंस्ट्रुअल साइकिल प्रभावित हो सकती है, जिससे कंसीव करना मुश्किल हो जाता है। एक हेल्दी वेट मैनेजमेंट के साथ आपके हेल्दी एग प्रोडक्शन की संभावना भी बढ़ जाती है, जो एक हेल्दी और कम्प्लीकेशन फ्री प्रेगनेंसी के लिए महत्वपूर्ण है।

संतुलित वजन बनाए रखना समग्र स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देता है, जिससे प्रेगनेंसी और डिलीवरी के दौरान कम्प्लीकेशन का जोखिम कम हो जाता है। पौष्टिक आहार और नियमित शारीरिक गतिविधियां स्वस्थ वजन प्राप्त करने में आपकी मदद कर सकती हैं।

3. आज ही छोड़े स्मोकिंग

स्मोकिंग परमानेंट बेसिस पर ओवरी में अंडे के नुकसान पहुंचा सकता है। सिगरेट में मौजूद केमिकल एग के सेल्स में डीएनए को बदल देती हैं, जिससे कुछ अंडे इनफर्टाइल हो जाते हैं। महिलाओं में उम्र के साथ अंडों की संख्या कम होती जाती है, इसलिए अंडों को स्वस्थ और अनावश्यक रसायनों से मुक्त रखना बेहद जरुरी है।

4. स्ट्रेस मैनेजमेंट पर ध्यान दें

Sometimes even a small difference between husband and wife is important

तनाव कोर्टिसोल और प्रोलैक्टिन जैसे हार्मोन उत्पन्न कर सकता है, जो ओव्यूलेशन में बाधा डाल सकते हैं या उसे रोक सकते हैं। योग, ध्यान, व्यायाम या हॉट शॉवर जैसी तनाव कम करने वाली गतिविधियों में भाग लें। यदि आप अत्यधिक तनाव में रहती हैं तो कंसीव करने से पहले अपनी मानसिक स्थिति में सुधर करें।

5. अच्छी नींद लें

good sleep

जब आप अच्छी नींद लेती हैं, तो आपका शरीर ऐसे हार्मोन बनाता है जो ओव्यूलेशन को नियंत्रित करते हैं और हेल्दी एग ग्रोथ का समर्थन करते हैं। अच्छी नींद तनाव को कम कर सकती है, इसका फर्टिलिटी पर सकारात्मक असर होता है। पर्याप्त आराम करें यह आपकी इम्युनिटी को बढ़ावा देता है। एक मजबूत इम्युनिटी हेल्दी प्रेगनेंसी को बढ़ावा देती है। इसके अतिरिक्त, नींद स्वस्थ वजन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो फर्टिलिटी के लिए महत्वपूर्ण है।

6. स्वस्थ आहार लें

अध्ययनों से पता चलता है कि फल, सब्जियां और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर डाइट फर्टिलिटी को बढ़ावा देती है। प्रोसेस्ड, शुगर और हाई सैचुरेटेड फैट वाले खाद्य पदार्थों से दूर रहें। पौष्टिक आहार लेने के अलावा, अंडे के उत्पादन में सहायता करने वाले विटामिन का उपयोग करने की सलाह दी जाती है। इसके अतिरिक्त, मछली का तेल, विटामिन ए और ई, और मेलाटोनिन अंडे की गुणवत्ता में सुधार करते हैं।

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Post Abortion Care

Post Abortion: गर्भवती महिलाओं के शरीर में कई तरह के बदलाव आना लाजमी है। लेकिन कई बार वही बदलाव गर्भपात की वजह बन जाते हैं। वहीं, अनवांटेड प्रेगनेंसी भी अबॉर्शन का मुख्य कारण बन जाता है। यदि आप अबॉर्शन पर विचार कर रही हैं तो फिजिकली और मेंटली तैयार कर लेना जरूरी है, फिर चाहे वो सर्जिकल हो या मेडिकल। आइये जानते हैं अबॉर्शन के बाद महिलाओं को किस तरह से अपना ख्याल रखना चाहिए।

अबॉर्शन दो प्रकार का होता है

1. मेडिकल अबॉर्शन

महिलाओं को मेडिकल अबॉर्शन के लिए दवाएं लेने की सलाह दी जाती है। इससे गर्भावस्था को विकसित होने से रोका जा सकता है। दवाओं को निगलकर या फिर योनि में रखकर इस्तेमाल किया जा सकता है। गोली रखने के 24 घंटों के भीतर ब्लीडिंग का सामना करना पड़ता है।

