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Category Archives: Health

Hair tips

फेस स्किन के लिए चावल का पानी (Rice Water)सबसे ज्यादा फायदेमंद माना जाता है। लेकिन क्या आपको मालूम है कि चावल का मास्क आपकी हेयर हेल्थ के लिए भी काफी बेहतरीन काम कर सकता है। चावल में कई ऐसे पोषक तत्व होते हैं जो आपके बालों के लिए काफी फायदेमंद होते हैं। पर अगर आप चावल के साथ मेथी के दानों को भी मिक्स करके इस मास्क को तैयार करेंगे तो ये आपके लिए जबरदस्त काम करेगा। अक्सर लोग चावल और मेथी के पानी को अलग अलग प्रयोग करते हैं। लेकिन अगर आप इन्हें साथ मिलाकर एक मास्क को रूप दें देंगे तो ये कई तरह की बालों से जुड़ी परेशानियों से आपको छुटकारा दिला सकता है। ये बालों में डैंड्रफ, फिजी हेयर, बालों में शाइन औ हेयर फॉल की समस्या को काफी हद तक कम कर सकता है।

चावल और मेथी आपको आराम से घर में मिल जाएंगे। इसके लिए आपको ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है। बालों को धोने के लिए प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करने से स्कैल्प और बालों का स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है। अगर आपको भी अपने बालों को झड़ने से रोकना है या बालों को मजबूत बनाना है तो आप इस मास्क को अपने घर पर तैयार कर सकते है।

बालों के लिए मेथी के बीज के फायदे

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मेथी के बीज बालों के झड़ने को रोकने और बालों को बढ़ा कर लंबा करने के लिए काफी प्रसिद्ध है। मेथी के बीज आयरन और प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत हैं ये बालों को बढ़ाने के लिए काफी अच्छे पोषक तत्व है। इसके अलावा, मेथी के बीज फोलिक एसिड, विटामिन ए, के और सी से भरपूर होते हैं, इसमें पोटेशियम और कैल्शियम जैसे खनिज भी आपको काफी अच्छी मात्रा में मिल सकते है। इसलिए, यह मेथी का मास्क आपके उलझे बाल, चिपचिपे बाल और बालों को झड़ने से रोकने में मदद कर सकता है।

चावल बालों के लिए कैसे फायदेमंद है

Hair Style

बालों की कई समस्या को चावल का पीन हल कर सकता है। चावल में विटामिन, अमीनो एसिड और जिंक, मैग्नीशियम, विटामिन बी और सी जैसे अमिनरल्स से भरपूर होता है। साथ ही, इसमें एंटीऑक्सीडेंट भी भरपूर मात्रा में होते हैं। चावल का पानी बालों की लोच में सुधार हो सकता है।

चावल के पानी का उपयोग करने से आपके बालों को सुलझाना बहुत आसान हो जाता है। चावल के पानी से आप घने, घने और ज़्यादा व्यवस्थित बाल पाने का सपना पूरा कर सकते हैं। चावल का पानी आपके लिए कंडिशनर का कम कर सकता है जिससे आपके बाल काफी स्मूद दिखने लगते है।

कैसे करें चावल और मेथी के बीज का मास्क तैयार और मास्क बनाने के लिए सामान-

चावल 2 बड़े चम्मच
मेथी के बीज 1 बड़ा चम्मच
पानी

ऐसे बनाएं चावल और मेथी का मास्क

  • 2 बड़े चम्मच चावल और 1 बड़ा चम्मच मेथी के बीज को रात भर पानी के अलग-अलग कटोरे में भिगोएं।
  • भिगोए हुए चावल और मेथी के बीजों को अलग-अलग तब तक मिलाएं जब तक आपको चिकना पेस्ट न मिल जाए।
  • चावल के पेस्ट और मेथी के पेस्ट को एक कटोरे में मिलाएं। एक समान पेस्ट बनाने के लिए उन्हें अच्छी तरह मिलाएं।
  • इस मास्क को अपने बालों पर स्कैल्प से लेकर बालों के आखिर तक अच्छी तरह से लगा लेंं। बालों में 20 से 30 मिनट के लिए मास्क को रहने दें।
  • अपने बालों को धोने के लिए गर्म पानी का इस्तेमाल करें, क्योंकि इससे सिर के रोमछिद्रों को खोलने में मदद मिलेगी, जिससे बालों में मास्क का बेहतर अवशोषण हो सकता है।

फाइल फोटो- गूगल

why social media addiction is increasing among children and teenagers

जरा सोचे आप अपने फोन में फेसबुक, व्हाट्सअप, इंस्टाग्राम डाउनलोड करना चाह रहे हों और आपको डाउनलोड करने से पहले वैधानिक चेतावनी दिखाई दे कि Social Media आपकी सेहत के लिए नुकसानदेह है। डॉक्टर्स का कहना है कि सोशल माीडिया बचपन छीन रहा है और किशोरावस्था में मानसिक स्वास्थ्य पर खासा गंभीर प्रभाव डाल सकता है।

एक्सपर्ट बता रहे हैं क्यों बच्चों और किशोरों में बढ़ती जा रही है Social Media एडिक्शन (लत)

दुनिया भर के होनहार और बुद्धिमान कम्प्यूटर इंजीनियर सोशल मीडिया के अलगोरिदम इस तरह सेट करते हैं कि भूले-भटके साइट पर आया बच्चा बाकी काम छोड़ कर सोशल मीडिया की भूल-भुलैया की दुनिया में खो जाता है।

पिछले दशक में सोशल मीडिया की लत किसी संक्रमण की तरह फैली है। लगभग हर जगह बच्चे और युवा इसका प्रयोग कर रहे हैं। 13-17 की उम्र के बीच के 95 फीसदी बच्चे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। जिनमें से एक तिहाई इस पर लगातार बने रहते हैं।

मेंटल हेल्थ के लिए घातक है सोशल मीडिया

साल 2019 में एक पत्रिका JAMA में एक लेख छपा। इस लेख में जानने की कोशिश की गई कि सोशल मीडिया पर व्यतीत किए समय का सीधा असर मानसिक स्वास्थ्य पर कितना है। इसमें पाया गया कि जो बच्चे किशोरावस्था में तीन घंटे से अधिक समय सोशल मीडिया पर बिताते हैं वे ख़ास तौर पर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी तकलीफों का सामना करते हैं।

इसका असर नींद पर भी होता है। सोशल मीडिया पर बने रहना अवसाद की ओर ठेलता है और लोगों के फेक और प्रोजेक्टड जीवन की गाथा नेगेटिव बॉडी इमेज के विकास को बढ़ावा देती है। ज़्यादा समय सोशल मीडिया पर बिताने से साइबर बुलीयिंग की घटनाएं भी बढ़ती हैं। भावनाओं का संतुलन डावांडोल हो जाता है और मन लगातार उत्कंठाओं से जूझता रहता है।

डॉक्टर विवेक मूर्ति ने यह बात किशोरों और बच्चों को ध्यान में रखकर कही थी। उन्होंने हाल ही में US कांग्रेस में एक एडवाइजरी जारी की। उन्होंने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित किया कि सोशल मीडिया का असर बच्चों और किशोरों में वयस्क लोगों से अलग है। क्या इसकी कोई ख़ास वजह है?

