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Hajj Yatra 2024: Holy Hajj pilgrimage has started

Hajj Yatra 2024: इस्लाम धर्म के 5 स्तंभों में से एक अहम स्तंभ हैं हज यात्रा। जी हां, यह हज यात्रा हर सक्षम मुसलमान के लिए जिंदगी में एक बार करना अनिवार्य होता है। यह यात्रा इस्लामी महीने जिल हिज्जा के 8वें से 12वें दिन के बीच सऊदी अरब के पवित्र शहर मक्का और उसके आसपास के पवित्र स्थलों पर की जाती है। हज का मकसद अल्लाह को खुश करना और गुनाहों की माफी हासिल करना है।

यह यात्रा न सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करने का मौका देता है, बल्कि सामुदायिकता, सहयोग और भाई-चारे का भी प्रतीक होती है। हज यात्रा की विधियों और नियमों का सही तरीके से पालन करके मुसलमान अल्लाह की प्रसन्नता और बरकत हासिल कर सकते हैं. इस अवसर पर आइए जानते हैं हज यात्रा के विभिन्न चरणों और खास नियमों के बारे में।

कब तक है पवित्र हज यात्रा

Hajj Yatra 2024: Holy Hajj pilgrimage has started

हज की शुरुआत इस्लामिक महीने की 08 तारीख से होती है जो इस साल 14 जून को पड़ रही है, इसलिए इस साल 2024 में हज यात्रा 14 जून से शुरू हो रही है। हज यात्रा करने में 05 दिन लगते हैं इसलिए यह यात्रा 19 जून तक चलेगी और ईद उल अजहा( बकरीद) के साथ पूरी होती है।

हज यात्रा के 5 दिन होते हैं ये खास नियम

हज यात्रा के लिए कुछ नियम होते हैं, जिनका हाजी को पालन करना होता है। हज यात्रा के दौरान हर दिन का विशेष महत्व होता है और हर दिन अलग-अलग गतिविधियां होती है।

पहला दिन: 8वीं जिल हिज्जा

इहराम धारण करना

हाजी मक्का में इहराम धारण करते हैं और नियत (इरादा) करते हैं। इहराम धारण करने के बाद तलबिया (लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक) का उच्चारण करते हैं।

मीना की ओर प्रस्थान

हाजी मक्का से मीना की पहाड़ी ओर प्रस्थान करते हैं और मीना में पहुंचकर पांच वक्त की नमाज अदा करते हैं और रात मीना में ही बिताते हैं।

दूसरा दिन: 9वीं ज़िल हिज्जा

अराफात की ओर प्रस्थान

हाजी सुबह मीना से अराफात पहाड़ी की ओर प्रस्थान करते हैं। अराफात का दिन हज का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।

मुजदलिफा की ओर प्रस्थान

सूर्यास्त के बाद हाजी अराफात से मुजदलिफा की ओर प्रस्थान करते हैं। मुजदलिफा में पहुंचकर मजरीब और ईशा की नमाज एक साथ अदा करते हैं और रात भर वहीं ठहरते हैं। मुजदलिफा में हाजी 49 कंकड़ियां इकट्ठा करते हैं, जिनका इस्तेमाल अगले दिनों में जमरात यानी शैतानों को मारने के लिए किया जाता है।

तीसरा दिन: 10वीं ज़िल हिज्जा

Hajj Yatra 2024: Holy Hajj pilgrimage has started

जमरात को कंकर मारना

हाजी सुबह मुजदलिफा से मीना की ओर प्रस्थान करते हैं और मीना में पहुंचकर सबसे बड़े जमरा (शैतान) को 7 कंकड़ियां मारते हैं।

कुर्बानी

कंकड़ मारने के बाद हाजी कुर्बानी देते हैं। कुर्बानी देने के बाद पुरुष अपने सिर के बाल मुंडवाते हैं या छोटे करते हैं और महिलाएं अपने बालों का एक छोटा हिस्सा काटती हैं।

