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Category Archives: Health

Petroleum Jell: Many problems in winter, but only one solution

Petroleum Jelly: सर्दियां आते ही होठों का फटना, एड़ियां फटना आम हो जाता है। ऐसे में पेट्रोलियम जेली की डिमांड भी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। हम इसे होठों को हाइड्रेट और मॉइश्चराइज करने के लिए प्रयोग करते हैं। इसके फायदे सिर्फ होठों तक ही सीमित नहीं है। आप इसे कई अन्य समस्याओं के उपचार के मद्देनजर भी इस्तेमाल कर सकती हैं। यह आपके लिए बेहद कारगर साबित होंगे। आइये जानते हैं कि पेट्रोलियम जेली के कुछ जरूरी फायदे।

जानें किन-किन जगहों पर कारगर होती हैं पेट्रोलियम जेली

1. स्किन हीलिंग बढ़ाती है

पेट्रोलियम जेली काफी वर्षों से सभी का मनपसंद मॉइश्चराइजिंग प्रोडक्ट बना हुई है। इसके साथ ही डर्मेटोलॉडिस्ट भी इसे काफी पसंद करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि पेट्रोलियम जेली आपकी स्किन में पानी को सील कर देता है जिससे त्वचा ड्राई नहीं हो पाती है।

आपके चोट या घाव को भरने के लिए मॉइश्चर की जरूरी है, पेट्रोलियम जेली घाव के आसपास की त्वचा में मॉइश्चर मेंटेन रखता है जिससे कि हीलिंग पॉवर बूस्ट हो जाता है। वहीं यह मॉइश्चराइजर पुराने दाग धब्बों के रेडनेस को भी कम करने में मदद करता है और इनके इस्तेमाल से इन्फेक्शन का खतरा भी नहीं होता।

2. बच्चों में एटॉपिक डर्मेटाइटिस में भी पेट्रोलियम जेली का होता है काम

Petroleum Jelly: Many problems in winter, but only one solution

पेट्रोलियम जेली के इस्तेमाल से न्यूबॉर्न बेबीज की त्वचा पर होने वाली खुजली कम हो जाती है और इंफेक्शन का खतरा भी नहीं रहता। अगर आपकी फैमिली हिस्ट्री एटॉपिक डर्मेटाइटिस की रही है, तो ऐसे में बच्चों की त्वचा पर पेट्रोलियम जेली का प्रयोग इस समस्या को अवॉइड करने के लिए एक बेहद किफायती तरीका साबित हो सकता है। आप इसे बच्चे के जन्म के 03 से 04 हफ्ते के बाद से उनकी स्किन पर अप्लाई कर सकती हैं।

3. एक्जिमा और सोरायसिस की स्थिति में कारगर है

एग्जिमा और सोरायसिस दो स्किन कंडीशंस हैं, वहीं ठंड के मौसम में यह दोनों आपको अधिक परेशान कर सकते हैं। ऐसे में पेट्रोलियम जेली का इस्तेमाल इसमें आपकी मदद कर सकता है। यह इन्फ्लेमेशन को कम करते हुए त्वचा में अंदर से मॉइश्चर मेंटेन रखता है, जिसकी वजह से खुजली नहीं होती और आपकी त्वचा पर कम से कम स्क्रैच आते हैं। पेट्रोलियम जेली को इस्तेमाल करने का सबसे सही तरीका है, अपनी त्वचा को भिगोए और जब यह हल्की गीली हो, तो इसपर पेट्रोलियम जेली अप्लाई करें।

4. विंड बर्न से त्वचा को प्रोटेक्ट करता है

Petroleum Jell: Many problems in winter, but only one solution

ठंडी एवं शुष्क हवा और वातावरण के बढ़ते तापमान में आपकी त्वचा को प्रोटेक्ट करती है। थोड़ी सी पेट्रोलियम जेली लें और इसकी एक पतली लेयर को अपनी त्वचा पर अप्लाई करें। वहीं, अगर आपकी स्किन पर अधिक एक्ने होते हैं, तो त्वचा पर सभी ओर पेट्रोलियम जेली लगाने से बचें, क्योंकि इनके माध्यम से बैक्टीरिया और तेल स्किन में ट्रैप हो सकते हैं। इसलिए इन्हें केवल प्रभावित जगह पर ही अप्लाई करें।

5. आपके पेट्स के पॉज को करे प्रोटेक्ट

अपने पेट डॉग्स को सर्दियों की सैर पर ले जाने से पहले उसके पंजे के पैड पर थोड़ी सी पेट्रोलियम जेली रगड़ें। यह उनके पैरों को फुटपाथ पर ठंड और साल्ट से बचाव में मदद करेगा। यदि आपके पालतू जानवर को एटोपिक जिल्द की सूजन है, तो यह तैलीय परत उसकी त्वचा को मॉइस्चराइज़ रखने में भी मदद करेगा।

6. नाखूनों को करें मॉइश्चराइज

आपको अपने नाखून को मॉइश्चराइज करने के लिए महंगे प्रोडक्ट्स खरीदने की आवश्यकता नहीं है। पेट्रोलियम जेली आपके हाथ की स्किन से लेकर नाखूनों के चारों ओर की त्वचा को पूरी तरह से हाइड्रेटेड और मॉइश्चराइज रहने में मदद करेगी। इससे आपके नाखून भी सॉफ्ट होते हैं और नेल इनफेक्शन का खतरा भी नहीं होता।

7. आई मॉइस्चराइजर

आंखों के चारों ओर की परत बेहद पतली होती है, और यह आसानी से प्रभावित हो जाती है। ऐसे में ठंड के मौसम में आंखों के नीचे की त्वचा भी ड्राई हो जाती है। आप इस पर हर प्रोडक्ट को अप्लाई नहीं कर सकती, क्योंकि अधिक केमिकल से त्वचा और ज्यादा डल हो जाती है। ऐसे में पेट्रोलियम जेली आपकी त्वचा को मदद पहुँचती है। यह आंखों के नीचे की त्वचा को बिना किसी साइड इफेक्ट के अंदरुनी रूप से मॉइश्चराइज करती है, और इसे प्लंपी और ग्लोइंग बनाता है। हालांकि, इससे किसी प्रकार का एलर्जिक रिएक्शन नहीं होता परंतु यह बैक्टीरिया को अट्रैक्ट कर सकता है, इसलिए इसे थोड़े मात्रा में अप्लाई करें।