1. इसी उम्र में होता है प्री-फ्रंटल कॉर्टेक्स का विकास

why social media addiction is increasing among children and teenagers

साइंस हमें बताता है कि दिमाग़ का विकास बचपन के शुरुआती तीन सालो में ही बहुत तेज़ी से होता है। किंतु एक ख़ास हिस्से का विकास किशोरावस्था के पूरा होने तक नहीं हो पाता है। इस हिस्से को प्री-फ्रंटल कॉर्टेक्स कहते हैं। प्री फ्रंटल कॉर्टेक्स कई चीज़ों के लिए ज़िम्मेदार होता है इसमें सबसे ज़्यादा ज़रूरी बात होती है ‘न करने की इच्छाशक्ति’।

2. उत्साह अधिक और समझ कम

किशोरावस्था में दिमाग़ तेज़ दौड़ता है, कई मुश्किल सवाल आसानी से हल करने की क्षमता होती है और हर नई और ख़तरनाक चीज़ को करने के लिए मन उत्साहित होता है। वहीं दिमाग ठीक से ख़तरे भाँप नहीं पाता, आंक नहीं पाता। ऐसी स्थिति में, इस उम्र के बच्चे बहुत ही असुरक्षित होते हैं। खुद पर मंडराते ख़तरों से अनभिज्ञ और एक अजीब ओवरकॉन्फिडेन्स से भरे हुए।

3. एंगेजमेंट ओरिएंटेड प्रोग्राम

सोशल मीडिया का रोमांच उन्हें आकर्षित करता है और वे अपना रुख़ उसकी तरफ़ कर देते हैं। यह एक लत की तरह बढ़ती हुई प्रवृत्ति बन जाता है। दुनिया भर के होनहार और बुद्धिमान कम्प्यूटर इंजीनियर सोशल मीडिया के प्रोग्राम को बनाते हैं कि भूले- भटके जो बच्चा या किशोर यहां पहुंचे उसे एक ख़ास थ्रिल और रिवार्ड सिस्टम से बांध कर रख दें। इसके पीछे का लक्ष्य होता है इनके ऑडियंस का अधिकतम एंगेजमेंट।

4. सोशल मीडिया के लगातार इस्तेमाल पर डोपामीन होता है रिलीज़

सोशल मीडिया का रिवार्ड सिस्टम इस तरह डिज़ाइन किया गया हैं कि छोटा सा छोटा हासिल भी ख़ुशी का अहसास देता है। इस ख़ुशी का आधार डोपामीन रिलीज़ होने से है। डोपामीन रिलीज़ होने पर आनंद की अनुभूति होती है। लेकिन डोपामीन एक ऐसा न्यूरो-ट्रांसमीटर है जो लत लगने के लिए और नशा चढ़ने के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है।

5. बढ़ जाती है लत

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पहली बार जिस काम को करने पर ख़ुशी मिलती है उसमें जितना डोपामीन रिलीज़ होता है अगली बार उतनी ही ख़ुशी पाने के लिए उतना ही काम दोगुनी बार करना पड़ता है। मिसाल के तौर पर– जो बच्चा या किशोर पहले एक लाइक से ख़ुश होता था, उसे उतनी ख़ुशी पाने के लिए बीसियों लाइक की ज़रूरत पड़ती है। यह भूख बढ़ती ही जाती है। फिर उसे एक भरेपूरे ऑडियंस और फ़ॉलोवर की लिस्ट की दरकार होती है। इस तरह सोशल मीडिया पर जब पहले-पहल जो बच्चा पांच मिनट के लिए आया होता है वही बच्चा घंटों वहीं गुज़ारने लगता है।

भद्दे कंटेंट के सबसे बड़े उपभोक्ता और क्रिएटर हैं किशोर-युवा

पिछले कुछ बरसों में सोशल मीडिया, रील्स, इन्स्टाग्राम वगैरह पैसे कमाने का एक उम्दा ज़रिया भी बनकर सामने आये हैं। बेरोज़गारी भी आसमान चूम रही है। सही-सीधे रास्ते से पैसा कमाना बहुत मुश्किल है। समाज के मूल्य जिस गति से गिरे हैं वह भी इससे पहले कभी नहीं हुआ। कोविड के समय से हर किशोर-किशोरी के पास स्मार्ट फ़ोन आ गया है।

ये ज़रा आसान रास्ता है

पढ़-लिखकर कुछ हासिल करना, परीक्षा में उत्तीर्ण होकर प्रोफेशनल कॉलेज में दाख़िला पाना, फिर नौकरी पाना…कुछ भी तो आसान नहीं रहा है। हर जगह पैसों, राजनीति और भ्रष्टाचार का बोलबाला है। किशोर-किशोरी ही सबसे अधिक उदासीन हैं। इंटरनेट के तमाम उटपटांग, गंदे और अश्लील कंटेंट के एक बड़े उपभोक्ता भी यही हैं। कंटेंट क्रियेटर भी। दुख की बात है कि शोषण करते और सहते बच्चों और किशोरों को इसका ज़रा भी भान नहीं है।

गाइडलाइंस ही प्रेरित करती हैं

यू- ट्यूब, टिक-टॉक, रील्स के कंटेंट कई बार वाहियात क़िस्म के होते हैं। पोर्न, सेक्सुअल कंटेंट, हिंसा यह सब आम बातें हैं। और तो और कंटेंट क्रिएशन के गाइडलाइन खुद सिखाते हैं कि हिंसा और सेक्सुअल कंटेंट का समझदार इस्तेमाल किस तरह आपकी विडियोज़ की क्लिक्स बढ़ा सकता है। ( क्यों ना आप थोड़ी तकलीफ़ उठाकर इन साइट्स के मोनेटाइज़ेशन के गाइडलाइन्स पर एक नज़र डालें?)

डोपामीन उसे वापस खींचता है

क्या असर होता है जब बचपन और किशोरावस्था में कोई ऐसी बातें देखे और सुने? इस उम्र की उत्सुकता उसे इस ओर और खींचती है। वह इस कंटेंट से बंधता है। वीडियो के विज्ञापनों के साथ लोगों का एंगेजमेंट बढ़ता है। ऐड कंपनी और प्लेटफ़ॉर्म की रेवेन्यू बढ़ती है। किशोर वहीं अटक जाता है। उसके दिमाग़ का डोपामीन सर्ज उसे फिर वहीं लौटने के लिए बाध्य करते हैं।

देखने से करने तक

एक वीडियो देखना उसके लिए कम पड़ने लगता है। वो एक के बाद एक वीडियो देखता चला जाता है। जब सिर्फ वीडियो देखना उसे तृप्त नहीं करता, तब वह कृत्य पर पहुंच जाता है। यही एडिक्शन का विज्ञान है। यही पोर्न देखने की सबसे बड़ी मुश्किल भी। थोड़े में आनन्द अनुभव करने पर, दिमाग और की मांग करता है। फिर और से भी तृप्त नहीं होता।

धीरे-धीरे व्यक्ति इन आदतों का गुलाम हो जाता है। जो देखता है वह एडिक्ट हो जाता है। बनाने वाले पर भी इस तरह के व्यवहार से पैसे कमाने का नशा हावी होता चला जाता है। फायदा एड कम्पनी को होता है और उस प्लेटफ़ॉर्म को जो यह सहूलियत मुहैया करवाती हैं।

डॉक्टर के मुताबिक ज़रूरी है कि बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ माता पिता पर न लादी जाए। सोशल मीडिया कम्पनी पर दबाव डाला जाना चाहिए कि वे अपने प्रोग्राम और एल्गोरिदम बच्चों को फंसाने के लिए विकसित न करें। ऐसा करने पर दंड का प्रावधान होना चाहिए।