2. सर्जिकल अबॉर्शन

Post Abortion Care

सर्जिकल अबॉर्शन के दौरान डॉक्टर ऑपरेशन से भ्रूण को हटाते हैं। गर्भ की समय अवधि बढ़ने के अनुसार डॉक्टर सर्जिकल अवॉर्शन का सुझाव देते हैं। ये डॉक्टर और अन्य स्टाफ की देखरेख में किया जाता है। इस प्रकार के अबॉर्शन में ज्यादा ऐंठन का सामना करना पड़ता है।

अबॉर्शन के बाद शरीर को कैसे स्वस्थ रखें

इस बारे में डॉक्टर का कहना है कि अगर अर्ली प्रेगनेंसी में बच्चे की ग्रोथ नहीं हो रही है, तो अबॉर्शन की सलाह दी जाती है। मगर पांचवें महीने के बाद अगर अबॉर्शन किया जाता है, तो उस वक्त स्थिति गंभीर हो सकती है। सही जांच और इलाज ना मिलने से स्वास्थ्य पर उसका नकारात्मक असर दिखता है।

दरअसल, अबॉर्शन के बाद ब्लीडिंग का खतरा बना रहता है। ऐसे में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आयरन और मल्टी विटामिन लेने की सलाह दी जाती है। इस अलावा हाई इंटैसिटी एक्सरसाइज़ भी हेल्थ को नुकसान पहुंचाती है।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक सर्जिकल अबॉर्शन की तुलना में मेडिकल अबॉर्शन में ब्लीडिंग का खतरा अधिक बढ़ जाता है और ये ब्लीडिंग 10 दिन तक रहती है। वहीं, सर्जिकल अबॉर्शन में ब्लीडिंग धीरे-धीरे कम हो जाती है और वो ऑफ एंड ऑन रहती है। वहीं, एक रिसर्च के मुताबिक 78.4 फीसदी महिलाओं ने सर्जिकलअबॉर्शन में ज्यादा दर्द का सामना किया है।

अबॉर्शन के बाद इस तरह से रखें अपना ख्याल

Post Abortion Care

1. आयरन रिच डाइट और सप्लीमेंट आवश्यक

अवॉर्शन के दौरान महिलाओं को हैवी ब्लीडिंग का सामना करना पड़ता है। इससे खून की कमी होने का खतरा बना रहता है। शरीर में खून की कमी को पूरा करने के लिए आयरन रिच डाइट और सप्लीमेंट्स अवश्य लें। इस के अलावा विटामिन सी का सेवन करने से भी शरीर में आयरन का एब्जॉर्बशन बढ़ने लगता है। इससे शबीटरूटरीर का इम्यून सिस्टम भी बूस्ट होता है। आहार में पालक, बीटरूट, कद्दू और खजूर को शामिल करें।

2. शरीर में पानी की कमी ना होने दें

बार-बार होने वाली वॉमिटिंग और डायरिया के लक्षणों से शरीर में थकान और कमज़ोरी बढ़ती है। दरअसल, शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी इस समस्या को बढ़ा देती है। ऐसे में शरीर को हाइड्रेट रखने के लिए भरपूर मात्रा में पानी पीएं।

3. भारी सामान न उठाएं

महिलाओं को अबॉर्शन के बाद भारी सामान को उठाने से मना किया जाता है। भारी बाल्टी हो या बच्चे को गोद में उठाना हो, इन सभी चीजों से परहेज करने की सलाह दी जाती है। दरअसल, ब्लडलॉस के चलते शरीर में कमज़ोरी बढ़ जाती है और पीठ दर्द की भी समस्या बनी रहती है। ऐसे में 2 सप्ताह तक वर्कआउट न करने की सलाह दी जाती है। वेटलिफ्टिंग से ब्लीडिंग का खतरा बना रहता है। इसके अलावा किसी भी भारी सामान को उठाने से भी बचना चाहिए और शारीरिक क्षमता के अनुसार ही कार्य करें।