8. मेकअप रिमूवर के तौर पर इस्तेमाल

पेट्रोलियम जेली एक प्रभावी मेकअप रिमूवर के तौर पर जानी जाती है। जैसे कि हम हर चीज को अपनी आंखों पर अप्लाई नहीं कर सकते, ऐसे में पेट्रोलियम जेली से अपने आई मेकअप को रिमूव करना एक अच्छा आईडिया है। अलावा इसके यह किसी भी मैट लिपस्टिक को पूरी तरह से रिमूव कर देता है। अगर आप अपने लिए एक सुरक्षित मेकअप रिमूवल की तलाश में है, तो पेट्रोलियम जेली आपके लिए एक बेस्ट ऑप्शन साबित हो सकती है।

फोटो सौजन्य- गूगल

As soon as winter starts, diseases start in children

Winter: ठंड शुरू होते ही बच्चों को सर्दी में होने वाली नॉर्मल बीमारियों का डर बढ़ जाता है। सर्दी का मौसम, बच्चों में फ्लू और सांस की तकलीफ जैसी बीमारियों में इजाफा कर देता है। खासकर ठंड के मौसम में भीड़-भाड़ वाली प्लेस पर जाने पर होता है। बता दें कि जिन बच्चों का प्रतिरक्षा प्रणाली होती है उन्हें बीमारी का खतरा ज्यादा होता है। छोटे बच्चों की तबीयत खराब होने के जोखिम को कम से कम करने के लिए माता-पिता और केयर करने वालों को सतर्क करना चाहिए।

जानिए सर्दियों में बच्चों में होने वाली आम बीमारियां

1. ब्रोंकियोलाइटिस-

इस स्थिति में फेफड़ों के एयरवेज में सूजन हो जाती है, इससे कफ बनने लगता है और सांस संबंधी परेशानी होती है। खांसी, बुखार, नाक बहना और तेजी से सांस लेना सामान्य लक्षण हैं। लगभग सभी बच्चे दो साल की उम्र तक इस संक्रमण का अनुभव करते हैं। इनमें से ज्यादातर स्वाभाविक रूप से ठीक हो जाते हैं।

2. सर्दी-जुकाम

As soon as winter starts, diseases start in children

यह वायरस की वजह से होने वाली एक आम बीमारी है। इसमें आमतौर पर बुखार, खांसी, गले में खराश और नाक बहना जैसे लक्षण हो सकते हैं। छोटे बच्चों को अक्सर दो साल का होने से पहले ही बहुत सारी सर्दी लग जाती है। इसलिए छोटे बच्चों को कई अलग-अलग सर्दी के वायरस के खिलाफ सुरक्षित करने की जरूरत है। बहुत अधिक सर्दी होने का मतलब यह नहीं है कि बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है। इससे यह पता चलता है कि आसपास काफी सारे वायरस हैं। सर्दी आम तौर पर लगभग एक हफ्ते तक रहती है। यह दो हफ्ते तक भी बनी रह सकती है।

3. गले की समस्या

यह बैक्टीरिया के कारण होता है। यह 05 से 15 वर्ष की उम्र के बच्चों में होता है। बुखार, गले में दर्द, निगलने में कठिनाई और सिरदर्द जैसे लक्षण दिखते हैं। खांसी और नाक बहना आम तौर पर इसके साथ नहीं होते हैं। इसके साथ कभी-कभी लाल दाने भी हो सकते हैं। इसे स्कार्लेट फीवर के नाम से जाना जाता है। इसका इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से आसानी से और जल्दी किया जा सकता है।

4. आंतों का संक्रमण

आंतों का संक्रमण में दस्त, उल्टी, पेट दर्द, बुखार और शरीर में दर्द जैसे लक्षण होते हैं। ओआरएस के साथ डीहाइड्रेशन को रोकने के लिए प्रचुर मात्रा में तरल पदार्थ दिया जाना चाहिए। फलों का रस और ड्रिंक देने से बचें, क्योंकि ये दस्त को बदतर बना सकते हैं। पहले 6 महीनों के लिए अच्छे तरीके से स्तनपान, उचित तरीके से हाथ धोना और रोटावायरस के खिलाफ टीकाकरण गैस्ट्रोएंटेराइटिस की रोकथाम के लिए जरूरी हैं।

5. बैक्टीरियल या फंगस इन्फेक्शन

बंद नाक को खोलने के लिए नाक में सेलाइन ड्रॉप्स का उपयोग करना चाहिए। ह्यूमिडिफ़ायर बंद नाक खोलकर बच्चे के लिए आराम बढ़ा सकती है। ह्यूमिडिफ़ायर का उपयोग करने से पहले बैक्टीरिया या फंगस इन्फेक्शन से बचने के लिए उसे साफ करना और सुखाना महत्वपूर्ण है। बच्चों को जलने के संभावित जोखिम से बचाव के लिए गर्म पानी वाले वेपोराइज़र का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

सर्दी-जुकाम से बचाने के लिए फॉलो करें ये एक्सपर्ट टिप्स

As soon as winter starts, diseases start in children

अगर किसी शिशु को नाक बंद होने के कारण दूध पिलाने में परेशानी हो रही है, तो सेलाइन ड्रॉप्स के अलावा, नाक से बलगम को साफ करने के लिए रबर सक्शन बल्ब का उपयोग करें।
04 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए खांसी दबाने वाली दवाओं की सिफारिश नहीं की जाती है। 2 से 3 दिनों के लिए बंद नाक को खोलने वाली दवाएं नाक से स्राव को कम कर सकती हैं। बुखार के लिए एंटीपायरेटिक दवाएं दी जानी चाहिए।

एक साल से अधिक उम्र के बच्चों के लिए सोने से एक घंटे पहले गर्म पेय में आधा चम्मच शहद मिलाने से बच्चे रात में अच्छी तरह सोते हैं।
सर्दियों में बच्चों को कैसे सुरक्षित रखा जाए-