वापसी

तवाफ और सई के बाद हाजी वापस मीना लौट आते हैं और वहां रात बिताते हैं।

चौथा दिन: 11वीं ज़िल हिज्जा

जमरात को कंकर मारना

हाजी तीनों जमरात (शैतानों) को 7-7 कंकड़ियां मारते हैं। सबसे पहले छोटे जमरा, फिर मंझले जमरा और अंत में बड़े जमरा को कंकड़ियां मारी जाती है।

मीना में ठहराव

हाजी दिन भर मीना में रहकर इबादत करते हैं और रात वहीं बिताते हैं।

5वां दिन: 12वीं ज़िल हिज्जा

जमरात को कंकड़ मारना

हाजी एक बार फिर से तीनों जमरात (शैतानों) को 7-7 कंकड़ियां मारते हैं। सबसे पहले छोटे जमरा, फिर मंझले जमरा और अंत में बड़े जमरा को कंकड़ियां मारी जाती हैं।

मीना से मक्का की ओर प्रस्थान

कंकड़ मारने के बाद हाजी मीना से मक्का की ओर प्रस्थान करते हैं फिर हाजी विदाई तवाफ (तवाफ-ए-विदा) करते हैं।

छठा दिन: 13वीं ज़िल हिज्जा

जमरात को कंकर मारना

अगर हाजी चाहें तो वे 12वीं ज़िल हिज्जा यानी पांचवे दिन मिना से मक्का लौट सकते हैं, नहीं तो 13वीं ज़िल हिज्जा के दिन एक बार फिर से तीनों जमरात को 7-7 कंकड़ियां मारने का नियम हैं। इसके बाद वे मक्का की ओर प्रस्थान करते हैं और विदाई तवाफ (तवाफ-ए-विदा) करते हैं।

हज यात्रा की धार्मिक अहमियत

इस्लाम के 05 फर्ज़ में से एक फर्ज हज है। अलावा इसके चार फर्ज हैं कलमा, रोज़ा, नमाज़ और जकात। माना जाता है हज एक ऐसा फर्ज है जिसे हर सक्षम मुसलमान को अपनी जिंदगी में एक बार जरूर करना चाहिए।

फोटो सौजन्य- गूगल

Holi is played here not with humans but with gods.

रायपुर: छत्तीसगढ़ के दक्षिणी सिरे बस्तर में Holi का पर्व फागुन मड़ई के स्वरूप में बेहद निराला है। इसलिए क्योंकि बस्तर के तीज त्योहारों के सारे रीति रिवाजों में स्थानीय लोक देवी-देवताओं का ही महत्व है। बस्तर की प्रमुख आराध्य देवी मां दंतेश्वरी है और इन्हीं के सम्मान में यहां सारे तीज त्यौहार मनाए जाते हैं। होली का त्योहार यहां फागुन मड़ई के स्वरूप में मनाया जाता है और यह फागुन शुक्ल की षष्ठी से लेकर चौदस तक आयोजित की जाती है।

भव्य रियासतकालीन परम्पराओं के साथ 10 दिन मनाई जाती है होली

10 दिनों तक चलने वाला यह आयोजन वर्तमान को इतिहास से जोड़ता है। फागुन मड़ई के आयोजन की प्रत्येक कड़ियां भव्य रियासतकालीन परम्पराओं के साथ मनाया जाता है। पारंपरिक और ऐतिहासिक महत्व वाले फागुन मड़ई की शुरुआत बसंत पंचमी से हो जाती है। होली के 12 दिनों पहले से मुख्य आयोजन शुरू हो जाता है। दंतेश्वरी माई की पालकी मंदिर से निकलती है और सत्य नारायण मंदिर तक जाती है। वहां पूजा पाठ के बाद वापस मंदिर पहुंचती है। छत्तीसगढ़ समेत ओडिशा से लोग अपने ईष्ट देव का ध्वज और छत्र लेकर पहुंचते हैं। करीब साढ़े सात सौ देवी-देवताओं का यहां फागुन मड़ई में संगम होता है। होली का पर्व माई दंतेश्वरी सभी देवी-देवताओं और मौजूद लोगों के साथ यहां मनाती हैं।