बच्चों और युवाओं के भविष्य के लिए जरूरी है सोशल मीडिया पर नकेल कसना

1.उपलब्धता जटिल बनााएं

नीतिनिर्माता ऐसे क़दम उठाए कि सोशल मीडिया बच्चों को इतनी आसानी से उपलब्ध ना हो। एक न्यूनतम उम्र दर्ज हो जिससे छोटी उम्र के बच्चे सोशल मीडिया में एकाउंट नहीं खोल सकें। सोशल मीडिया पर सुरक्षा का ध्यान रखा जाए, बच्चों की निजता का सम्मान किया जाए और सोशल मीडिया डिजिटल और मीडिया लिटरेसी को बढ़ावा दे।

2. प्रभाव का आकलन करें

टेक्नोलॉजी कंपनी को सोशल मीडिया का असर बच्चों पर किस तरह हो रहा है उस पर नज़र रखनी चाहिए न कि उनकी सुरक्षा और स्वास्थ्य को ख़तरे में डालना चाहिए।

3. निजी जानकारियों को निजी रखें

बच्चों और किशोरों को डिवाइसेस पर समय कम बिताने का इरादा बनाना चाहिए और अपनी निजी जीवन की जानकारी सार्वजनिक नहीं करनी चाहिए।

4. इंगेजमेंट रिसर्च हो

सोशल मीडिया पर इंगेजमेंट को लेकर और रिसर्च किया जाना चाहिए ताकि हम अपने बच्चों के लिए बेहतरीन प्रैक्टिस को अपना सके।

5. घर को टेक फ्री जोन बनाएं

माता-पिता को घर में टेक फ़्री ज़ोन बनाना चाहिए । उन्हें अपने बच्चों के साथ खेलने और समय व्यतीत करने का समय निकालना चाहिए। ज़रूरी है कि उनके बीच रिश्ते और मज़बूत हों और उनका साथ होना बच्चों के विकास में कारगर सिद्ध हो।

फोटो सौजन्य- गूगल

Red wine is beneficial for skin and hair

Red Wine: एक थकाऊ और लंबे दिन के बाद एक पेग वाइन लेना ये कुछ लोगों के लिए टेंशन दूर करने का तरीका हो सकता है। वैसे तो किसी भी तरह से अल्कोहल का सेवन हेल्थ के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। लेकिन कई स्टडी में यह बात सामने आई है कि थोड़ी मात्रा में वाइन पीना आपके हेल्थ के लिए अच्छा हो सकता है। ज्यादातर स्टडी में इसे हार्ट हेल्थ, वेट मैनेजमेंट और स्किन के लिए फायदेमंद कहा जाता है।

रेड वाइन त्वचा और बालों के देखभाल में अपने कई लाभों के लिए भी जानी जाती है। अंगूर से हासिल रेड वाइन एंटी ऑक्सिडेंट, विटामिन और अन्य पदार्थों से भरपूर होती है। जो इसके चिकित्सीय गुणों में योगदान करते हैं। आइये जानते हैं कि हेयर और स्किन केयर में रेड वाइन आपके लिए कैसे पायदेमंद हो सकती है और इसके इस्तेमाल का सही तरीका क्या है?

ये 4 कारण बनाते हैं रेड वाइन लाभदायक-

Red wine is beneficial for skin and hair

1. एंटी-एजिंग गुण

रेड वाइन में फ्लेवोनोइड्स, रेस्वेराट्रोल और टैनिन जैसे एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं, जो उम्र बढ़ने की प्रक्रिया में प्रमुख योगदान देने वाले फ्री रेडिकल्स और ऑक्सीडेटिव तनाव से लड़ने में मदद करते हैं। ये एंटीऑक्सीडेंट फाइन लाइन और झुर्रियों को कम कर सकते हैं, जिससे त्वचा जवां दिखती है। रेस्वेराट्रोल, विशेष रूप से, कोलेजन उत्पादन को उत्तेजित करने के लिए दिखाया गया है, जो त्वचा की लोच और मजबूत बनाए रखने के लिए जरूरी है।

2. त्वचा की बनावट और निखार

रेड वाइन में प्राकृतिक अल्फा-हाइड्रॉक्सी एसिड होते हैं, जो त्वचा को धीरे-धीरे एक्सफोलिएट करते हैं, मृत त्वचा कोशिकाओं को हटाते हैं और सेल टर्नओवर को बढ़ावा देते हैं। इससे त्वचा चिकनी और अधिक चमकदार हो सकती है। रेड वाइन में मौजूद पॉलीफेनॉल त्वचा को चमकाने और त्वचा की रंगत को एक समान करने में मदद कर सकते हैं, जिससे काले धब्बे और पीगमेंटेशन कम हो जाती है।

3. एक्ने को ठीक करती है

रेड वाइन में प्राकृतिक एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो मुहांसे पैदा करने वाले बैक्टीरिया से लड़ने में मदद कर सकते हैं। इसे स्किन के ऊपर लगाने से सूजन कम हो सकती है और मुहांसे नहीं होंगे। रेड वाइन में मौजूद रेस्वेराट्रोल तेल उत्पादन को नियंत्रित करने में भी मदद कर सकता है, जिससे त्वचा कम तैलीय और अधिक संतुलित रहती है।

4. हाइड्रेशन और पोषण देने में मददगार

रेड वाइन में विटामिन और खनिज होते हैं जो स्किन को पोषण देते हैं, इसे हाइड्रेटेड और हेल्दी रखते हैं। यह विशेष रूप से ड्राई या संवेदनशील त्वचा के लिए फायदेमंद हो सकता है।

रेड वाइन के जरिए बालों को मिलने वाले ये 3 फायदे

Red wine is beneficial for skin and hair

हेयर ग्रोथ में मददगार

रेड वाइन से मालिश करने पर स्कैल्प में रक्त संचार में सुधार होता है, जो बबालों को बढ़ाने में मदद करता है और बालों के रोम को मजबूत करता है। रेड वाइन में विटामिन और खनिज आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं जो बालों को हेल्दी तरीके से बढ़ने में मदद करता है और झड़ने को रोकते हैं।

चमकदार और सिल्की बाल

रेड वाइन में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट बालों को नुकसान पहुंचाने वाले मुक्त कणों से लड़ने में मदद करते हैं, जिससे बाल चमकदार और चिकने होते हैं। फ्लेवोनोइड्स और रेस्वेराट्रोल बालों की बनावट को भी बेहतर बना सकते हैं, जिससे बाल अधिक मैनेजेबल हो जाते हैं। रेड वाइन एक प्राकृतिक कंडीशनर के रूप में काम करता है, जो बालों को नमी प्रदान करती है।

डैंड्रफ़ दूर करती है रेड वाइन 

रेड वाइन के एंटीफंगल गुण डैंड्रफ़ और स्कैल्प की अन्य स्थितियों का इलाज करने में मदद कर सकते हैं। नियमित रूप से लगाने से स्कैल्प का स्वस्थ वातावरण बना रहता है, जिससे पपड़ी और खुजली की समस्या नहीं होती। रेस्वेराट्रोल के सूजनरोधी गुण सिर की जलन को शांत कर सकते हैं और सेबोरहाइक डर्माटाइटिस जैसी स्थितियों से राहत प्रदान कर सकते हैं।

स्किन और हेयर केयर के लिए रेड वाइन का इस्तेमाल ऐसे करें-

1. फेस मास्क-

रेड वाइन को दही, शहद या ओटमील जैसी सामग्री के साथ मिलाकर हाइड्रेटिंग और एक्सफोलिएटिंग फेशियल मास्क बनाएं। साफ त्वचा पर लगाएं और कुछ देर रखने के बाद इसे धो कर साफ कर ले।

2. बालों को धोएं-

शैम्पू करने के बाद, बालों को चमक और कोमलता देने के लिए रेड वाइन से धोएं। ठंडे पानी से धोने से पहले इसे कुछ मिनट के लिए लगा रहने दें।