हर साल फ्लू वैक्सीन सहित टीकाकरण कराएं
भरपूर आराम करें और सोएं
यदि बच्चा ठीक महसूस नहीं कर रहा है, तो वायरस को फैलने से रोकने के लिए घर पर ही रहें।
बर्फीले तूफ़ान, बारिश में बच्चों को कभी भी बाहर न भेजें।बार-बार हाथ धोएं
स्वस्थ आहार लें और खूब पानी पियें
बच्चे को बड़े लोगों के व्यवहार का अनुकरण करना सिखाएं। बच्चों को अपनी ऊपरी बांहों या कोहनियों में खांसना या छींकना सिखाएं।
यह जरूरी है कि बच्चों को पूरे कपड़े पहनाएं।
बच्चे को बाहर निकलने पर अपनी आंखों और मुंह को छूने से बचने के लिए प्रोत्साहित करें।

कपड़े पहनाते समय रखें इन चीजों का ध्यान

छोटे बच्चों को हमेशा कपड़ों की एक्स्ट्रा लेयर पहनाएं, क्योंकि वे अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं।
सिर, गर्दन, पैर और हाथों को हमेशा ढककर रखें।
बच्चों को ज़्यादा गरम किए बिना गर्म रखने के लिए इंसुलेटेड और हवा आने जाने योग्य कपड़े चुनें।
सुनिश्चित करें कि बच्चे सिर और हाथों से गर्मी के नुकसान को रोकने के लिए टोपी और दस्ताने पहनें।
ठंड और गीली स्थितियों से बचाने के लिए पैरों को वाटरप्रूफ जूतों से गर्म रखें।
सुनिश्चित करें कि गर्माहट बनाए रखने और आसानी से चलने-फिरने के लिए कपड़े अच्छी तरह से फिट हों।
बढ़ जाता है डिहाइड्रेशन का खतरा।
ठंड के मौसम में डिहाइड्रेशन का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि यह प्यास की अनुभूति को बदल देता है। जब मौसम ठंडा होता है, तो बच्चों को उतनी प्यास नहीं लगती, इसलिए वे ज़्यादा नहीं पीते।
इसके लक्षण हो सकते हैं सूखे होंठ और जीभ, धंसी हुई आंखें, कम पेशाब आना। 8 साल से कम उम्र के बच्चों को 4 से 5 गिलास और 9 साल से ऊपर के बच्चों को कम से कम 6 गिलास पानी पीना चाहिए।

डिहाईड्रेशन को रोकने के लिए पूरे दिन नियमित रूप से एक भरी हुई पेय की बोतल अपने पास रखें। हरी पत्तेदार सब्जियां, दूध, संतरा, स्ट्रॉबेरी और दही जैसे पानी बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ को आहार में शामिल करना चाहिए। यदि बच्चों को सादा पानी पसंद नहीं है, तो उनमें खीरा, पुदीना की पत्तियां और नींबू रस शामिल करने से स्वाद बढ़ सकता है।

डॉक्टर से लें सलाह

• अगर सांस लेने में कठिनाई हो (तेजी से सांस लेना या सांस लेने में बहुत मेहनत करनी पड़ रही हो)
• अगर बच्चा खाना नहीं खा रहा है या उल्टी कर रहा है
• होंठ नीले दिखते हैं
• खांसी से बच्चे का दम घुटने लगे या उसे उल्टी हो रही है
• कान में दर्द होना

ठंड में बच्चे की सुरक्षा के लिए इन सुझावों को ध्यान में रखें और आवश्यकता लगे तो अपने डॉक्टर से सलाह लेने से परहेज ना करें।

फोटो सौजन्य- गूगल

Stress Effects

Stress Effects: ये हम सभी जानते हैं कि सभी लोगों को कुछ ना कुछ टेंशन अवश्य होता है। लेकिन हमें हमेशा सतर्क रहना चाहिए। तनाव से होने वाले खतरे से बचने के लिए हमें अलर्ट भी रहना जरूरी है। बहुत ज्यादा तनाव हमें बीमार बना सकता है। रिसर्च बताते हैं कि तनाव की वजह से कुछ बीमारियां भी हो सकती है। टेंशन कुछ गंभीर बीमारियों को दावत भी देता है। लगातार तनाव में रहने पर शारीरिक लक्षण, जैसे कि हेडेक, पेट की समस्या, हाई ब्लड प्रेशर, सीने में दर्द हो सकता है। टेंशन के कारण सेक्स और नींद में समस्याएं भी हो सकती हैं।

तनाव आपके शरीर को कैसे करता है प्रभावित

Stress Effects

जब तनाव होता है, तो शरीर में केमिकल रिएक्शन होता है। यह तनाव के कारण होने वाले शारीरिक परिवर्तन को रोकने की कोशिश करता है। यह प्रतिक्रिया फाइट या फ्लाइट तनाव प्रतिक्रिया के रूप में जाना जाता है। स्ट्रेस से होने वाले रिएक्शन के दौरान व्यक्ति की हृदय गति बढ़ जाती है। सांस लेने की गति तेज हो जाती है। मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं। ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। यदि हार्ट बीट में लगातार और निरंतर वृद्धि होती है। स्ट्रेस हार्मोन और ब्लड प्रेशर का हाई लेवल रहता है, तो यह शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। लंबे समय तक चलने वाला यह तनाव हाई ब्लडप्रेशर, दिल का दौरा या स्ट्रोक के खतरे को भी बढ़ा सकता है।

इमोशनल हेल्थ पर बुरा प्रभाव

लगातार तनाव रहने से एंग्जायटी, चिड़चिड़ापन, सेक्सुअल डीजायर में बढ़ोत्तरी, मेमोरी लॉस, गुस्सा करना आदि जैसे लक्षण भी दिखने लगते हैं। इसके कारण मूड में बदलाव भी होने लगता है। बहुत अधिक तनाव में रहने पर उदासी और शारीरिक दर्द के साथ-साथ मानसिक या भावनात्मक आंसू भी आने लगते हैं। तनाव एंडोक्राइन ग्लैंड को आई रीजन में हार्मोन जारी करने के लिए प्रेरित करता है, जिससे आंसू बनते हैं।

यहां हैं तनाव को मैनेज करने के 4 Methods-

  • सूर्य की किरण है सबसे जरूरी

अब तो ठण्ड का मौसम आ गया है। इसलिए सूर्य की रोशनी में बैठना तनाव दूर भगाने के साथ-साथ शरीर के लिए भी बढ़िया है। विटामिन डी की कमी से भी स्ट्रेस और एंजायटी के लक्षण दिखाई दे सकते हैं। अगर आप तनाव में हैं, तो सुबह कुछ देर धूप में बैठने की कोशिश करें। धूप आपको रिफ्रेश कर देगा।