बसंत पंचमी के दिन लगभग 700 साल प्राचीन अष्टधातु से निर्मित, एक त्रिशूल स्तम्भ को दंतेश्वरी मंदिर के मुख्य द्वार के सम्मुख स्थापना की जाती है। इसी दोपहर को आमा मऊड रस्म का निर्वाह किया जाता है जिसके दौरान माईजी का छत्र नगर दर्शन के लिए निकाला जाता है और बस स्टैंड के पास स्थित चौक में देवी को आम के बौर अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद मड़ई के कार्यक्रमों का आरंभ मेंडका डोबरा मैदान में स्थित देवकोठी से होता है। जहां पूरे विधि-विधान के साथ देवी का छत्र लाया जाता है। फायर करने के साथ-साथ हर्षोल्लास तथा जयकारे के शोर में छत्र को सलामी दी जाती है।

इस रस्म के अंतर्गत होता है Holika दहन

दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी हरेंद्र नाथ जिया बताते हैं कि इस दिन दीप प्रज्ज्वलन करते हैं और परम्परानुसार कलश की स्थापना की जाती है। पटेल द्वारा पुजारी के सिर में भंडारीन फूल से फूलपागा (पगड़ी) बांधा जाता है। आमंत्रित देवी-देवताओं और उनके प्रतीकों, देवध्वज और छत्र के साथ माई जी की पालकी पूरी भव्यता के साथ परिभ्रमण के लिए निकाली जाती है। देवी की पालकी नारायण मंदिर लाई जाती है। जहां पूजा-अर्चना तथा विश्राम के बाद सभी वापस दंतेश्वरी माता मंदिर पहुंचते हैं। इसी रात ताड-फलंगा धोनी की रस्म अदा की जाती है। इस रस्म के तहत ताड़ के पत्तों को दंतेश्वरी तालाब के जल से विधि-विधान से धोकर उन्हें मंदिर में रखा जाता है, इन पत्तों का प्रयोग होलिका दहन के लिए होता है।

होलिका दहन की भी खास रिवाज

होलिका दहन की खास परंपरा- दंतेवाड़ा में भी होली रंग-गुलाल से खेली तो जाती है, परंतु यहां दंतेवाड़ा में माई दंतेश्वरी के सम्मान में चलने वाला फागुन मेले के नवे दिन, होलिका दहन से भी जुडी एक अनोखी रस्म हैं। यहां प्रचलित एक मान्यता के अनुसार बस्तर की एक राजकुमारी की याद में, जलाई गई होली की राख और दंतेश्वरी मंदिर की मिट्टी से होली खेली ज़ाती हैं। यह अनोखी रस्म ,जौहर करने वाली राजकुमारी के सम्मान में की जाती है।

सती शिला- दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी हरेंद्र नाथ जिया बताते हैं कि एक राजकुमारी ने अपनी इज्जत बचाने के लिए आग में कुदकर जौहर कर लिया था। राजकुमारी का नाम तो मालूम नहीं पर प्रचलित कथा के अनुसार सैकड़ों सालों पहले बस्तर की एक राजकुमारी को किसी हमलावर ने अगवा करने की कोशिश की थी। राजकुमारी ने अपनी अस्मिता बचाने के लिये मंदिर परिसर में आग जलवाई और मां दंतेश्वरी का नाम लेते हुए आग में कूद गई। उस राजकुमारी की कुर्बानी को यादगार बनाने के लिए उस समय के राजा ने एक सती स्तंभ बनवाया जिसमे स्त्री-पुरुष की बड़ी प्रतिमाये बनी हैं, इस स्तंभ को ही सती शिला कहते हैं। हजार साल पुरानी इस सती शिला के पास ही राजकुमारी की याद में होलिका दहन की जाती हैं। होलिका दहन के लिए 7 तरह की लकड़ियों जिसमें ताड़, बेर, साल, पलाश, बांस, कनियारी और चंदन के पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है। सजाई गई लकड़ियों के बीच मंदिर का पुजारी केले का पौधे को रोपकर गुप्त पूजा करता है। यह केले का पौधा राजकुमारी का प्रतीक होता है।