4. बॉडी को रिलैक्स रखें

पीठ में दर्द व क्रैप्स से निपटने के लिए डॉक्टर की बताई दवाएं लें। दरअसल, ब्लीडिंग के दौरान क्रैप्स बढ़ जाते हैं। ऐसे में हीटिंग पैड व हॉट वॉटर बॉटल का प्रयोग करें। इसके अलावा पोस्ट अबॉर्शन बॉडी मसाज भी फायदेमंद साबित होती है।

5. परिवार के लोगों का सपोर्ट है ज़रूरी

अवॉर्शन के बाद महिलाओं को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। इस समसया से निपटने के लिए परिवार के सदस्यों को साथ देने की सलाह दी जाती है। ताकि वे तनाव की स्थिति से बाहर आ पाएं। शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव के कारण डिप्रेशन, सैडनेस और एंग्ज़ाइटी बढ़ जाती है। इस समस्या से बाहर आने के लिए दवाओं के अलावा पार्टनर का साथ भी बेहद ज़रूरी है।

6. मेडिकल चेकअप कराते रहना जरूरी

महिलाओं को अबॉर्शन के बाद शरीर में शारीरिक और मानसिक कई प्रकार के बदलाव महसूस होने लगते हैं। ऐसे में महिलाओं को चेकअप के दौरान न केवल सप्लीमेंटस लेने की सलाह दी जाती है बल्कि गर्भनिरोधक के इस्तेमाल संबधी जानकारी भी दी जाती है। दरअसल, अबॉर्शन के बाद कंसीव करने के लिए जल्दबाज़ी स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरा हो सकता है।

7. पीरियड और प्रेगनेंसी पर रखें नजर

ज्यादातर महिलाओं को अबॉर्शन के 4 से 8 हफ्ते के बाद दोबारा पीरियड साइकल की शुरुआत होती है। वहीं, अबॉर्शन के दो हफ्ते के बाद वेजाइनल सेक्स करने की सलाह दी जाती है। पर अगली प्रेगनेंसी ओवुलेशन पर निर्भर करती है। महिलाओं में ओव्युलेशन पीरियड के 14 दिनों के बाद होता है। अबॉर्शन के एकदम बाद सेक्स करने से बैक्टीरियल संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। दरअसल, शरीर का इम्यून सिस्टम वीक होने से संक्रमण शरीर में फैल सकता है।

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If the liver is happy then your health will also smile

Healthy LIVER: अगर हम अपने पूरे हेल्थ के बारे में सोचते हैं तो हम हमेशा आहार, व्यायाम और टेंशन प्रबंधन जैसे कारकों पर ध्यान फोकस करते हैं। बता दें कि ये एक हेल्दी लाइफ के जरूरी घटक हैं पर एक अंग है जिसे अक्सर स्वास्थ्य की चर्चाओं में अनदेखा कर दिया जाता है और वो है लिवर। आपका लिवर आपके आपके शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है लेकिन बहुत से लोग इससे अनजान हैं कि इसका आपके मेंटल हेल्थ पर भी अहम प्रभाव पड़ता है। हम लिवर हेल्थ और मेंटल हेल्थ के बीच संबंध का पता लगाएंगे और जानने की कोशिश करेंगे कि दोनों हेल्दी रखना क्यों आवश्यक है।

लिवर शरीर का सबसे खास अंग है और इसके कई कार्य हैं, जिसमें डिटॉक्सिफिकेशन, मेटाबॉलिज्म और पोषक तत्वों का स्टोरेज शामिल है। लिवर का स्वास्थ्य जिस तरह मेंटल हेल्थ को प्रभावित करता है, उसी तरह मानसिक स्वास्थ्य लिवर के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है।

जानें सेहत के लिए कितना महत्वपूर्ण है लिवर-

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1. डिटॉक्सिफिकेशन में मदद करता है

लिवर दवाओं, शराब और पर्यावरण खराब पदार्थों को चयापचय करके हानिकारक पदार्थों को डिटॉक्सिफाई करता है। यह इन पदार्थों को कम हानिकारक रूपों में परिवर्तित करता है या उन्हें बाहर करने के लिए तैयार करता है।

2. पोषक तत्वों का स्टोरेज

लिवर विटामिन और खनिजों को जमा करता है, जिसमें विटामिन ए, डी, ई, के, और बी-12, साथ ही आयरन और कॉपर शामिल हैं। इन जमा किए गए पोषक तत्वों को आवश्यकतानुसार रक्तप्रवाह में छोड़ा जाता है।