  • एक्सरसाइज से दूर होता है टेंशन

मेंटल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित शोध बताते हैं कि गुस्से या तनाव में रहने पर बैठने की जगह से 20 कदम चलना भी तनाव भगाने (stress affect health) के लिए काफी है। वॉकिंग से तनाव दूर भाग जाता है। एंडोर्फिन हार्मोन पैदा होने से व्यक्ति तनाव मुक्त हो जाता है ।

  • Epsom Salt के साथ स्नान

एप्सम साल्ट या मैग्नीशियम सल्फ़ेट के सेवन से तनाव से राहत मिल सकती है। गनगुने पानी से नहाने पर भी तनाव दूर होता है। तनाव में होने पर एप्सम सॉल्ट हॉट बाथ लिया जा सकता है।

  • Omega-3 फैटी एसिड शामिल करें

ओमेगा- 3 फैटी एसिड में पॉली अनसेचुरेटेड फैट होते हैं। ये रिलैक्स करते हैं। इसके लिए टूना, सैल्मन आदि सी-फ़ूड लिया जा सकता है। प्लांट बेस्ड फ़ूड में चिया सीड्स, मूंगफली और अलसी ओमेगा-3 फैटी एसिड के बेहतरीन स्रोत हैं। टेंशन भगाने के लिए सुबह या दो बजे तक एक बड़ा चम्मच अलसी लिया जा सकता है।

Those 5 things in the kitchen which are the solution to every dental problem.

Cavity Pain: आजकल हर पांच में दो लोगों को दातों की कोई ना कोई समस्या होती है। कई बार दांतों मे लगे कीड़ों के कारण दांतों में असहनीय पेन होता है जिसके कारण हमें कुछ भी खाने-पीने में दिक्कत होती है। बता दें कि दातों में लगे कीड़े, दातों में छोटे काले गड्ढे होते हैं जिन्हें दांतों के कीड़े कहा जाता है। सड़न की वजह से यह दातों को खोखला करने लगते हैं। कैविटीज असल में कई कारणों से हो सकते हैं। दांतों का साफ ना होना, मुंह में बैक्टीरियल इंफेक्शन, मीठी चीजों का अधिक सेवन या स्वास्थ्य से जुड़ी कोई समस्या, टूथ कैविटी दातों को खराब करने का काम कर सकती है। दांतों के पेन और कीड़ों से राहत दिलाने वाले कारगर तरीके-

1. हींग-

दांत दर्द की समस्या से हींग राहत दिला सकती है। गुनगुना पानी लेकर उसमें थोड़ी सी हींग मिला लें और 02 से 03 बार कुल्ला करने से दांत दर्द दूर हो सकता है।

2. लहसुन-

cavity

लहसुन में मौजूद एंटी-फंगल और एंटी-बैक्टीरियल गुण इसे एक बेहतरीन पेनकिलर बनाते हैं, जो दांतों के दर्द और कीड़ों से राहत दिला सकते हैं।

3. नींबू-

नींबू में मौजूद एसिड जर्म्स को मारकर दर्द को कम करने में आपकी मदद करते हैं। मुंह में नींबू का एक टुकड़ा रखकर उसे चबाएं और फिर साफ पानी से कुल्ला कर लें। इससे दर्द के साथ कीड़ों से भी राहत मिल सकती है।

4. लौंग-

लौंग के एंटी-बैक्टीरियल गुण दर्द कम करने में भी आपकी मदद करता है। लौंग के तेल का इस्तेमाल कर दांतों के कीड़ों से राहत पा सकते हैं।

5. नारियल तेल-

नारियल तेल को सेहत के लिए बेहद फायदेमंद कहा जाता है। अगर आप दांतों के कीड़ों की समस्या को दूर करना चाहते हैं तो आप नारियल तेल से कुल्ला कर सकते हैं। इसे दिन में 3-4 बार दोहराएं.

फोटो सौजन्य- गूगल

good sleep

Oversleeping- कम नींद के साथ ज्यादा नींद भी नुकसानदायक है कैसे? आगे हम इसी बात को समझाने का प्रयास करेंगे बस आप जागे रहें क्योंकि आपका स्वास्थ्य रहना हमारी प्राथमिकताओं में से एक है। कम सोना या रात में बार-बार नींद खुलना शरीर के लिए नुकसानदेह है जिससे कि पूरे दिन मन भारी रहता है, इन्सान अवसाद से ग्रस्त हो सकता है। कम नींद के साथ-साथ ज्यादा नींद भी हेल्थ के लिए हानिकारक है। अधिक सोने से हेल्थ पर नेगेटिव प्रभाव भी देखा जाता है। ह्दय रोग जैसी बीमारियां भी ज्यादा नींद का सबब बन सकती हैं।

नींद की मात्रा कितनी है जरूरी

पूरे लाइफटाइम के दौरान जरूरी नींद की मात्रा काफी अलग हो सकती है। यह उम्र और गतिविधि स्तर के साथ-साथ सामान्य स्वास्थ्य और जीवनशैली की आदतों पर भी निर्भर करता है। तनाव या बीमारी के दौरान नींद की जरूरत ज्यादा महसूस हो सकती है। समय के साथ और हर व्यक्ति के लिए नींद की ज़रूरतें अलग-अलग होती हैं। विशेषज्ञ के अनुसार, किसी भी एडल्ट को हर रात सात से नौ घंटे के बीच सोना चाहिए। यदि आप इससे बहुत अधिक सोती हैं, तो यह स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है।

कुछ लोग क्यों होते हैं ज्यादा Oversleeping के आदि

Oversleeping

जो लोग हाइपरसोमनिया से पीड़ित होते हैं, उनके लिए अधिक सोना विकार के समान है। इस स्थिति के कारण लोगों को पूरे दिन अत्यधिक नींद आती है। यह आमतौर पर झपकी लेने से दूर नहीं होती है। इसके कारण उन्हें रात में असामान्य रूप से लंबे समय तक सोना पड़ता है। हाइपरसोमनिया से पीड़ित लोग नींद के कारण एंग्जायटी, थकान, लो एनर्जी और मेमोरी लॉस जैसी समस्याओं का अनुभव कर सकते हैं।

ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया डिसऑर्डर के कारण लोग नींद के दौरान कुछ देर के लिए सांस लेना बंद कर देते हैं। इससे भी नींद की जरूरत बढ़ सकती है। यह सामान्य नींद चक्र को बाधित करता है। अवसाद सहित अन्य चिकित्सीय स्थिति लोगों के अधिक सोने का कारण बन सकती है।

यहां हैं ज्यादा सोने से होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं

1 मधुमेह (Diabetes)

हार्वर्ड हेल्थ के अध्ययन भी बताते हैं कि हर रात बहुत देर तक या पर्याप्त नींद न लेने से मधुमेह का खतरा बढ़ सकता है।

2 मोटापा (Obesity)

बहुत अधिक या बहुत कम सोने से वजन बहुत अधिक हो सकता है। मेंटल हेल्थ जर्नल के अध्ययन के अनुसार, जो लोग हर रात नौ या 10 घंटे सोते हैं, उनके छह साल की अवधि में मोटापे से ग्रस्त होने की संभावना सात से आठ घंटे के बीच सोने वाले लोगों की तुलना में 21% अधिक होती है।

3 सिरदर्द (Headache)

सिरदर्द से ग्रस्त कुछ लोगों के लिए, सप्ताहांत या छुट्टी पर सामान्य से अधिक समय तक सोना सिर दर्द का कारण बन सकता है। अधिक सोने से सेरोटोनिन सहित मस्तिष्क के कुछ न्यूरोट्रांसमीटरों पर प्रभाव पड़ने के कारण होता है। जो लोग दिन में बहुत अधिक सोते हैं और रात की नींद पूरी नहीं कर पाते हैं, वे भी सुबह सिरदर्द से पीड़ित हो सकते हैं।

4 पीठ दर्द (Back Pain)

सामान्य से अधिक सोने पर पीठ दर्द की समस्या हो सकती है। इसके कारण पूरे शरीर में भी दर्द हो सकता है। यदि दर्द का अनुभव लगातार हो रहा है, तो डॉक्टर से जांच अवश्य कराएं।

5 अवसाद (Depression)

डिप्रेशन

अधिक सोने की तुलना में अनिद्रा को आमतौर पर अवसाद से जोड़ा जाता है। मेंटल हेल्थ जर्नल की स्टडी बताती है कि अवसाद से पीड़ित लगभग 15 फीसदी लोग बहुत अधिक सोते हैं। ज्यादा सोने से डिप्रेशन और भी अधिक हो सकता है।

6 दिल का रोग (Heart Disease)

ग्यारह घंटे या उससे भी अधिक सोने पर कोरोनरी हृदय रोग होने की आशंका ज्यादा हो सकती है। हालांकि अधिक सोने और हृदय रोग के बीच संबंध का कोई कारण अब तक किसी शोध में नहीं आ पाया है।

इस समस्या से ऐसे बचें

बढ़ियां रूटीन बनाएं, जसमें सोने और जागने का निश्चित समय हो। साउंड स्लीप के लिए जरूरी वातावरण हो। सप्ताहांत पर अधिक सोने से बचें। सोते वक्त गैजेट को खुद से दूर रखें। दिन में हेल्दी ईटिंग की आदत हो। झपकी लेने से बचें। दिन में एक्सरसाइज जरूर करें।

Vomiting

Vomiting या उल्टी आना आपको शारीरिक ही नहीं मेंटल लेवल पर भी प्रभावित करता है। बता दें कि इससे पहले और आखिर में भी आप असहज महसूस कर सकती हैं। इस लिए हम में कोई इस स्थिति का सामना नहीं करना चाहता। बावजूद इसके यह अधिकतर लोगों को होने वाली सबसे कॉमन समस्या है। खासतौर से महिलाओं में प्रेग्नेंसी के दौरान वोमिटिंग आना एक कॉमन लक्षण है लेकिन इसका कारण केवल प्रेग्नेंसी ही नहीं है, बल्कि कई और कारणों से भी आपको उल्टी आ सकती है।

आगे जानेंगे वोमिटिंग के कारण और बचने के तरीके-

इन कारणों से हो सकती है Vomiting टेंडेंसी

  • Food Poisoning और स्टमक फ्लू

गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इन्फेक्शन जैसे कि फूड प्वाइजनिंग, वायरस, स्टमक फ्लू, वोमिटिंग टेंडेंसी और वोमिटिंग आने के कुछ सामान्य कारण हैं। इस स्थिति में वोमिटिंग के साथ-साथ पेट में दर्द, जी मचलना और डायरिया की शिकायत हो सकती है।

  • डाइजेस्टिव डिसऑर्डर्स

गैस्ट्रिक, IBS, गॉलब्लैडर कंडीशन, पेनक्रियाज कंडीशन, एसिड रिफ्लक्स, आदि जैसी डाइजेस्टिव डिसऑर्डर की वजह से वोमिटिंग टेंडेंसी और जी मचलने की समस्या होती है। इन समस्याओं में वोमिटिंग के साथ-साथ अपच, कब्ज वगैरह का सामना करना पड़ सकता है।

  • Mental Health कंडीशन

मेंटल हेल्थ और डाइजेस्टिव हेल्थ एक दूसरे से लिंक्ड होते हैं। मानसिक समस्या से पीड़ित व्यक्ति में पाचन संबंधी समस्याएं भी देखने को मिलती हैं। डिप्रेशन, एंग्जाइटी जैसी मानसिक स्थिति में जी मचलने और उल्टी आने जैसे परेशानियां होती हैं।

  • थायराइड डिसऑर्डर

थायराइड ग्लैंड उन हॉर्मोन्स को कंट्रोल करती हैं, जो बॉडी मेटाबॉलिज्म को रेगुलेट करते हैं। ओवर एक्टिव और अंडर एक्टिव थायराइड दोनों ही वोमिटिंग और जी मचलने की समस्या का कारण बन सकते हैं।

  • लो Blood Sugar लेवल

खून में ग्लूकोज का गिरता स्तर सुबह उठने के साथ वोमिटिंग टेंडेंसी का कारण बन सकता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि डिनर और ब्रेकफास्ट के बीच एक लंबा गैप हो जाता है जिसकी वजह से कुछ लोगों को लो ब्लड शुगर लेवल का अनुभव होता है। खासकर डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति का ब्लड शुगर लेवल फ्लकचुएट होता रहता है।