फलंगा धोनी रस्म

होलिका दहन से आठ दिन पहले ताड़ पत्तों को दंतेश्वरी तालाब (मेनका डोबरा ) में धोकर भैरव मंदिर में रखा जाता है। इस रस्म को ताड़ फलंगा धोनी कहा जाता है। पास के ग्राम चितालंका के पांच पांडव परिवार के सदस्य ही होलिका दहन करते हैं। दंतेश्वरी मन्दिर में सिंहद्वार के पास इन पांडव परिवार के कुल देवी के नाम पर पांच पांडव मन्दिर भी है।

There are some special New Year celebration destinations around Delhi

ये बात हम सब जानते हैं कि 31 दिसंबर की रात (New Year) हर किसी के लिए कितना खास होता है। रात 12 बजते ही लोग आने वाले साल का आगाज करते हैं। इस पल के लिए हर कोई अपने और अपनों के साथ खास प्लान बनाता है। जहां कुछ लोग घर में रह कर पार्टी करते हैं वहीं कुछ लोग इस दौरान बाहर जाने के बारे में सोचते हैं। अगर आप दिल्ली में हैं और नए साल का जश्न कुछ बेहतरीन तरीके से मनाना चाहते हैं तो आप दिल्ली के आसपास मौजूद जगहों पर जाने का प्लान कर सकते हैं। देखें उन स्पेशल जगहों के बारे में-

डलहौजी में एंजॉय

2023 का स्वागत करने के लिए एक शांत जगह की तलाश कर रहे हैं तो डलहौजी से बेहतर कोई जगह नहीं है। यह हिल स्टेशन जंगली जानवरों, पक्षियों और खूबसूरत वनस्पतियों के लिए स्वर्ग है। डलहौजी 5 अलग-अलग पहाड़ियों में फैला हुआ है और यात्रियों के लिए यहां बहुत सारे पर्यटन स्थल हैं।

ऋषिकेश है लाजवाब

वीकेंड के लिए ऋषिकेश परफेक्ट डेस्टिनेशन है। परिवार के साथ न्यू ईयर सेलिब्रेट करने के लिए ये अच्छी जगह है, जहां पर आप क प्रीमियम होटल्स का लुत्फ उठा सकते हैं। इस जगह पर पहुंचने के लिए दिल्ली से पांच घंटे की छोटी ड्राइव है।

नीमराना है काफी लोकप्रिय

नीमराना राजस्थान के अलवर जिले में स्थित एक बेहतरीन प्लेस है। नीमराना फोर्ट पैलेस के आने के साथ लोकप्रियता हासिल की, जो कि नए साल के लिए दिल्लीवालों के लिए एक शानदार जगह है। फैमिली और फ्रेंड्स के साथ इस जगह पर आप अच्छा एंजॉय कर सकते हैं।

देहरादून की बात ही अलग है

देहरादून भी दिल्ली के काफी करीब है और इसलिए यह नए साल के दौरान दिल्ली के पास घूमने के लिए शानदार जगहों में शुमार है। यह लोकप्रिय हिल स्टेशनों में से एक है, जहां पार्टी करने के लिए आपको बहुत सारी जगह मिल जाएंगी। देहरादून में बहुत सारे शानदार पर्यटन स्थल हैं, जहां न्यू ईयर सेलिब्रेट कर सकते हैं।

Enjoy traveling like this when it rains during travel

मानसून के मौसम में अक्सर लोग ट्रेवल (Travel) करने से बचते हैं। बारिश में मौसम खराब होने की वजह से उनके सफर पर असर पड़ सकता है। ट्रेवल के लिहाज से लोग बारिश के मौसम में घर से बाहर नहीं जाना चाहते हैं। पर भारत में कई ऐसी घूमने की जगहें हैं जो बारिश के मौसम में शानदार हैं। इस जगहों की विशेषता बरसात में ज्यादा बढ़ जाती है। कई लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें बरसात के मौसम में अपने फ्रेंड या पार्टनर के साथ किसी हरियाली वाली खूबसूरत जगह की सैर करनी होती है।