3. रक्त का थक्का जमना

लिवर रक्त के थक्के जमने के लिए आवश्यक अधिकांश प्रोटीन का उत्पादन करता है। इन प्रोटीनों के बिना, शरीर प्रभावी रूप से खून के बहने को रोकने में सक्षम नहीं होगा।

4. पित्त का उत्पादन करता है

लिवर द्वारा उत्पादित पित्त पित्ताशय में संग्रहीत होता है और फैट्स और फैट्स में घुलनशील विटामिन के पाचन और अवशोषण में सहायता के लिए छोटी आंत में छोड़ा जाता है।

लिवर हेल्थ और मेंटल हेल्थ में संबंध

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1 जहरीले पदार्थों को बाहर निकालना

लिवर का प्राथमिक कार्य डिटॉक्सिफिकेशन है, रक्त से जहरीले पदार्थों को निकालना। जब लिवर ठीक से काम नहीं कर रहा होता है तो मस्तिष्क सहित शरीर में विषाक्त पदार्थ जमा हो सकते हैं। इससे कंफ्यूजन, याद रखने में समस्याएं और यहां तक ​​कि मूड स्विंग या अवसाद जैसे दिमान से संबंधित लक्षण दिखाई दे सकते है।

2 पोषक तत्वों का ठीक से अवशोषण

लिवर ग्लूकोज, प्रोटीन और फैट्स सहित मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण पोषक तत्वों के मेटाबॉलिज्म में अहम भूमिका निभाता है। खराब लिवर कार्य इन पोषक तत्वों में असंतुलन या कमी का कारण बन सकता है, जो मस्तिष्क के कार्य और मूड को प्रभावित कर सकता है।

3 अमोनिया और हेपेटिक एन्सेफैलोपैथी

प्रोटीन मेटाबॉलिज्म के उप-उत्पादों में से एक अमोनिया है, जिसे लिवर सुरक्षित बाहर करने के लिए यूरिया में परिवर्तित करता है। अगर लिवर खराब है या ठीक से काम नही कर रहा है, तो रक्त में अमोनिया का स्तर बढ़ सकता है, जिससे लिवर एन्सेफैलोपैथी हो सकती है। यह स्थिति सोचने समझने को कमजोर, व्यक्तित्व परिवर्तन और गंभीर तरह से मूड को प्रभावित कर सकती है।

4 हार्मोनल असंतुलन

लिवर हार्मोन के मेटाबॉलिज्म में शामिल होता है। लिवर की समस्या इस प्रक्रिया को बाधित कर सकता है, जिससे हार्मोनल असंतुलन हो सकता है जो मूड और संज्ञानात्मक कार्य को प्रभावित कर सकता है।

5 नींद पर पड़ता है असर

लिवर खराब होने की स्थिति में मेटाबॉलिज्म संबंधी गड़बड़ी और खराब पदार्थों के निर्माण के कारण नींद की गुणवत्ता और पैटर्न को प्रभावित कर सकता है। खराब नींद अवसाद और चिंता जैसे मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों को बढ़ा सकती है।

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How can you take care of your wife or girlfriend during periods?

Periods में महिलाओं को कई बार सामान्य तो कई बार असहनीय दर्द से दो-चार होना पड़ता है। क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों होता है? हालांकि प्रत्येक महिला अलग होती है और पीरियड्स का उसका अनुभव भी अलग होता है लेकिन कई बार इसके लिए हमारी खुद की रोजाना की रुटीन की गलतियां जिम्मेदार होती हैं। कुछ ऐसी गतिविधियां हैं जिसे आप पीरियड्स के कुछ दिन पहले या पीरियड्स के दौरान दोहराती हैं, पीरियड्स में दर्द बढ़ सकती है।

आइये जानते हैं दर्द के लिए जिम्मेदार गलतियां-

अब आप सोच रही होगी कि यह कौन सी ऐसी गलतियां हैं, जो पीरियड्स के दर्द को बढ़ा देती हैं। तो ज्यादा ना सोचे क्योंकि ये कुछ कॉमन मिस्टेक्स हैं, जिसे आप अपनी नियमित दिनचर्या में दोहराती हैं। विशेषज्ञ ने पेनफुल पीरियड्स का कारण बनने वाली कुछ आम गलतियों के बारे में बताया है।