Migraine

  • माइग्रेन और सिर दर्द

माइग्रेन में काफी तेज सिर दर्द का अनुभव होता है, जिसकी वजह से वोमिटिंग और जी मचलने की समस्या आपको परेशान कर सकती है। अगर सिर दर्द के साथ वोमिटिंग की टेंडेंसी आती है, तो आपको अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

फोटो सौजन्य- गूगल

Take care of your feet like this in winter season

Winter Season में एड़ियों का ड्राई होना और फटना एक जनरल बात है लेकिन इसका उचित देखभाल बहुत जरूरी है। अक्सर ठंड शुरू होते ही त्वचा में रूखापन दिखने लगता है। वहीं, एड़ी की त्वचा शरीर के अन्य हिस्सों की तुलना में सख्त और मोटी होती है। नमी की कमी और त्वचा के सेल्स झड़ने से डेड सेल्स जमा होने लगता है। अधिक नमी की कमी होने से एड़ियों पर दरारें पड़ जाती है जिससे दर्द होता हैं। पैरों की नियमित देखभाल, फुट क्रीम से मालिश और उन्हें ठंडी, रूखी हवा से बचाकर एड़ियों को फटने से रोका जा सकता है। प्रोपर केयर से ही इस समस्या से निपटा जा सकता है।

कैसे करें पैरों की देखभाल

पैरों की समस्याएँ कई कारणों से हो सकती हैं, जैसे ख़राब फिटिंग वाले जूते, ख़राब मुद्रा, थकान और नियमित देखभाल न करना। पैरों के लिए भी नियमित व्यायाम के साथ-साथ दैनिक देखभाल जरूरी है।

जानते हैं पैरों की त्वचा को स्वस्थ बनाए रखने के लिए कौन सी टिप्स हैं फायदेमंद।

नाखूनों की ऐसे करें सही देखभाल

साबुन वाले गर्म पानी में पैरों को भिगोने से नाखूनों और एड़ियों की डेड स्किन नरम होती है। इससे नाखून भी आसानी से कट जाते हैं। नाखून बिल्कुल सीधे काटें। पैर के अंगूठे के नाखूनों के क्यूटिकल्स न काटें। उन्हें क्रीमी बनाएं और धीरे से पीछे धकेलें।

एड़ियों को सोने से पहले करें Moisturised

Take care of your feet like this in winter season

गर्म पानी में पैरों को भिगोने के बाद एड़ियों को प्यूमिक स्टोन से धीरे-धीरे रगड़कर डेड स्किन हटा दें। धोने के बाद अच्छी तरह सुखा लें। स्किन को मुलायम बनाए रखने के लिए फ़ुट क्रीम से मालिश करें।

डेड स्किन रिमूव करें

रात को सोने से पहले पैरों को करीब 20 मिनट तक गर्म पानी में भिगोकर रखें। भिगोने से पहले पानी में थोड़ा सा नमक और शैम्पू मिलाएं। गर्म पानी एड़ियों की डेड स्किन को मुलायम करता है। डेड सेल्स हटाने के लिए प्यूमिक स्टोन या हील स्क्रबर की मदद से एड़ियों को धीरे-धीरे रगड़ें। यदि दर्द हो तो मेटल स्क्रबर का इस्तेमाल करने से बचें। धोने के बाद किसी अच्छी क्रीम से स्किन पर मलकर मालिश करें।

दिनभर फुट वियर का इस्तेमाल ना करें

जूते बहुत तंग नहीं होने चाहिए, क्योंकि शरीर के क्षेत्रों पर लगातार प्रेशर से ब्लड सर्कुलेशन की दिक्कत हो सकती है। ज्यादा समय तक जूते न पहनें। जितना संभव हो पैरों को हवा में रखें। गर्मियों में बंद जूते न पहनें। गर्मियों में वेंटिलेशन के लिए सैंडल पहनें और पैरों को टैल्कम पाउडर से सूखा रखें। जो लोग बहुत चलते हैं या लंबे समय तक खड़े रहते हैं, उन्हें मोटे तलवों और कम एड़ी वाले जूते पहनने चाहिए। सामने का भाग इतना चौड़ा होना चाहिए कि पंजों को जगह मिल सके।