3. टोनर-

एक कॉटन पैड को भिगोकर और चेहरे को साफ करने के बाद इसे अपने चेहरे पर लगाकर टोनर के रूप में रेड वाइन का उपयोग करें। यह रोमछिद्रों को कसने और त्वचा को चमकदार बनाने में मदद कर सकता है।

4. स्कैल्प मसाज-

रेड वाइन को नारियल या जैतून के तेल जैसे कैरियर ऑयल के साथ मिलाएं और अपने स्कैल्प पर मसाज करें। अपने नियमित शैम्पू से धोने से पहले इसे 30 मिनट के लिए लगा रहने दें।

Foods For Pregnant Woman

Foods in Pregnancy: आप ने ये जरूर सुना होगा कि प्रेगनेंसी के समय आपकी खाने की आदतें बदल सकती हैं। आपको ऐसे खाद्य पदार्थ मिलेंगे जो आपके फेवेरिट होंगे और जो आपके और आपके बच्चे दोनों के लिए हेल्दी होंगे। पौष्टिक आहार खाने से आपको अपनी प्रेगनेंसी और अपने शरीर में होने वाले नए बदलावों को समर्थन करने में सहाता मिलेगी। प्रेगनेंसी के वक्त हेल्थी खाने में यह जानना आवश्यक है कि कितना खाना है और कौन सा आहार जरूरी है।

इसमें आपके बच्चे के विकास के लिए पर्याप्त पोषक तत्व लेने और आपके साथ-साथ बच्चे के स्वास्थ्य के लिए स्वस्थ वजन बनाए रखने के लिए बैलेंस बनाना भी शामिल है। पोषक तत्व शरीर के निर्माण खंड हैं जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा। आइये जानते हैं कि आपको प्रेगनेंसी में कौन से खाद्य आहार लेने चाहिए-

प्रेगनेंसी में किन खाद्य पदार्थों का सेवन करना है जरूरी, जानते हैं एक्सपर्ट से-

सबसे पहले जाने प्रेगनेंसी के दौरान लिए जाने वाले जरूरी पोषक तत्व

Why the demand for this new process increased to prevent unwanted pregnancy

फोलिक एसिड– फोलिक एसिड मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के कुछ जन्म दोषों को रोकने में मदद करता है।

आयरन– आयरन आपके बच्चे के विकास में मदद करता है और कई महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त आयरन नहीं मिलता है। इसके लिए डॉक्टर आपको कुछ दवाई भी देते है।

आयोडीन– आयोडीन आपके बच्चे के मस्तिष्क के लिए अहम है। अगर आप घर पर नमक का इस्तेमाल करते हैं, तो सुनिश्चित करें कि यह आयोडीन युक्त नमक हो।

कोलीन– कोलीन आपके बच्चे के मस्तिष्क के लिए भी महत्वपूर्ण है। कोलीन युक्त खाद्य पदार्थ चुनें – जैसे कम वसा और वसा रहित डेयरी, अंडे, लीन मांस, सी फूड, बीन्स और दालें।

प्रेगनेंसी में करें इन खाद्य पदार्थों का सेवन

These symptoms of pregnancy start appearing only 3 to 4 days after conceiving, pregnancy is confirmed even before the period is missed

दालें

अगर आप नॉनवेज खाते है या नहीं आपको दालों से प्रोटीन जरूर लेना चाहिए। एक कप पकी हुई दाल में लगभग 17 ग्राम प्रोटीन और लगभग 7 मिलीग्राम आयरन होता है।

दालें बी विटामिन होता हैं, जो आपके बच्चे के मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है और स्पाइना बिफिडा जैसे न्यूरल-ट्यूब डिफेक्ट के खिलाफ एक शक्तिशाली सुरक्षात्मक प्रभाव है, एक जन्म विकार जिसमें रीढ़ ठीक से नहीं बनती है।

नट्स

नट्स छोटे जरूर दिख सकते है लेकिन ये बहुत ताकतवर होचे है। इसमें मैग्नीशियम, जिंक, पोटैशियम और विटामिन ई जैसे महत्वपूर्ण विटामिन और खनिज भरपूर मात्रा में होते हैं, साथ ही प्रोटीन, फाइबर और स्वस्थ वसा भी होते हैं। इन्हें आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है, जिससे ये गर्भावस्था के दौरान खाने के लिए आदर्श स्नैक बन जाते हैं।

एवोकाडो

क्रीम जैसा हरा फल फोलेट से भरपूर होता है, साथ ही इसमें विटामिन बी6 भी होता है, जो बच्चे के लिए स्वस्थ ऊतक और मस्तिष्क के विकास को बढ़ावा देता है और ये आपको मॉर्निंग सिकनेस से निजात दिलाने में भी सहायक हो सकता है।

यह स्वस्थ मोनोअनसैचुरेटेड फैट का भी एक स्वादिष्ट स्रोत है, जो आपके शरीर को फलों और सब्जियों में पाए जाने वाले कई विटामिनों को बेहतर तरीके से अवशोषित करने में मदद करता है।

अंडे
आप शायद जानते होंगे कि अंडे प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत है। ये पकाने में आसान में आसान होते है और एक बड़ा अंडा 6 ग्राम प्रोटीन देता है। अंडे विटामिन डी के कुछ खाद्य स्रोतों में से एक हैं। विटामिन डी आपके बच्चे की हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाने में मदद करने के साथ-साथ आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाए रखने में बहुत मदद करते है।

ओट्स

फाइबर आपको लंबे समय भूख महसूस होने नहीं देता है और गर्भावस्था के दौरान होने वाली असहज कब्ज से बचने में मदद मिल सकती है। ओट्स फाइबर का बेहतरीन स्रोत है। फाइबर के साथ साथ एक कप ओट्स आपके रोजाना मैग्नीशियम का 30 फीसदी से ज़्यादा प्रदान करता है, ये आपके बच्चे को स्वस्थ हड्डियों और दांतों के निर्माण में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

फोटो सौजन्य- गूगल

If laziness has made a home in your fitness journey then don't panic

Electronic Gadget का इस्तेमाल और देर रात तक जगे रहने से सुबह उठना काफी मुश्किल हो जाता है। नींद की कमी आलस की मुख्य वजह होती है जिसका कुप्रभाव वर्कआउट रूटीन पर भी पड़ता है। ऐसे में ज्यादातर लोग वर्कआउट रूटीन को स्किप करने लगते हैं जिसका निगेटिव असर उनके स्वास्थ्य पर भी दिखने लगता है। ऐसे में बॉडी को हेल्दी और एक्टिव बनाए रखने के लिए वर्कआउट से पहले महसूस होने वाले आलस्य को दूर करना जरूरी है।

If laziness has made a home in your fitness journey then don't panic

इसे लेकर एक्सपर्ट का कहना है कि नियमित रूप से वर्कआउट में शामिल ना होना आलस्य को काफी बढ़ावा देता है। इसके कारण वर्कआउट रूटीन को नियमित बनाए रखने नामुमकिन लगने लगता है। इससे बचने के लिए सुबह उठते ही गैजेट्स के इस्तेमाल से बचें और बेड पर ही लेग स्ट्रेचिंग योगाभ्यास करें। इससे आलस्य को दूर भगाने में मदद मिलती है। अलावा इसके दूसरे दोस्तों के साथ एक्सरसाइज करने से कॉम्पीटिशन की भावना बढ़ने लगती है।

