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केवल लड़कियां ही नहीं Boys भी होते हैं बांझपन के शिकार, इस तकनीक से बन सकते हैं पिता

Male Inferlity

मेल इनफर्टिलिटी उपचार: एक अध्ययन के मुताबिक कुल कपल्स में 40 फीसदी को संतान प्राप्ति नहीं हो सकती है, जिसकी वजह से Boys बांझपन की शिकायत बढ़ जाती है। मेल इनफर्टिलिटी की समस्या होने पर इंट्रासाइटोप्लास्मिक तकनीक में शुक्राणु का इंजेक्शन देना एक प्रभावकारी इलाज है। ICSI का अगला प्रभावी उपाय आईएमएसआई है।

इस माइक्रोस्कोप मशीन से चेक होती है Sperm Quality

ये तकनीक प्रेग्नेंसी रेट दिलाने में बहुत कारगर साबित हुई है। माइक्रोस्कोप मशीन की मदद से अच्छे और कमजोर Sperms की पहचान की जा सकती है। यह माइक्रोस्कोप मशीन स्पर्म यानी शुक्राणु को उसके मूल आकार से बड़ा दिखाता है।

IVF से भी प्रभावी है इंट्रासाइटोप्लास्मिक तकनीक

Male Inferlity

इसी तकनीक को इंट्रासाइटोप्लास्मिक कहते है, जो स्पर्म के इंजेक्शन के जरिए दी जाती है। इसका नतीजा आईवीएफ तकनीक से भी अधिक अच्छा पाया जाता है। जो दम्पति कुदरती तरीके से संतान नहीं पा सकते हैं वे IVF तकनीक को अपनाना चाहते हैं। इसमें भी प्रभावकारी स्पर्म को सिलेक्ट करना सबसे अहम हिस्सा है। कई बार ऐसा भी होता है कि पति के शुक्राणू प्रभावकारी नहीं होते है और स्पर्म का काउंट रेट कम होता है। इन हालातों में स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स मेडिकल मायक्रोस्कोप के जरिए यह पता करते है कि कौन से स्पर्म बेहतर हैं, जिससे प्रेग्रनेंसी हासिक की जा सके।

IVF तकनीक का खर्च लगभग 80,000 से 1,00000 तक आता है, इतना खर्च होने के बाद दम्पति हाल में प्रेग्नेंसी पाने में कोई कोई रिक्स उठाना नहीं चाहते हैं, उन कपल्स के लिए इंट्रैसायटोप्लास्मिक मॉफेलोजी तकनीक काफी उपयुक्त हो सकती है।

ICSIआय क्या है?

ICSI तकनीक में एक बीज को एक जीवित शुक्राणू के साथ मायक्रोमैनिप्यूलेटर मशीन से मिलाया जाता है। इस मिलन या फलित क्रिया को माता के शरीर के बाहर करवाया जाता हैं यानी बच्चे के जन्म की आरंभिक प्रक्रिया मां के शरीर के बाहर करवाई जाती है। फिर दो दिनों के बाद भ्रूण को मां के गर्भाशय छोड़ा जाता है और प्रेग्नेंसी को कन्फर्म करने के एक ब्लड टेस्ट 14 दिनों के बाद किया जाता है।

बता दें कि इस पूरी क्रिया से पहले कपल्स में फीमेल को हार्मोनल इंजेक्शन 10-12 दिन पहले दिए जाते है, ताकि वो 10-12 बीज तैयार कर सके। फिर इन बीजों को निकाला जाता है, जिसे ओव्हम-पिक कहते है, यह तकलीफ देह नहीं होता है। इसके बाद पति से शुक्राणु निकाले जाते है, इस पद्धति को टेस्टाक्यूलर बायोप्सी कहते है। ज्यादा से ज्यादा इसमें 15-20 मिनट लगते है, और पेशंट को अनेस्थेशिया दिया जाता है। ICSI इनट्रैसायटोप्लास्मिक मेफोलॉजी में स्पर्म इंजेक्शन दिए जाते हैं, वैसे यह आईसीएसआई तकनीक का अगला पड़ाव है। बस फर्क इतना है कि ICSI स्पर्म का चुनाव काफी सावधानीपूर्वक करते हैं। जबकि पारंपारिक ICSI तकनीक से यह काफी प्रभावकारी है, जिन पुरुषों का स्पर्म काउंट कम है या एब्नॉर्मल है उन्हें ICSI से फायदा हासिल हो सकता है।

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