महत्वपूर्ण है फुट एक्सरसाइज़

  1. पैरों के लिए फायदेमंद व्यायाम नंगे पैर घास पर चलना है।
  2. सीधे खड़े हो जाएं, पैर आगे की ओर हों और अपने आप को पंजों के बल उठाएं और फिर अपने आप को वापस नीचे लाएं। इससे पंजे मजबूत होते हैं।
  3.  उंगलियों को मोड़ें, जैसे आप अपने पैरों से फर्श से कुछ उठाने की कोशिश कर रहे हों।
  4. पंजों को फैलाएं और पैर के अगले हिस्से को घोल-घोल घुमाएं।
blow job or oral sex
Sex Education के प्रति लोगों में बढ़ते रुझान के कारण लोग इंटरनेट पर और ज्यादा सर्च करने लगे हैं। सेक्स वर्ल्ड में सबसे ज्यादा जो शब्द प्रचलन में है वह है ब्लो जॉब (Blow Job)। जो ओरल सेक्स से जुड़ा होता है। सुरक्षित सेक्स के लिए कुछ सही तरीकों का समझना जरूरी होता है।
इंटरनेट से हासिल आधा-अधूरा कंटेंट उन्हें जानकारी कम कन्फ्यूजन ज्यादा दे देता है। हेल्थ शॉट्स ने हमेशा से सेक्स एडुकेशन (Sex Education) और सेफ सेक्स का समर्थन किया है। इसलिए आज हेल्थ शॉट्स के इस लेख में हम ब्लो जॉब के बारे में काफी कुछ बताने जा रहे हैं।
ब्लो जॉब आखिर है क्या? 
सेक्स को एक्साइटिंग बनाने के लिए कपल्स कई ट्रिक्स ट्राई करते हैं। ब्लो जॉब ओरल सेक्स को कहा जाता है। जो पेनिट्रेटिव सेक्स से बिल्कुल अलग होगा है। इसमें पार्टनर के प्राइवेट पार्ट और अन्य उत्तेजक अंगों को जीभ से लिक किया जाता है और कुछ देर तक सहलाया जाता है। इससे शारीरिक उत्तेजना बढ़ने लगती है। जो सेक्स के लिए एक्साइटमेंट को चरम तक पहुंचाने में हेल्प करता है।
संबंध बनाते समय स्पाइस और उत्तेजना को बढ़ाने के लिए ब्लो जॉब यानी ओरल सेक्स को शामिल किया जाता है। यह आपको एक-दूसरे के प्रति सहज बनाता है और दोनों पार्टनर को संतुष्टि प्रदान करता है। यह फोर प्ले का महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिसमें मुंह के द्वारा पार्टनर के शरीर के सभी संवेदनशील हिस्सों को उत्तेजित किया जाता है। जननांगों को चूमने की इस प्रक्रिया के दौरान पूरी तरह से केयरफ्री होना नुकसानदायक साबित हो सकता है। इसलिए पेनिट्रेटिव सेक्स की तरह यहां भी आपको सेफ्टी टिप्स का पालन करना जरूरी है।
ज्यादातर जोड़े ओरल सेक्स के लिए करते हैं इन पोज़िशंस को ट्राई
1. चेयर ब्लो जॉब
चेयर सिटिंग ब्लो जॉब को एक्साइटिंग बना सकती है। इसके लिए किसी सोफे या कुर्सी पर पार्टनर को बैठाकर आप ब्लो जॉब का आनंद उठा सकते हैं।
2. स्वीट 16
ओरल सेक्स के लिए ये पोज़िशन आपके प्लेजर को बढ़ा सकती है। इसके लिए आप पार्टनर के लोअर एब्डोमन पर बैठकर पेनिस को मॉउथ में लेकर ब्लो जॉब को एक्साइटिंग बना सकती है।
3. पोजिशन 69
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इस पोज़िशन में एक ही समय में दोनों लोग प्लेजर प्राप्त कर सकते हैं। जहां आपका पार्टनर ओरल सेक्स का आनंद ले सकता है। वहीं आप भी पार्टनर को सेम टाइम में संतुष्ट कर सकते हैं।
4. ब्लो जॉब के दौरान भी सेफ्टी है जरूरी
प्लेजर के लिए पार्टनर को ब्लो जॉब देते हुए इरोजेनस स्पॉटस उत्तेजित होने लगते हैं और आप दोनों ही इंटिमेसी का आनंद ले पाते हैं। ब्लो जॉब से जहां आनंद की प्राप्ति होती है, वहीं इसमें की गई जरा सी भी लापरवाही स्वास्थ्य जोखिमों का भी कारण बन सकती है। इसलिए ओरल सेक्स के दौरान कुछ खास बातों का ख्याल रखना ज़रूरी है।
वे सेफ्टी Tips जो ब्लो जॉब को सेफ बना सकती हैं
1 कंडोम का करें इस्तेमाल
ओरल, एनल या फिर वेजाइनल सेक्स के दौरान कण्डोम को इग्नोर करना परेशानी का कारण बनने लगता है। इससे पेनिस की फोरस्किन के नीचे स्मेग्मा नाम का तत्व पाया जाता है। जहां बहुत से बैक्टीरिया जमा हो जाते हैं। उन्हें मुंह में लेने से बैक्टीरियल इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। जो संक्रमण के जोखिम को बढ़ा देता है।

2. Oral हाइजीन का रखें ध्यान

यूनिवर्सिटी ऑफ जॉर्जिया हेल्थ सेंटर के मुताबिक मसूढ़ों में सूजन, गम ब्लीडिंग और मुंह में होने वाले छालों के संपर्क में आने से संक्रमण का खतरा काफी हद तक बढ़ जाता है। ऐसे में मौखिक स्वच्छता को मेंटेन रखने के लिए फलॉसिंग और नियमित ब्रश करना ज़रूरी है। ओरल सेक्स से पहले और बाद में ब्रश और माउथ वॉश का इस्तेमाल जरूर करें।

3. डेंटल डैम करें प्रयोग

डेंटल डैम यानी माउथ कंडोम जो ओरल सेक्स को प्रोटेक्टिव बनाने में मदद करता है। लैटेक्स से बनी इस चौकोर पतली शीट को वेजाइना या पेनिस के उपर रखा जाता है। इससे आप डायरेक्टिली जननांगों के संपर्क में आने से बच जाते हैं।
4. सर्दी-जुकाम है तो Blow Job से बचें
अगर आप खांसी जुकाम और नाक बहने की समस्या से ग्रसित हैं तो ओरल सेक्स को लेकर आपका केयरफ्री नेचर चिंता का विषय साबित हो सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ जॉर्जिया हेल्थ सेंटर के मुताबिक गले खराब के दौरान खराश और इंटिमेट पार्ट्स पर होने वाले जख्म भी STI की आशंका को बढ़ाने लगता है।
फोटो सौजन्य- गूगल
Health Tips

Health Tips: प्रसिद्ध उपन्यासकार हैरियट स्टोव ने कहा था कि एक महिला का स्वास्थ्य उसकी पूंजी है लेकिन महिलाएं अक्सर अपने हेल्थ की परवाह नहीं करती हैं। वक्त की कमी, घर या ऑफिस से संबंधित प्रेसर, जागरूकता की कमी और यौन-स्वास्थ्य के बारे में बात करने में झिझक रखाना, ये ऐसे कारक हैं जो इसमें प्रमुख योगदान करते हैं। पर नॉर्मल हेल्थ समस्याओं को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। खासकर जब आपकी योनि या ब्रेस्ट में नजर आ रहे हों। अक्सर महिलाओं की आम शिकायतें होती हैं, जिन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है पर यह कुछ ज्यादा गंभीर होने का संकेत हो सकता है।

वो 6 समस्याएं जिन्हें महिलाओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए

1. सेक्स के समय दर्द

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महिलाएं अक्सर सेक्स के दौरान दर्द के बारे में बात करने से हिचकिचाती हैं। हालांकि, दर्दनाक सेक्स एंडोमेट्रियोसिस का लक्षण भी हो सकता है। एक ऐसी स्थिति जिसमें गर्भाशय की अंदरूनी लेयर गर्भाशय के बाहर जमा हो जाती है। यह PID ​​​​(पेल्विक सूजन की बीमारी) की वजह से भी हो सकता है, जो अक्सर वेजाइनल डिस्चार्ज के साथ रिप्रोडक्टिव ऑर्गन का संक्रमण होता है। अपर्याप्त लुब्रिकेशन और ड्राई वेजाइना के कारण भी सेक्स के दौरान पेन हो सकता है।