वहीं, कई बार लोग किसी जरूरी काम की वजह से भी मानसून में ट्रैवल करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। चाहें आप अपनी इच्छा से बारिश में कहीं जाना चाहते हों या फिर काम के सिलसिले में सफर रह रहें हों, अगर अचानक से बारिश हो जाएं तो क्या करना है, ये आपको पता होना चाहिए। बारिश के कारण सफर में रुकावट ना आए और मजा सजा ना हो, इसके लिए बारिश में ट्रैवल के इन आइडियाज को जरूर अपनाएं-

सफर का लुत्फ उठाने के लिए गाड़ी की सर्विसिंग है जरूरी

मानसून में अगर गाड़ी से कहीं जा रहे हैं तो कार की एक बार सर्विस जरूर करा लें। बारिश में अक्सर गाड़ियां बंद हो जाती हैं। इसलिए सुरक्षित और बिना किसी रुकावट के सफर का लुत्फ उठाने के लिए गाड़ी की सर्विस कराकर ही घर से निकलें।

सेफ ड्राइविंग

Enjoy traveling like this when it rains during travel

अगर आप रोड ट्रिप पर हैं और अचानक सफर के दौरान बारिश होने लगे तो सबसे जरूरी है कि गाड़ी चलाते समय सावधानी बरतें। गति पर नियंत्रण रखें और सेफ्टी का ध्यान दें।

खाने का सामान साथ में जरूर रखें

ट्रेवल के दौरान अगर बारिश होने लगे, तो हो सकता है कि आप किसी रेस्तरां में ना जा पाएं। तेज बारिश में किसी हाईवे पर हैं और बारिश रुकने तक आपको वहीं इंतजार करना पड़ सकता है, ऐसे में अपने साथ गाड़ी में खाने पीने का कुछ सामान, जैसे स्नैक्स,फल, पानी वगैरह जरूर रखें। खासकर अगर साथ में बच्चे सफर कर रहे हैं तो खाना लेकर जाएं।

एक्सट्रा कपड़े रखना ना भूले

जब आप किसी ट्रिप पर 2-4 दिन का प्लान बनाकर जाते हैं तो आप उसी आधार पर कपड़े और अन्य जरूरी सामान ले जाते हैं पर मानसून के मौसम में कभी भी बारिश हो सकती है और आप बारिश में भीग सकते हैं। इसलिए कुछ एक्सट्रा कपड़े जरूर साथ रखें ताकि अगर आपके कपड़े गीले हो जाएं तो आपके पास अतिरिक्त कपड़े होने चाहिए। अलावा इसके छतरी, पतला रेनकोट समेत अन्य जरूरी सामान भी रखें।

फर्स्ट एड किट है जरूरी

वैसे तो किसी भी मौसम में सफर के दौरान साथ कुछ मेडिसीन जरूर रखनी चाहिए लेकिन मानसून में बारिश में भीगने के कारण जुकाम, खांसी और बुखार आदि आसानी से हो सकता है। इसलिए कुछ ऐसी दवाएं साथ ले जाएं तो सर्दी-खांसी और फीवर में ली जा सके।

 

सिक्किम का गंगटोक शहर

भारत में ट्रैवल के लिए वैसे तो कई जगह हैं लेकिन उनमें से कुछ प्लेस काफी खूबसूरत और प्रकृति से घिरे हैं। इन खूबसूरत जगहों पर जाना पॉकेट फ्रेंडली होने के साथ-साथ लोगों की पहली पसंद हुआ करती है। ऐसे में जानते हैं भारत में घूमने के लिए सस्ते हिल स्टेशन के बारे में-

हिमाचल का हिल स्टेशन कसौली

उत्तराखंड का खूबसूरत शहर कसौली

हिमाचल प्रदेश का लोकप्रिय हिल स्टेशन कसौली 1,927 किलोमीटर ऊंचा है। खूबसूरत वादियों से घिरा से हिल स्टेशन बेहद यात्रियों को अपनी ओर खूब आकर्षित करता है। यहां आप कुछ प्रसिद्ध स्थानों जैसे मंकी पॉइंट, लोअर और अपर मॉल, सनावर, सबाथू किला आदि को देखने से नहीं चूक सकते। यहां आप पैराग्लाइडिंग और कैंपिंग का मजा ले सकते हैं।

