Relationship Stress: भारत में तनाव भरी जिंदगी का ग्राफ इतना बढ़ चुका है कि इसका साइड इफेक्ट देखा जाए तो यहां हर दिन लगभग 140 महिलाएं और लड़कियां अपने पार्टनर या घरेलू सदस्य के हाथों मार दी जाती हैं। एक असंतुलन और अन्याय को पारंपरिक मर्यादा से सजाए हुए रखने वाला यह रिश्ता महिलाओं के लिए तनाव भरा साबित हो जाता है।
भयावह है घरेलू हिंसा के आंकड़े
यूएन वीमेन एंड यूएन ऑफिस ऑफ ड्रग्स एंड क्राइम के आंकड़े बताते हैं कि घर महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक है। यहां उनकी जान का कोई मोल नहीं है। पुरुषों के मुकाबले अपने जीवनसाथी और यौन साथी के हाथों मारी जाने वाली महिलाओं की तादाद दुनिया भर में 10 गुना से भी अधिक है। भारत से लेकर अमेरिका और यूरोप तक में ये आंकड़े लगभग एक जैसे ही हैं।
साल 2022 में जहां 48,800 महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हुईं, वहीं वर्ष 2023 में यह आंकड़े बढ़कर 51,100 तक पहुंच गए। वर्ष 2024 और 2025 के आंकड़े अभी आने बाकी हैं लेकिन अंदाजा लगाया जा सकता है। बिग फैट इंडियन वेडिंग जितनी खूबसूरत अलबम में लगती हैं, उनकी हकीकत उतनी ही स्याह है।
सेल्फ केयर बनाम परिवार की मर्यादा
एक सीनियर साइकेट्रिस्ट और साइकोथेरेपिस्ट कहती हैं कि कई संस्कृतियों में, जिनमें भारतीय संस्कृति भी शामिल है, महिलाओं को यह सोचने के लिए प्रेरित किया गया है कि उनके लिए त्याग, बलिदान और दूसरों की देखभाल अपनी देखभाल से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
एक स्वस्थ संबंध जीवन में अतिरिक्त तनाव का कारण नहीं बनना चाहिए। पर कभी-कभी ऐसा होता है कि संबंध खराब हो जातें हैं और यह किसी महिला के मानसिक स्वास्थ्य, आत्मसम्मान और कार्यक्षमता को बुरी तरह से प्रभावित करता है।
महिलाओं को बार-बार यह याद दिलाया जाता है कि अगर रिश्ता बिगड़ रहा है, तो इसमें उनकी ही गलती है। यह आत्म-दोष अक्सर इनकार की भावना को जन्म देता है, जिससे भावनात्मक रूप से थकान होता है और इस विषाक्त चक्र से बाहर निकलना बहुत कठिन हो जाता है।
रिलेशनशिप में तनाव पैदा करने वाले सामान्य कारण
सीनियर साइकेट्रिस्ट के मुताबिक रिलेशनशिप में तनाव के कई कारण हो सकते हैं। मगर उन सभी के मूल में संवाद की कमी और वह अन्यायपूर्ण मानसिकता है, जिसमें स्त्री के लिए जिम्मेदारियां और पुरुष के लिए अधिकारों को न्यायसंगत माना गया है। पारिवारिक ढांचा बदल रहा है। वे अपने साथी पुरुष की ही तरह शिक्षित और स्किल्ड हैं। मगर ‘मर्यादा की मानसिकता’ बदल नहीं पा रही है। स्त्रियां बाहर निकल कर काम कर रहीं हैं, पैसा कमा रही हैं, उनका फोकस बदल रहा है। मगर ‘घर’ अब भी उनसे घूघंट वाली बहू सा उम्मीद लगाए बैठा है। वास्तविकता और अपेक्षा के बीच की खाई रिश्तों को तनावपूर्ण बना रहा है।
इनमें संवाद की कमी, घरेलू जिम्मेदारियों में साझेदारी, बहुत ज्यादा साथ रहना या बहुत कम साथ रह पाना, परिवार के बाकी सदस्यों की दखलंदाजी, खर्च, बहस, पूर्वाग्रह, बेवफाई, सेक्स जैसे मुद्दे हैं जो रिश्तों में तनाव की वजह बनते हैं। हर तनाव हिंसा तक नहीं पहुंचता लेकिन दोनों ही पार्टनर्स के जीवन में जहर घोलने लगता है। जिसका असर काम पर पड़ना भी स्वाभाविक है।
जब कोई रिश्ता जोड़-तोड़ भरा, भावनात्मक रूप से प्रताड़ित करने वाला, आत्मकेंद्रित, नियंत्रित करने वाला या विषाक्त होता है, तो यह लंबे समय तक चलने वाले तनाव और चिंता का कारण बन सकता है, जिससे अवसाद भी हो सकता है। आखिर में, इसका प्रभाव ऑफिस में प्रदर्शन और रोजमर्रा की गतिविधियों पर भी दिखाई देने लगता है।
हो सकता है रिलेशनशिप स्ट्रेस से बाहर निकलने का उपाय ?
डिस्ट्रक्शन किसी के लिए भी फायदे का सौदा नहीं है। आप टॉक्सिक हैं या आपका पार्टनर, उसके नुकसान दोनों को ही उठाने पड़ेंगे। इसलिए बेहतर है कि समाधान के रास्ते खोजने पर काम किया जाए।
सीनियर साइकेट्रिस्ट कहती हैं कि तनाव से बाहर निकलना और अपनी शक्ति को फिर से हासिल करने का पहला कदम है- इस विषाक्तता को पहचानना, तनाव के स्रोतों को समझना और यह स्वीकार करना कि यह उनकी गलती नहीं है।
जहर भरे रिश्तों से निपटने के लिए भावनात्मक बुद्धिमत्ता विकसित करना, सीमाएं तय करना और प्रोफेशनल सहायता लेना बहुत जरूरी है। चूंकि ऐसे आत्मकेंद्रित या टॉक्सिक लोग शायद ही कभी थेरेपी में जाते है। इसलिए महिलाओं को अपनी मानसिक क्षमता को सुधारने के लिए थेरेपी और मनोवैज्ञानिक तरीकों पर ध्यान देना चाहिए।
दिल से नहीं दिमाग पर करें यकीन
किसी भी फैसले, किसी भी बहस में भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया देने के बजाय तर्कसंगत रूप से सोचना तनाव को कम करने में मदद करता है। दिल की बजाए दिमाग को ड्राइविंग सीट पर रखें ताकि जीवन को बेहतर बनाया जा सके। सही वक्त पर लिया गया प्रोफेशनल इंटरवेंशन महिलाओं को सशक्त बनाने, उनके जीवन पर उनका अपना नियंत्रण रखने, प्रोडक्टिविटी बढ़ाने और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में काफी मदद कर सकता है।
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