2. असामान्य या अनियमित पीरियड

मासिक धर्म हर 21-35 दिनों में नियमित रूप से होना चाहिए। भारी प्रवाह, मध्य-चक्र रक्तस्राव या स्पॉटिंग, लंबे समय तक पीरियड साइकिल, यह थायराइड, PCOD या फाइब्रॉएड जैसे हार्मोनल रोगों के कारण हो सकता है, जो गर्भाशय के सौम्य ट्यूमर हैं। सेक्स के बाद रक्तस्राव या रजोनिवृत्ति के बाद रक्तस्राव को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। यह ओवेरियन कैंसर का संकेत हो सकता है और इसकी जांच कराना जरूरी होता है।

3. स्तन में परिवर्तन

If there is pain in the breast just before periods

स्तनों में गांठ फाइब्रोएडीनोमा जैसी हानिरहित स्थितियों के कारण हो सकती है। हालांकि, ब्रेस्ट में गांठ होना भी ब्रेस्ट कैंसर का संकेत हो सकता है। जागरूकता की कमी की वजह से महिलाओं में स्तन कैंसर अक्सर उन्नत चरणों में पाया जाता है। स्तनों में गांठ जो स्तन के बाकी टिश्यू से सख्त और अलग लगती हैं या निप्पल से स्राव को चैक किया जाना चाहिए। महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर की जांच के लिए नियमित चेकअप करवाना चाहिए। ब्रेस्ट में किसी भी परिवर्तन का शीघ्र पता लगाने के लिए ब्रेस्ट सेल्फ टेस्टिंग के तरीकों के बारे में भी पता होना चाहिए।

4. वजन का एकाएक घटना और बढ़ना

अचानक वजन कम होना खुशी की बात हो सकती है पर अचानक वजन कम होना टीबी के साथ-साथ कैंसर या थायरॉयड विकारों का भी संकेत हो सकता है और इसका मूल्यांकन किया जाना चाहिए। अचानक वजन बढ़ना पीसीओडी या थायराइड की समस्या के कारण हो सकता है और अगर इसका पता चल जाए तो इसे बहुत अच्छी तरह से नियंत्रित किया जा सकता है।

5. थकान महसूस होना

बहुत सी महिलाएं हर समय थकान महसूस करती हैं। बार-बार थकान एनीमिया, थायराइड विकार, सूक्ष्म पोषक तत्वों और विटामिन डी की कमी के कारण हो सकती है और इसकी जांच होनी चाहिए। पूरी रात की नींद के बाद भी थकान महसूस होना भी तनाव, चिंता, डिप्रेशन या ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया का कारण हो सकता है। इसलिए इसे कभी भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

6. ब्लोटिंग फील करना

ज्यादातर महिलाएं विशेष रूप से मासिक धर्म से पहले फूला हुआ या गैसी महसूस करती हैं। यह अधिक सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। हालांकि, अगर ब्लोटिंग महसूस करना बहुत बार होता है, तो इसे चैक करवाना चाहिए। यह इरिटेबल बावल सिंड्रोम, एंडोमेट्रियोसिस या यहां तक ​​कि ओवरियन कैंसर का संकेत हो सकता है।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा ने कहा कि समुदाय और देश और अंततः दुनिया उतनी ही मजबूत है जितनी उनकी महिलाओं का स्वास्थ्य। इसलिए देश और दुनिया की बेहतरी के लिए हमें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना ही होगा।

फोटो सौजन्य- गूगल

Feeding

Pregnancy: एक अध्ययन के अनुसार शाकाहारी भोजन करने वाली महिलाओं के दूध में मांसाहारी महिलाओं की तुलना में कम कीटनाशक पाए गए। यूपी में पिछले दिनों 111 नवजात बच्चों की मौत हो गई और इन नवजात की मौत की वजह गर्भवती महिलाओं के दूध में पाए जाने वाले कीटनाशक को बताया गया। लखनऊ के क्वीन मैरी अस्पताल के अध्ययन के मुताबिक यह दावा किया गया है कि महाराजगंज में हुई इन मौत के लिए महिलाओं के दूध में पाए जाने वाले कीटनाशक हैं। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि मां के दूध तक कीटनाशक कैसे पहुंचे।

अस्पताल ने इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए कुछ गर्भवती महिलाओं का परीक्षण किया। इस स्टडी में 130 शाकाहारी और मांसाहारी प्रेग्नेंट महिलाओं को शामिल किया गया था। यह शोध डॉक्टरों की एक टीम द्वारा किया गया था। इस शोध को एनवायरमेंटल रिसर्च जनरल में पब्लिश किया गया है। इस रिसर्च में कहा गया है कि शाकाहारी भोजन करने वाली महिलाओं के दूध में मांसाहारी महिलाओं की तुलना में कम कीटनाशक पाए गए पर कीटनाशक दोनों ही महिलाओं में पाए गए।

केमिकल फार्मिंग है कीटनाशक होने की वजह

Breast Feeding

 

अध्ययन के अनुसार मांसाहारी खाने से दूर रहने वाली महिलाओं के स्तन के दूध में कम कीटनाशक पाए गए हैं। शोध में यह भी कहा गया है कि दूध में कीटनाशक होने की वजह केमिकल फार्मिंग है। दरअसल, हरी सब्जियों या तमाम फसलों को उगाने के लिए तरह-तरह के कीटनाशकों और रसायनों का प्रयोग किया जाता है। जानवरों को भी सप्लीमेंट्स और केमिकल्स के इंजेक्शन्स दिए जाते हैं, जिसकी वजह से मांसाहारी भोजन करने वाली महिलाओं के दूध में कीटनाशक उत्पन्न हो जाते हैं।

मांसाहारी भोजन करने वाली महिलाओं के दूध में मौजूद कीटनाशक शाकाहारी महिलाओं की तुलना में तीन गुना ज्यादा थे। इस शोध में कहा गया है कि मां के दूध के जरिए बच्चे में भी कीटनाशक आराम से पहुंच सकते हैं। स्तन के दूध में मौजूद कीटनाशकों ने मासूम शिशुओं को गंभीर नुकसान पहुंचाया, जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई।

बहरहाल, इस अध्ययन से स्पष्ट हो गया है कि प्रेग्नेंसी में ज्यादा से ज्यादा हरी सब्जियों का ही सेवन करना चाहिए ताकि नवजात बच्चों में कीटनाशक मां के दूध के जरिए ना पहुंच सके।