इन टिप्स की मदद से सुस्ती को दूर किया जा सकता है

1. फिटनेस गोल्स करें सेट

वर्कआउट रूटीन को कामयाब बनाने के लिए सबसे पहले गोल्स को सेट करना बहुत ज़रूरी है। इससे व्यायाम से पहले बढ़ने वाला आलस्य और नींद की समस्या को दूर करने में मदद मिलती है। इसके लिए स्वयं वर्कआउट चैलेंज तय करें और उसे पूरा करने के लिए खुद को प्रोत्साहित करते रहें। समय-समय पर गोल्स सेट करते हैं और उन्हें अचीव करते हुए आगे बढ़ें।

2. आसान एक्सरसाइज़ से करें शुरुआत

If laziness has made a home in your fitness journey then don't panic

वेट लिफ्टिंग और हाई इंटैसिटी एक्सरसाइज़ शुरूआत में थकान का कारण बनने लगते है। इससे शारीरिक तनाव की समस्या बढ़ने लगती है। लेकिन तन और मन दोनों के लिए ही फायदेमंद साबित होती है। ऐसे में व्यायाम को नियमित बनाए रखने के लिए आसान एक्सरसाइज़ को अपने रूटीन का हिस्सा बनाएं और फिर धीरे धीरे उसें बदलाव लेकर आएं। इससे शरीर को न केवल थकान से बचने में मदद मिलती है बल्कि बॉडी फिश्र रहती है।

3. स्ट्रेचिंग से होगा आलस्य दूर

सुबह उठने के बाद आलस्य की समस्या को दूर करने के लिए कुछ देर स्ट्रेचिंग करें। इससे शरीर का ब्लड सर्कुलेशन नियमित हो जाता है और लेज़ीनेस दूर होने लगती है। टांगों की स्ट्रेच करने से लेकर बाजूओं और कमर की स्ट्रेचिंग आवश्यक है। इससे शारीरिक अंगों में महसूस होने वाली स्टिफनेस से बचा जा सकता है और ऑक्सीज़न का फ्लो भी उचित बना रहता है।

4. दोस्तों के साथ करें वर्कआउट प्लान

अपनी फिटनेस जर्नी को रेगुलर बनाए रखने के लिए वर्कआउट पार्टनर चुनें। इससे फिटनेस रूटीन को पूरा करने के लिए कॉपिटिशन की भावना बढ़ने लगती है, जिससे आलस्य की समस्या से राहत मिलती है और सेल्फ मोटिवेशन की भावना काफी हद तक बढ़ जाती है।

5. सोने और उठने का समय तय करें

बहुत बार नींद पूरी ना होना भी लेज़ीनेस को बढ़ा देता है। ऐसे में वर्कआउट से पहले आलस्य को दूर करने के लिए रोज़ाना एक नियमित समय पर सोएं और उठें। इससे न केवल स्वास्थ्य संबधी समस्याओं से बचा जा सकता है बल्कि नींद की गुणवत्ता भी बढ़ने लगती है और शरीर एक्टिव बना रहता है। खुद को वर्कआउट के लिए तैयार करने से पहले 06 से 08 घंटे की नींद रोज़ाना लें और समय से उठें।

फोटो सौजन्य- गूगल

Government's alert on the havoc of heat

गर्मी का कहर दिनों दिन बढ़ रहा है और इसी वजह से दिल्ली का तापमान 48 डिग्री तक जा पहुंचा है। यहां कई इलाकों में हद से ज्यादा गर्मी बढ़ने से लू के कारण रेड अलर्ट घोषित किया गया है। चिलचिलाती गर्मी जहां निर्जलीकरण का कारण बनती है। वहीं, बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में तेज़ धूप और गर्मी के कारण सिरदर्द और डायरिया का जोखिम बढ़ रहा है। जानते हैं हीट एग्जॉर्शन के नुकसान और इससे बचने के उपाय।

सेहत के लिए नुकसानदेह है गर्मी का बढ़ना

अत्याधिक गर्मी के संपर्क में रहने से शरीर में हीट स्ट्रोक का खतरा बना रहता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक गर्मी का प्रभाव बढ़ने से पैरों में क्रैंप्स, चक्कर आना, सिरदर्द और डिज़िनेस बढ़ने लगती है। इंटरनल मेडिसिन एक्सपर्ट के मुताबिक हीट स्ट्रोक के कारण अक्सर बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी को थकान महसूस होना, अत्यधिक पसीना और हीट क्रैप्स का सामना करना पड़ता है।

इस बारे में फिजीशियन बताती हैं कि तापमान बढ़ने के चलते शरीर का थर्मोरेग्यूलेशन असंतुलित होने लगता है। जिससे हीटस्ट्रोक की समस्या का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में गर्भवती महिलाओं, हृदय रोगियों, बच्चों और बुजुर्गों को इस समस्या से बचने के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।

हीट एग्जॉर्शन से बचने के लिए शरीर में इलेक्‍ट्रोलाइटस की मात्रा को बनाए रखना ज़रूरी है। इससे शरीर हाइड्रेट रहता है।

जानते हैं हीट स्ट्रोक से बचने के कुछ खास उपाय

1. सिर को अच्छे से ढकें

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक धूप के संपर्क में आने से सिर, आंखों, स्किन, बालों और होठों पर बुरा असर नज़र आने लगता है। ऐसे में तेज़ गर्मी से बचने के लिए स्कार्फ, कैप, हैट और छाते का प्रयोग करें। अलावा इसके आंखों को प्रोटेक्ट करने के लिए काला चश्मा ज़रूर पहनें। साथ ही दोपहर के समय बाहर निकलने से भी बचना चाहिए।

2. बाहरी एक्टीविटी से बचें

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लू से शरीर को बचाने के लिए आउटडोर खेलों से बचें। इससे शरीर में निर्जलीकरण का जोखिम कम हो जाता है। लगातार बढ़ते तापमान को देखते हुए इनडेर खेलों में हिस्सा लें और शरीर को ठंडा रखने की कोशिश करें। अन्यथा थकान, चक्कर आने और बेहोशी का सामना करना पड़ सकता है।

3. ठंडे शरबत का सेवन करें

आहार में नींबू पानी, नारियल पानी, बेल का शरबत और सत्तू जैसे नेचुरल ड्रिंक्स को अपने रूटीन में शामिल करें। इससे शरीर में इलेक्‍ट्रोलाइटस का नियमित स्तर बना रहता है। इसके अलावा मौसमी फलों और सब्जियों का सेवन करनें इससे डाइजेशन बूसट करने में मदद मिलती है।

4. बाहर का खाना खाने से करें परहेज़

फ्रेस और घर का पका खाना खाने से शरीर नॉज़िया, सिरदर्द डायरिया के खतरे से बचा रहता है। ऐसे में मसालेदार और ऑयली खाना खाने की जगह हल्का खाना खाएं और घर का पका खाना आहार में शामिल करे। इसके अलावा किसी भी मील को स्किप करने से बचें। इससे शरीर में एनर्जी की कमी को सामना करना पड़ता है। साथ ही कमज़ोरी और थकान बढ़ने लगती है।

गर्मी में बुजुर्गों का इस प्रकार से रखें ख्याल

तेज़ धूप में बाहर निकलने से अक्सर बचें। इससे शरीर में थकान बढ़ने लगती है और शरीर का संतुलन खोने लगता है। इससे चक्कर आने की संभावना बनी रहती है।
बासी खाना खाने से बचें और घर का पका ताज़ा और हल्का खाना अपने आहार में शामिल करें।
ज्यादा मात्रा में चाय और कॉफी का सवेन करने से बचें। इससे शरीर में निर्जलीकरण का खतरा बना रहता है।
कमरे का तापमान गर्म न रहने दें। शरीर का ठंडा रखने के लिए एयर कंडीशनर, कूलर और पंखे के सामने बैठें।
हल्के रंगों और ब्रीथएबल फ्रब्रिक यानि कॉटन के कपड़े पहनें। इससे शरीर गर्मी के प्रकोप से दूर रहता है।