उत्तर-पूर्वी भारत का लोकप्रिय स्थान गंगटोक

सिक्किम का गंगटोक शहर

सिक्किम की राजधानी होने की वजह से यह सबसे खूबसूरत पहाड़ी है। ये पहाड़ी शहर लोगों को खूब आकर्षित करता है और पूरे उत्तर-पूर्वी भारत में सबसे लोकप्रिय स्थानों में से एक है। हालांकि, गेंगटोक बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक लोकप्रिय तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है।

उत्तराखंड का चकराता शहर

उत्तराखंड का चकराता शहर

2,118 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह खूबसूरत शहर टोंस और यमुना नदी के बीच ये खूबसूरत जगह छुट्टियों के लिए बेस्ट है। बहुत कम लोग इस जगह को देखने जाते हैं, चकराता शहर कम बजट में अच्छी यादों का ट्रिप होगा। जहां प्रकृति, पक्षी और एडवेंचर के लिए एक महान जगह है। यहां टाइगर फॉल, ग्रेट देवबन की यात्रा जरूर करें। आप यहां से चीन की ग्रेट वॉल ऑफ चाइना के दृश्य का आनंद ले सकते हैं।

उत्तराखंड का पहाड़ियों से घिरा शहर लैंसडाउन

उत्तराखंड का लैंसडाउन

1,706 किलोमीटर की ऊंचाई, देवदार और घने ओक के जंगलो से भरी, गढ़वाल जिले का छोटा सा पहाड़ी शहर लैंसडाउन आपको खूब पसंद आएगा। अंग्रजों के जमाने से भारत के सबसे लोकप्रिय हिल स्टेशनों में से एक होने के नाते, लैंसडाउन में एक ब्रिटिश छावनी भी है। सस्ते होने के कारण इस हिल स्टेशन पर लोगों की भीड़ अक्सर बनी रहती है। यहां घूमने के लिए बहुत सी जगहें हैं। ठंड के मौसम में हर साल यहां सलाना उत्सव शारदोत्सव मनाया जाता है।

उत्तर भारत का सबसे सस्ता हिल स्टेशन कौसानी

हिल स्टेशन कौसानी

1,890 मीटक ऊंचाई पर स्थित कौसानी, वलना के नाम से प्रसिद्ध है। इस जगह को कभी ‘भारत का स्विट्जरलैंड’ कहा जाता था। ये उत्तर भारत का सबसे सस्ता हिल स्टेशन है। हिमालय की चोटियों जैसे त्रिशूल, नंदा देवी और पंचचुली के कुछ सबसे खूबसूरत दृश्यों के लिए मशहूर है।

फोटो सौजन्य- गूगल

कहते हैं हौसले और मेहनत के बल पर दुनिया जीती जा सकती है। महाराष्ट्र के सतारा जिले की सुरेखा ने भी दुनिया जीती। ऐसी दुनिया जिसमें पटरियों पर रेल दौड़ाने का जिम्मा सिर्फ पुरुषों का था। ऐसी दुनिया जहां पर ट्रेन चलाने का एकाधिकार पुरुषों का था। उस दुनिया में पहली लोको पायलट बनी सुरेखा। ट्रेन में ड्राइवर की सीट पर बैठी सुरेखा को देखकर कई लोग अचंभित रह जाते हैं। लेकिन सुरेखा की मुस्कान और आत्मविश्वास ने हजारों महिलाओं के भीतर उम्मीद की किरण पैदा की है। आइये, आज भारत की पहली महिला ट्रेन चालक सुरेखा यादव के जज्बे से भरी दास्तां आपको सुनाते हैं।

महाराष्ट्र के सतारा में हुआ जन्म

ट्रेन चालक सुरेखा यादव

सुरेखा यादव का जन्म वर्ष 1965 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ। उनके पिता का नाम रामचंद्र भोंसले और माता का नाम सोनाबाई है। पांच भाई-बहनों में वे सबसे बड़ी हैं। उन्होंने जिले में ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। जब आगे पढ़ाई का समय आया तब भी सुरेखा के चुनाव ने सबको अचंभे में डाल दिया। अस्सी के दशक में, इंजीनियरिंग की पढ़ाई अधिकांश लड़के ही करते थे। लेकिन सुरेखा ने तय किया कि वे भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करेंगी। उन्होंने यह विषय चुनकर अन्य लड़कियों के लिए मिसाल कायम की। डिप्लोमा पूरी करने के बाद सुरेखा नौकरी के लिए प्रयास करने लगी।

