बैग… जी हां, वही बैग जो मां ने शादी के समय ये कहते हुए मेरे ज़रूरी सामान से भर दिया था कि उस घर जाते ही तुम्हें इसकी जरूरत पड़ेगी….तेरा सारा ज़रूरी सामान इसमें रख दिया है।
उस वक्त लगा जैसे मां ने मेरी सारी दुनिया समेट कर उस बैग में रख दी हो, क्योंकि जब दूसरे घर जाऊंगी तो मां नहीं होगी वहां, यही सूटकेस होगा जो मां ने मेरी विदाई के वक्त मेरे साथ गाड़ी में रख दिया था।
बड़ा मुश्किल था उस सुहाने सपनों की दुनिया से इस हकीकत की दुनिया में आना। पर मां अक्सर कहा करती है कि ‘एक दिन हर लड़की को जाना होता है अपने घर’ तो मैने भी हां में सिर हिला दिया। फिर तो बस समय जैसे पंख लगा कर उड़ गया था…
लेकिन जब दूसरे घर जाकर देखा तो उस सूटकेस में मेरी जरूरत का तो सारा सामान था लेकिन मेरी जिंदगी तो वही उसी घर में छूट गई थी। मैंने मां पर भरोसा कर लिया था कि उन्हें पता है कि मेरे लिए ज़रूरी क्या है तो उन्होंने रख दिया होगा। पर नहीं उसमें तो वो था ही नहीं जो मेरे लिए वाकई ज़रूरी था।
मेरी वो बचपन वाली शरारतें, वो खिलखिलाकर हंसना, पापा के साथ मस्ती, भाई बहनों को परेशान करना, वो ‘तोरी की सब्जी नहीं खानी’ वाले नखरे, वो आलू के पराठे खाने की जिद, वो चोट लगने पर मां के सीने से चिपक जाना, वो मां के डांटने पर उनकी शिकायत पापा से करना, आइस क्रीम खाने की जिद , वो चांद को देखकर उसे पा लेने का जुनून, रात को मां से चिपक कर वो सुकून भरी नींद, नींद में बुरा सपना देखने पर मां का वो पुचकार कर वापिस सुला देना, वो हर जन्मदिन पर मां का नए कपड़े लाकर देना, वो नारियल तेल की मालिश , वो बारिश में ना भीगने की हिदायत, वो सड़क पार करते हुए मां का मेरा हाथ कस के पकड़ लेना, वो दुकान पर रखा बड़ा सा टेडी बियर लेने की जिद करना…..और न जाने क्या क्या..! सब तो वही छूट गया मां। वो हसीन यादें तो तुम मेरे इस सूटकेस में रखना ही भूल गईं।
हालांकि इस बैग में वो सामान है ही नहीं जो मेरे लिए ज़रूरी हैं लेकिन फिर भी ये बहुत भारी लगता है मां।
आज जब भी इसे लेकर तुमसे मिलने आती हूं ये तब भी भारी होता है…और जब तुमसे मिलकर वापिस आती हूं ये तब भी भारी होता है…इसके अंदर कुछ हो न हो मां, लेकिन तुमसे मिलकर वापिस आते वक्त जब मन भारी होता है, तो इस बैग का वजन दोगुना हो जाता है। कभी कभी ये बोझ मै उठा ही नहीं पाती।
मां मेरा सारा ज़रूरी सामान मुझे वापिस कर दो और बदले में ये बैग तुम भले ही वापिस ले लो। मेरे कंधे और दिल अभी भी बच्चों से ही है मां, इस बैग को उठा पाना मेरी बस का हैं ही नहीं। मैं अभी भी तो तुम्हारी वही छोटी बच्ची हूं जिसके जिद करने पर भी दुकान से लाया भारी सामान तुम उठाने नहीं देती थी…
तो आज क्या हो गया… क्यों मुझे बड़ा बना देने की जिद करने लगी हो तुम ….
देखो मां मैं कह देती हूं…तुम मुझसे मेरा ज़रूरी सामान नहीं छिन सकती…
मेरा ज़रूरी सामान मेरे मां-पापा का प्यार है…और वो घर है.. हां मैं उन्हें सूटकेस में तो नहीं ला सकती.. लेकिन तुम्हें बताए बिना मैं चुपके से इन्हें दिल में रख लाई हूं…मुझे माफ करना मेरी प्यारी मां.. लेकिन यही सामान मेरी जिंदगी है…।
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