बच्चों का गर्मी में ऐसे रखें ख्याल

  • धूप में निकलने से बचें। इससे बच्चों में डिहाइड्रेशन का खतरा बना रहता है। घर से बाहर निकलने से पहने पानी की बोतल अपने साथ रखें।
  • गर्मी में लगातार खेलने से बच्चो में थकान बढ़ने लगती है। ऐसे में दिन में कुछ देर उनके आराम के लिए समय निकालें। इससे बच्चे के शरीर में एनर्जी बनी रहती है।
  • शाम के समय आउटडोर एक्टीविटीज़ के लिए जाएं। उस समय तापमान कम होने लगता है, जिससे शरीर में लू का खतरा कम हो जाता है।
  • प्रोसेस्ड फूड और शुगरी पेय पदार्थों का सेवन करने से बचें। इसकी जगह प्राकृतिक पेय पदार्थ पीएं और हेल्दी मील लें।

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To uplift your breasts and give them the right shape

Breast Uplift: सही ब्रा का इस्तेमाल नहीं करना, गलत पोश्चर, ब्रेस्ट फीडिंग और मेनोपॉज के बाद अक्सर महिलाओं को सैगी ब्रैस्ट की समस्या से दो-चार होना पड़ता है। हार्मोन में आने वाली चैंजिंग ब्रेस्ट की मसल्स को प्रभावित करने लगते हैं। इसके कारण महिलाओं को सैगी ब्रेस्ट की समस्या का सामना करना पड़ता है। ब्रेस्ट के मसल्स में कसावट लाने के लिए आहार में थोड़ा बदलाव के अलावा कुछ समय एक्सरसाइज करना महत्वपूर्ण है। आइये जानते हैं ब्रेस्ट को अपलिफ्ट करने में मददगार 4 अहम एक्सरसाइज-

महिलाओं को क्यों करना पड़ता है सैगी ब्रेस्ट का-

इस बारे में एक्सपर्ट का कहना हैं कि सही पोश्चर में ना बैठने से मसल्स और लिगामेंटस पर उसका असर दिखने लगता है। इससे मसल्स की कसावट कम होने लगती है। इसका असर ब्रेस्ट की आकार पर पड़ने लगता है। इससे ब्रेस्ट धीरे धीरे लटकने लगती है। ब्रेस्ट के नीचे पाए जाने वाले पेक्टोरलिस मेजर और पेक्टोरेलिस माइनर मसल्स मौजूद होते हैं। इनकी मज़बूती को बनाए रखने के लिए दिनभर में कुछ समय मॉफडरेट एक्सरसाइज़ के लिए निकालने से फायदा मिलता है।

ब्रेस्ट को अपलिफ्ट करने वाली 4 एक्सरसाइज़

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1. पुशअप्स

मसल्स को मज़बूत बनाने के लिए पुशअप्स का अभ्यास करना चाहिए। इसके करने से शरीर का वज़न कंधों पर आने लगता है, जिससे अपर बॉडी मसल्स में कसावट आने लगती है और सैगी ब्रेस्ट की समस्या से मुक्ति मिल जाती है।

जानें करने की विधि-

इसे करने के लिए जमीनपर पेट के बल लेट जाएं। अब अपने दोनों हाथों को कंधो के पास लेकर आएं। बाजूओं को कंधों से ज्यादा चौड़ाई पर खोलें। अब शरीर के उपर हिस्से को उपर की ओर उठाएं। इससे शरीर का वज़न कंधों पर आने लगता है। इसके बाद पैरों की उंगलियों को जमीन पर टिकाएं। शरीर को उपर की ओर लेकर जाएं और फिर नीचे लेकर आएं। 10 से 15 बार इस एक्सरसाइज़ को 2 से 3 सेट्स में करें।

2. डंबबैल फ्लाई

पेक्टोरल मसल्स की मज़बूती के लिए डंबबैल फ्लाई एक आसान एक्सरसाइज़ है। इसे करने से शरीर में स्टेमिना बिल्ड होने लगता है और ब्रेस्ट में कसावट आने लगती है। डेली इस एक्सरसाइज़ का अभ्यास करने से शरीर में बढ़ने वाली स्टिफनेस को दूर करने में मदद मिलती है।

जानें इसे करने की विधि

इसे करने के लिए सीधे बैंच लेट जाएं और टांगों को जमीन पर टिकाकर रखें। अब दोनों हाथों में वज़न को उठाएं और उपर ले जाने की जगह दोनों हाथों को फैलाएं और फिर एक स्थान पर ले आएं। इस एक्सरसाइज़ को 08 से 10 बार दोहराएं।

3. केबल क्रासओवर

चेस्ट मसल्स को हेल्दी बनाए रखने के लिए केबल क्रासओवर एक्सरसाइज़ का एक्सरसाइज करना जरूरी है। इसे नियमित रूप से करने से शरीर के पोश्चर में सुधार आने लगता है और शरीर में एनर्जी का लेवल भी बढ़ने लगता है।

जानें इसे करने की विधि

इस अभ्यास को करने के लिए सीधे खड़े हो जाएं और दोनों हाथों से रस्सी को अपनी ओर खीचें। इससे मसल्स स्ट्रेच होते हैं और ब्रेस्ट की मांसपेशियों में कसावट आने लगती है। इसके अलावा शरीर में जमा अतिरिक्त कैलोरीज़ को बर्न करने में भी मदद मिलती है।

4. डंबबेल चेस्ट प्रैस

अपर बॉडी को हेल्दी और टोन बनाए रखने के लिए डंबबेल चेस्ट प्रैस बेहद फायदेमंद है। इसे करने ये चेस्ट पर जमा चर्बी को बर्न करने के अलावा ब्रेस्ट अपलिफ्ट करने में भी मदद मिलती है। नियमित रूप से इसका अभ्यास करने से बॉडी में ब्लड का सर्कुलेशन नियमित बना रहता है।

जानें इसे करने की विधि

इसे करने के लिए किसी बेंच के एक कोने पर बॉडी के उपर हिस्से को टिका लें। अब अपनी क्षमता के अनुसार डंबबेल को हाथों में पकड लें। इस दौरान घुटनों को मोड़कर रखें और पैरों को मज़बूती से जमीन पर टिका लें। अब डंबबेल को नीचे लाएं और फिर उपर की ओर लेकर जाएं। इससे चेस्ट मसल्स को पूरी मज़बूती मिलती है।

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If you don't want to invite diseases then stop using sodium immediately

Sodium: शरीर को हेल्दी रखने के लिए संतुलित आहार का होना अहम है। इसके लिए सभी न्यूट्रिएंट्स का होना जरूरी है। किसी भी एक न्यूट्रिएंट की कमी या ज्यादा कई तरह के स्वास्थ्य प्रोब्लम्स को आमंत्रित करता है। ऐसा ही एक पोषक तत्व सोडियम है। सोडियम का इजाफा कई बीमारियों की वजह बन सकती है। यह हाई ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारियों का कारण भी बन सकता है। इसलिए हमें इसके इस्तेमाल पर पूरा ध्यान देन की जरूरत है।