ऐसे तय हुई लोको पायलट की राह

पढ़ाई पूरी करने के बाद एक दिन सुरेखा ने लोको पायलट भर्ती की अधिसूचना देखी। उन्होंने आवेदन कर दिया। जब परीक्षा देने के लिए वे प्रवेश परीक्षा कक्ष में पहुंची तो आश्चर्य में पड़ गईं। न केवल सुरेखा बल्कि परीक्षा नियंत्रक और बाकी अभ्यर्थी भी। सुरेखा के आश्चर्य का कारण था कि वे उस परीक्षा कक्ष में, एक मात्र महिला अभ्यर्थी के रूप में उपस्थित थीं। अन्य व्यक्ति चकित क्यों हो रहे थे, इसका अंदाजा आपको लग ही गया होगा। सुरेखा बताती हैं कि, उन्हें नहीं पता था कि अब तक कोई भी महिला इस कार्य के लिए चयनित नहीं हुईं हैं। सुरेखा यादव नहीं जानती थीं, कि वे इतिहास रचने वाली हैं। परीक्षा के विभिन्न चरण सुरेखा ने पास कर लिए और चयनित हो गईं।

ऐसे मिली भारत को मिली पहली महिला ट्रेन चालक

ट्रेन चालक सुरेखा यादव

परीक्षा में चयनित सुरेखा ने छह महीने की ट्रेनिंग पूरी की। इसके बाद उन्हें 1989 में असिस्टेंट ड्राइवर के पद पर नियुक्त कर दिया गया। इस तरह सुरेखा यादव, ट्रेन चलाने वाली भारत की पहली महिला बन गई। उन्होंने 29 साल रेलवे में काम किया। लोकल गाड़ी से लेकर एक्सप्रेस ट्रेन और मालगाड़ी तक सब चलाया। वर्ष 1998 में वह माल गाड़ी की ड्राइवर बन गईं और 2011 में एक्सप्रेस ट्रेन की ड्राइवर नियुक्त हुईं। उन्होंने भारतीय रेलवे में सेवा के दौरान अपने हर दायित्व को बखूबी निभाया। वे भारतीय रेलवे के प्रशिक्षण केंद्र में बतौर प्रशिक्षक की भूमिका भी निभाती हैं।

साल 2011 में मिला एशिया की पहली महिला ड्राइवर का खिताब

वर्ष 2011 का महिला दिवस, सुरेखा यादव को जीवन का सबसे बड़ा उपहार दे गया। इस दिन उन्हें एशिया की पहली महिला ड्राइवर होने का खिताब हासिल हुआ। सुरेखा ने पुणे के डेक्कन क्वीन से सीएसटी रूट पर ड्राइविंग की थी। इसे सबसे खतरनाक रास्ता माना जाता है। इस पटरी पर रेलगाड़ी चलाने के बाद ही सुरेखा को यह सम्मान मिला। भले ही सुरेखा को इस उपाधि से सम्मानित किया गया हो, लेकिन यह सिर्फ उनका सम्मान भर नहीं था, यह हजारों महिलाओं को देहरी लांघकर अपने सपने पूरे करने का न्यौता था। यह आह्वान था महिलाओं को, कि वे हर वो काम करने की हिम्मत जुटाएं जो वो करना चाहती हैं। उनके कदम कभी न रुकें यह सोचकर कि, अमुक कार्यक्षेत्र सिर्फ पुरुषों के लिए है। सुरेखा यादव की जीवन यात्रा से यही प्रेरणा मिल रही है।

फोटो सौजन्य गूगल

आज हम बात करने वाले है उस छोटे बच्चे के बारे में जिसे हम समझाते तो बहुत है लेकिन अक्सर उसकी जिद के आगे हमें अपने घुटने टेकने पड़ते है