जानें कौन सी आदतें पीरियड्स को बना देती हैं अधिक पेनफुल

1. कम पानी पीना

डॉक्टर्स के मुताबिक अपर्याप्त पानी पीने से ब्लोटिंग हो सकता है, और पीरियड्स के दर्द को बढ़ा सकता है। ऐसे में प्रयाप्त हाइड्रेशन मेंटेन रखना जरूरी है। केवल पीरियड्स के दौरान ही नहीं बल्कि हर रोज बॉडी को पानी की आवश्यकता होती है, इसलिए हाइड्रेशन मेंटेन रखें। आप इसके लिए पानी के अलावा हाइड्रेटिंग फल एवं अन्य हेल्दी ड्रिंक्स की मदद ले सकती हैं।”

2. अनहेल्दी डाइट

शुगर, प्रोसेस्ड फूड्स और अनहेल्दी फैट्स से भरपूर आहार लेने से सूजन पैदा होती है, इससे पीरियड्स के दौरान दर्द और ज्यादा बढ़ सकता है। मैग्नीशियम, ओमेगा-3 फैटी एसिड और विटामिन- D जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की कमी पीरियड्स में ऐंठन और क्रैंप्स को अधिक बढ़ा देती हैं।

3. अधिक तनाव लेना

unbearable pain in lower back during periods

अत्यधिक तनाव मासिक धर्म के दर्द को बढ़ा सकता है और हार्मोनल असंतुलन का कारण बन सकता है। हार्मोंस के असंतुलित होने पर पीरियड्स में गड़बड़ी देखने को मिल सकती है। इसके अलावा पीरियड्स में नजर आने वाले शारीरिक संकेत भी अधिक गंभीर नजर आ सकते हैं। ऐसे में योग, ध्यान या डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइ करने से तनाव को कम करने में मदद मिलेगी।

4. वेट मैनेजमेंट पर नजर नहीं रखना

डॉक्टर के अनुसार अत्यधिक वचन बढ़ना या वजन का घटना आपके हार्मोन को असंतुलित कर देता है, और पीरियड्स को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। यदि आप अपने वजन पर ध्यान नहीं दे रही हैं, तो यह अनियमित पीरियड का कारण बन सकता है। जिसकी वजह से आपको पीरियड्स साइकिल के दौरान अत्यधिक दर्द का अनुभव होता है। इस स्थिति में संतुलित आहार और व्यायाम के माध्यम से आपको हेल्दी वेट मेंटेन करने में मदद मिलेगी।

5. अनहेल्दी स्लीप

मेलाटोनिन और कोर्टिसोल जैसे पीरियड साइकिल को नियंत्रित करने में मदद करने वाले हार्मोन खराब नींद के पैटर्न के परिणामस्वरूप असंतुलित हो सकते हैं। अपर्याप्त नींद के परिणामस्वरूप तनाव का स्तर बढ़ता है, जिससे पीरियड्स में अधिक दर्द का अनुभव होता है और पीरियड्स असुविधाजनक लगता है।

अलावा इसके बहुत कम नींद लेने से इम्यूनिटी कमजोर हो सकती है, जिससे सूजन और पीरियड्स का दर्द बढ़ जाता है। अच्छी नींद को प्राथमिकता देने से मासिक धर्म के दर्द को कम करने और हार्मोनल संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है।

6. शराब और कैफीन का ज्यादा सेवन

डॉक्टर के मुताबिक पीरियड्स के कुछ दिन पहले या पीरियड्स के दौरान शराब पीने से कई गंभीर प्रभाव देखने में आ सकते हैं। शराब और कैफीन दोनों ही शरीर को डिहाइट्रेट कूरते हैं और सूजन पैदा कर सकते हैं, जिससे Periods के वक्त पेट दर्द और ऐंठन बढ़ सकता है।

डॉक्टर के अनुसार पीरियड्स के कुछ दिनों पहले या पीरियड्स के दौरान शराब पीने से कई गंभीर प्रभाव नजर आ सकते हैं। शराब और कैफीन दोनों ही शरीर को डिहाइड्रेट करते हैं, और सूजन पैदा कर सकते हैं। जिससे पीरियड्स के दौरान ऐंठन और पेट दर्द बढ़ सकता है।

फोटो सौजन्य- गूगल