कितना सोडियम हेल्द के लिए ठीक है, डॉक्टर से यह सलाह आवश्य लें-

  • 14 साल और उससे अधिक उम्र के व्यक्ति : प्रतिदिन 2,300 मिलीग्राम से ज़्यादा नहीं
  • 9 से 13 साल की आयु के बच्चे:                     प्रतिदिन 1,800 मिलीग्राम से ज़्यादा नहीं
  • 4 से 8 साल की आयु के बच्चे:                      प्रतिदिन 1,500 मिलीग्राम से ज़्यादा नहीं
  • 1 से 3 साल की आयु के बच्चे:                       प्रतिदिन 1,200 मिलीग्राम से ज़्यादा नहीं

जानें भोजन में सोडियम को कम करने के तरीके

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1. कम सोडियम वाले भोजन

हम जो सोडियम खाते हैं, उसका ज़्यादातर हिस्सा हमारे नमक के डिब्बे से नहीं आता। सोडियम लगभग सभी प्रोसेस्ड और तैयार खाद्य पदार्थों में होता है, जिन्हें हम खरीदते हैं। यहां तक कि ऐसे खाद्य पदार्थ भी, जिनका स्वाद नमकीन नहीं होता, उनमें भी सोडियम मौजूद होता है। जैसे ब्रेड या टॉर्टिला।
जब आप खरीदारी कर रही हैं, तो इन खाद्य पदार्थों को सीमित करें। जिनमें सोडियम की मात्रा ज़्यादा होती है, उन्हें एवॉइड करें। प्रोसेस्ड मीट, सॉसेज, पेपरोनी, सॉस, ड्रेसिंग, इंस्टेंट फ्लेवर्ड फ़ूड, जैसे फ्लेवर्ड चावल और नूडल्स खरीदना कम कर कर दें। उनके स्थान पर लो सोडियम वाले खाद्य पदार्थों की तलाश करें।

2. लेबल की जांच करें

खाद्य पदार्थों में सोडियम की मात्रा की जांच करने और विभिन्न विकल्पों की तुलना करने के लिए न्यूट्रिशन फैक्ट लेबल का उपयोग करें।”कम सोडियम” या “नमक नहीं मिलाया गया” लेबल वाले खाद्य पदार्थों की तलाश करें।

ध्यान रखें कि कुछ सोडियम वाले खाद्य पदार्थों पर ये लेबल भी नहीं होते हैं। इसलिए सुनिश्चित करने के लिए न्यूट्रिशन फैक्ट लेबल की जांच करनी होगी। सोडियम की जांच करने के लिए पोषण तथ्य लेबल का उपयोग करना सीखें।

3. हेल्दी विकल्प चुनें

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अधिक सोडियम वाले खाद्य पदार्थों को स्वस्थ विकल्पों से बदलें। नमकीन प्रेट्ज़ेल या चिप्स की बजाय बिना नमक वाले नट्स खाएं।
डेली मीट या सॉसेज खरीदने की बजाय ताज़ा चिकन, लीन मीट या सी फ़ूड पकाने का प्रयास करें। ताज़ी सब्जियां, सॉस के बिना फ्रोजेन सब्जी या कम सोडियम वाली डिब्बाबंद सब्जियां खाएं।

4. घर का खाना ज़्यादा खाएं

अपना भोजन खुद बनाना सोडियम कम खाने का एक बढ़िया तरीका है। आप अपने भोजन में क्या डालती हैं, इस पर आपका नियंत्रण होता है। खाना बनाते वक्त कुछ बातों को ध्यान में रख सकती हैं।

अगर कैन फ़ूड का उपयोग करती हैं, तो खाने या पकाने से पहले उन्हें धो लें। इससे नमक की कुछ मात्रा निकल जाएगी। ऐसे मसाले और स्प्रेड चुनें, जो बिना नमक वाले हों या जिनमें सोडियम कम हो। अगर आप नियमित स्प्रेड का उपयोग करती हैं, तो कम इस्तेमाल करें। अपने भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए नमक की जगह अदरक या लहसुन जैसी अलग-अलग हर्ब और मसाले काम में लाएं।

5. बाहर खाने पर लो सोडियम फूड का चुनाव

अगर किसी रेस्तरां में खाना खाने आई हैं, तो पूछें कि मेनू में कोई कम सोडियम वाला व्यंजन है या नहीं। जब आप ऑर्डर करें, तो उनसे बोले कि वे आपके खाने में नमक ना डालें। ड्रेसिंग और सॉस अलग से लें ताकि आप ज़रूरत के हिसाब से ही नमक डालें।

6. आहार में अधिक पोटैशियम शामिल करें

हाई सोडियम वाले खाद्य पदार्थों की जगह हाई पोटेशियम वाले खाद्य पदार्थ लें। पोटेशियम युक्त खाद्य पदार्थ खाने से ब्लड प्रेशर कम करने में मदद मिल सकती है।

पोटैशियम के अच्छे स्रोतों में शामिल हैं-

आलू
खरबूजा
केला
बीन्स
दूध
दही

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Fertility Rate: If you want to plan a baby

Fertility Rate (फर्टिलिटी रेट) में कमी आना कई वजहों से आ सकती है। कुछ माइक्रो न्यूट्रिएंट फर्टिलिटी रेट बढ़ा सकते हैं। ऐसे कई खाद्य पदार्थ हैं जो माइक्रो न्यूट्रिएंट से भरपूर होने के साथ-साथ फर्टिलिटी रेट में भी इजाफा कर सकते हैं।

आखिर आजकल क्यों ज्यादा हो रही है इमफर्टिलिटी

Fertility Rate: If you want to plan a baby

लोगों में बदलती जीवनशैली, स्मोकिंग और नशा का सेवन, मोटापा, अनियमित पीरियड्स, लो सपर्म काउंट जैसे कई कारण इमफर्टिलिटी के लिए जिम्मेदार हैं। कुछ माइक्रोन्यूट्रिएंट फर्टिलिटी रेट बढ़ा सकते हैं। ऐसे कई खाद्य पदार्थ हैं, जो माइक्रो न्यूट्रिएंट से भरपूर होते हैं और फर्टिलिटी रेट भी बढ़ा सकते हैं।

एग क्वालिटी बढ़ाता है फोलेट

फोलेट को विटामिन B-9 के रूप में भी जाना जाता है। यह शरीर को रेड ब्लड सेल्स बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फोलेट लेवल अंडे की गुणवत्ता, परिपक्वता, निषेचन और प्रत्यारोपण के लिए अहम है। फोलेट की कमी गर्भधारण की क्षमता को प्रभावित कर सकती है। फोलेट स्वाभाविक रूप से बीन्स, नट और सीड्स, अंडे, ताजा पत्तेदार साग, चुकंदर, संतरे, नींबू और अंगूर जैसे खट्टे फल, ब्रसेल्स स्प्राउट्स, ब्रोकोली, केल और एवोकाडो जैसे खाद्य पदार्थों में भी पाया जाता है।

ओव्यूलेशन में अहम भूमिका निभाता है जिंक

जिंक ओव्यूलेशन और पीरियड में महत्वपूर्ण रोल अदा करता है। यह स्पर्म क्वालिटी और स्पर्म मोबिलिटी में सुधार करने में मदद करता है। यह सूजन बढ़ाने वाले एजेंटों के खिलाफ कार्य करता है। हार्मोनबैलेंसर के रूप में जिंक टेस्टोस्टेरोन और प्रोजेस्टेरोन को संतुलित करता है। यह महिला और पुरुष दोनों के यौन स्वास्थ्य को मजबूती देता है। रेड मीट जिंक का एक बढ़िया सोर्स है। कद्दू के बीज, हैम्प सीड्स, तिल के बीज और अलसी के बीज में भारी मात्रा में जिंक पाया जाता है। डेयरी प्रोडक्ट्स, सब्जियां, नट्स, डार्क चॉकलेट भी इसके स्रोत हैं।

