Eid Milad-Un-Nabi को ईद-ए-मिलाद के नाम से भी जाना जाता है। इस्लाम धर्म में ईद मिलाद-उन-नबी का पर्व पैगंबर हजरत मोहम्मद के जन्मदिन के मौके पर मनाया जाता है। ईद मिलाद-उन-नबी इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी अल-अव्वल की 12वीं तारीख को मनाया जाने वाला एक खास इस्लामिक त्योहार है। इस मौके पर मुस्लिम समुदाय में विशेष दुआ, समारोह और जश्न मनाते हैं। मुस्लिम समाज के लोग मस्जिदों में जाकर प्रार्थना करते हैं और हजरत मोहम्मद साहब द्वारा दी गई शिक्षा और उपदेशों को याद करते हैं। इस बार मिलाद-उन-नबी 15 सितंबर से लेकर 16 सितंबर यानी आज शाम तक मनाया जाएगा।
ईद मिलाद-उन-नबी का ये है महत्व
ईद मिलाद-उन-नबी का महत्व इस्लामिक धर्म में बहुत अधिक है। यह त्योहार पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिन के अवसर के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें इस्लामिक धर्म का आखिरी नबी माना जाता है। यह पर्व इस्लामिक लोगों को एकता के सूत्र में बांधता है और उन्हें पैगंबर द्वारा दिए गए पैगाम को याद करने का अवसर प्रदान करता है। अलावा इसके यह त्योहार मुस्लिम लोगों को समाज सेवा के लिए प्रेरित करता है और गरीबों, जरूरतमंदों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
इस दिन रात भर प्राथनाएं होती हैं और जगह-जगह जुलूस भी निकाले जाते हैं। घरों और मस्जिदों में कुरान पढ़ी जाती है। इस दिन गरीबों को दान भी किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि ईद मिलाद-उन-नबी के दिन दान और जकात करने से अल्लाह खुश होते हैं।
जानें मिलाद-उन-नबी का इतिहास
ईद मिलाद-उन-नबी का इतिहास इस्लामिक धर्म के पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्म से जुड़ा हुआ है। हजरत मोहम्मद साहब का जन्म 570 ईस्वी में मक्का में हुआ था। बता दें कि सुन्नी लोग पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्म को रबी अल-अव्वल की 12वीं तारीख को मनाते हैं जबकि, शिया समुदाय इस त्योहार को 17वें दिन मनाते हैं। यह दिन न सिर्फ पैगंबर मोहम्मद के जन्म का प्रतीक है, बल्कि उनकी मृत्यु के शोक में भी इस दिन को याद किया जाता है।
पैगंबर साहब के जन्म से पहले ही उनके पिता का निधन हो चुका था। जब वह 06 वर्ष के थे तो उनकी मां की भी मृत्यु हो गई। मां के निधन के बाद पैगंबर मोहम्मद अपने चाचा अबू तालिब और दादा अबू मुतालिब के साथ रहने लगे। इनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और माता का नाम बीबी आमिना था। अल्लाह ने सबसे पहले पैगंबर हजरत मोहम्मद को ही पवित्र कुरान अता की थी। इसके बाद ही पैगंबर साहब ने पवित्र कुरान का संदेश दुनिया के हर कोने तक पहुंचाया।
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