फीटस डेवलपमेंट में मदद करता है Vit- A

पर्याप्त विटामिन- A का स्तर अंडे की गुणवत्ता और भ्रूण के विकास में मदद करता है। यह स्वस्थ प्रतिरक्षा प्रणाली को बनाए रखने, विकास और प्रजनन स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है। इसकी कमीसे फर्टिलाइज़ेशन नहीं हो पाता है और फीटस में विकृति आ सकती है। अच्छे स्रोत प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थों में बीफ़ लिवर, कॉड लिवर आयल, शकरकंद, गाजर और कई अन्य फल और सब्जियां शामिल हैं।

ल्यूटियल फेज के लिए सेलेनियम

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फर्टिलिटी के लिए सेलेनियम एक एसेंशियल ट्रेस मिनरल है, जिसका उपयोग प्रोटीन बनाने के लिए किया जाता है। यह एक एंटीऑक्सीडेंट भी है, जो प्रजनन क्षमता में भूमिका निभा सकता है। सेलेनियम ल्यूटियल फेज में अहम भूमिका निभाता है। ल्यूटियल फेज की कमी से अपर्याप्त प्रोजेस्टेरोन सीक्रेशन और लो एंडोमेट्रियम हो सकता है। जिन खाद्य पदार्थों में सेलेनियम होता है, उनमें ब्राजील नट्स, सी फूड्स, पोल्ट्री, ब्राउन राइस और होल व्हीट ब्रेड भी शामिल हैं।

प्रजनन क्षमता बढ़ा सकता है Vit- D

विटामिन-D रिसेप्टर्स पूरे प्रजनन टीशू में वितरित होते हैं। प्रजनन क्षमता में विटामिन-D की अहम भूमिका होती है। विटामिन-D ट्रीटमेंट से टेस्टोस्टेरोन का स्तर बढ़ सकता है। इससे फर्टिलिटी रेट भी बढ़ सकती है। सूर्य की किरण के अलावा, विटामिन-D गाय के दूध, सोया मिल्क, संतरे के रस में भी पाया जाता है।

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Prepare yourself before becoming a mother

Pregnancy: अगर आप प्रेग्रेंट हैं और बार-बार उल्टियां आ रही है? आपके वजन में भी कमी आ रही है? हो सकता है कि आप मॉर्निंग सिकनेस की शिकार हैं। अब आपके दिमाग में यह सवाल लाज़मी है कि आपको तो यह समस्या दिन के किसी भी पहर में हो जाती है। तो क्या ऐसा होना मुमकिन है। यह समस्या किसी भी वक्त आपकी परेशानी का सबब बन सकती है।यहां सवाल है पैदा होता है कि भला यह समस्या होती कब है? इसे लेकर डॉक्टर का कहना है कि प्रेग्रेनेंसी के दौरान एक महिला के बॉडी में हार्मोन का बदलाव या असंतुलन होना आम बात है।

खासतौर पर एस्ट्रोजन हार्मोन का बढ़ना, जिसका नतीजा हो सकती है मॉर्निंग सिकनेस। यह समस्या 16 से 20 हफ्तों में खत्म हो जाती है। अध्ययन बताते हैं कि लगभग 75 फीसदी गर्भवती महिलाएं इससे जूझती हैं। यह समस्या तनाव, अधिक काम करने, कुछ खाद्य पदार्थो को खाने आदि के कारण भी हो सकती है। यह समस्या इनके अलावा ब्लड शुगर के कम स्तर के कारण भी हो सकती है। थायरॉइड और लिवर से जुड़ी बीमारियां भी इसका कारण बन सकती हैं। लिहाजा, बेहतर होगा कि आप अपनी इस समस्या का कारण जानें और उसके हिसाब से इससे निपटने की रणनीति तय करें। जरुरत होने पर मेडिकल परामर्श लें।

क्या है लक्ष्ण

सबसे पहले तो यह समझ लेना होगा कि आखिर है क्या मॉर्निंग सिकनेस? दिन में कई बार उल्टी होना, शरीर में पानी की कमी होना (जिसका अंदाजा पेशाब के रंग से लगता है), खड़े होने पर चक्कर आना, वजन कम होना, किसी तरह की खास महक, खाने-पीने की चीजों के स्वाद के प्रति संवेदनशील हो जाना और उसके कारण उल्टी होना, बुखार, बार-बार सिर दर्द, धड़कन का तेज होना आदि मॉर्निंग सिकनेस के लक्षण हैं।

इन बातों का रखें ध्यान

If you are troubled by vomiting during pregnancy then don't panic

कुछ बातों का ख्याल रखकर मॉर्निंग सिकनेस को काफी हद तक नियंत्रित रखा जा सकता है। इस बाबत आहार सलाहाकार के मुताबिक रात के खाने और सुबह के नाश्ते के बीच का अंतराल लंबा हो जाता है। ऐसे में यह समस्या और बढ़ सकती है। लिहाजा, इस बात का ख्याल रखें। इसके लिए आपको अपने रात के खाने को देर से करने की जरूरत नहीं है बल्कि आप उसे जितना जल्दी और हल्का लेंगी, उतना ही अच्छा होगा। मुमकिन हो तो सोने के कुछ देर पहले दूध को अपनी खुराक में जगह दें। उसमें आप पिसे हुए मेवे भी मिला सकती हैं। सुबह उठते ही काम में जुटने से बचें।

डॉक्टर के अनुसार समस्या के दौरान खुद को समझें यानी आपको किन चीजों से परेशानी हो रही है, उस पर जरूर गौर करें। साथ ही इस सोच से दूर रहे कि आपको दो लोगों के हिस्से की खुराक लेनी है। अपने पोषण में बढ़ोतरी करें खुराक में नहीं। ज्यादा खाना भी शरीर में भारीपन और थकान का कारण बन सकता है। नीबू पानी का सेवन करें। नारियल पानी पोटैशियम का अच्छा स्रोत है। इसे भी खुराक में शामिल करें। एकमुश्त खाने की जगह आपको 2-2 घंटे के अंतराल में कम-कम मात्रा में कुछ-न-कुछ खाना चाहिए। ये छोटे-छोटे ब्रेक न सिर्फ आपको जलन से बचाएंगे बल्कि गैस से भी निजात मिलेगी।

भारी खाने के बाद 30 मिनट तक बलबलगम चबाना आपके पाचन को सुधारने में सहायक रहता है। इससे लार ग्रंथियां उत्तेजित होती हैं और लार अधिक बनती है, जो कि पेट के एसिड कम करने का काम करता है। अदरक का सेवन करें। यह शुगर स्तर को भी नियंत्रित रखेगी। अदरक सुबह की थकान से भी निजात देती है। हल्दी जलन कम करने में तो कारगर है ही, साथ ही यह दर्द कम करती है। यह ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करती है। वहीं, कालीमिर्च में यह क्रोमियम सर्वोत्तम श्रोत है। यह ब्लड शुगर को ठीक रखती है। इसे रोज 30 एमसीजी खाना चाहिए। इलाइची खाने से आपका जी नहीं मिचलाएगा।

कब होती है समस्या?

आमतौर पर महिलाओं का मॉर्निंग सिकनेस की यह समस्या गर्भावस्था के दौरान हो सकती है। अलावा इसके यह समय शरीर में ब्लड शुगर के स्तर में कमी आने पर भी होती है। थायरॉइड और लिवर से जुड़ी बीमारियां भी मॉर्निंग सिकनेस की वजह बन सकती हैं। समस्या होने पर अपने डॉक्टर से राय जरूर लें।

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