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Tag Archives: बेटी

I have learned to laugh futilely, smiling at lies

मां, वह घर छूटे अरसा हो गया है और वैसे ही वह बेफ़िक्री से सोए हुए अरसा हो गया। तुम्हें याद है मैं हमेशा तुम्हें कह कर सोती थी कि मां मुझे जल्दी उठा देना, लेकिन तुमने कभी मुझे सोते हुए नहीं उठाया। लेकिन सच कहूं तो वो वाली नींद भी वही छूट गई, अब ऐसी नींद आती नहीं। आंखे ना जाने क्यों अलार्म बजने से पहले खुल जाती है। ना जाने किस बात की बेचैनी है। जब से वह घर छूटा है ना, तब से खाना भी अच्छा नहीं लगता ।

पता नहीं तुम आटे में क्या मिलाया करती थी, वैसी रोटी कहीं खाने को ही नहीं मिलती।
कई बार कोशिश की तुम्हारे जैसा स्वाद खाने में लाने की, लेकिन ना जाने क्यों अपने हाथ से बनाया हुआ पनीर भी लौकी जैसा लगता है। और हां, लौक़ी से याद आया तुम्हें याद है, जब जब घर पर लौकी बनती थी तो तुम मेरे लिए कोई और दूसरी सब्जी बना देती थी। मां, तुम कितने अच्छे से जानती थी ना, कि मैं नहीं खाऊंगी, मुझे पसंद नहीं है। तुम्हें पता है मैं अब बड़ी हो गई हूं, अब लौकी बनती है, तो मैं आचार से रोटी खा लेते हूं और जब सवाल करती हूं खुद से कि दूसरी सब्जी?
तो इस दिल-ए-नादान को समझाती हूं- यह पापा का घर नहीं है!

सब से लेट सो कर, सब से लेट उठती थी मैं। वैसे सब से लेट तो यहां पर भी सोती हूं, लेकिन सुबह सबसे पहले उठने के लिए।
अलार्म कई बार बजती है, कई बार मुझसे यह कहते हुए रूठ जाती है कि तुम्हें मेरी क्या जरूरत है? मैं उसे कैसे समझाऊं कि मुझे उसकी जरूरत जागने के लिए नहीं, बल्कि कभी गलती से मीठे सपनों में खो कर आंख ना खुलने पर देर ना हो जाए इसलिए अलार्म लगाती हूं।

I have learned to laugh futilely, smiling at lies

पतंग को देखकर आसमान में दूर तक उड़ जाने के ख्वाब देखने वाली मैं , ये फिजूल के मतलबी रिश्ते निभाते निभाते मशीन हो गई हूं ।
तुम्हें पता है मां, अब दिल दुख होना भी भूल गया है। पहले कोई दिल दुखाता था तो उसकी शक्ल ना देखने की कसम खाने वाली मैं, अब झूठा मुस्कुराना सीख गई हूं। दिल अंदर चीख रहा होता है और बाहर कोई सुन नहीं सकता, मेरी हंसी के पीछे इस मासूम की चीख कुछ भी नहीं है। जब तुम पास थी तो एक छोटी सी खरोच भी बहुत बड़ी चोट होती थी लेकिन अब अक्सर खाना बनाते हुए हाथ जल जाते हैं मेरे, और कमाल देखो मां, तुम्हारी ये बेहतरीन अदाकारा बेटी, मुंह से उफ्फ भी नहीं निकालती।

आज बाजार में एक मां अपनी बच्ची को खिलौना दिला रही थी। बहुत खुश थी वह बच्ची खिलौने लेकर। लेकिन तभी एक ख्याल मन में आया कि आज जब मां पास है तो बाजार के सारे खिलौने अपने लगते हैं, लेकिन जब वही मां पास नहीं होती लोग उसी को खिलौना बना कर खेलते रहते हैं। कभी उसके दिल से और कभी उसके जज्बात से। तुम बहुत याद आती हो मां, जब कभी सड़क पार करनी होती थी तो तुम और ज्यादा कसकर मेरा हाथ पकड़ लेती थी। आज जब कभी अकेले सड़क पार करती हूं , तो लगता है तुम यहीं कहीं मेरे साथ हो।

अब बड़ी हो गई हूं, मां अकेले सड़क पार करने के अलावा जिंदगी की मुश्किलों से लड़ना सीख गई हूं, समझौते करना सीख गई हूं, दिल में बहुत सारा दर्द लेकर हंसना सीख गई हूं और इनमें कोई बुराई भी नहीं है। जिंदगी का दूसरा नाम आजमाइश ही तो है। तुमने हर मोड़ पर मेरा साथ दिया है और आगे भी देती रहोगी, लेकिन सबको अकेले ही अपनी जिंदगी के अंधेरों से लड़ना पड़ता है। और मैं डटकर सारे अंधेरों का सामना करूंगी बस तुम ठीक वैसे ही मेरा हाथ पकड़े रखना जैसे तुम सड़क पार करते वक्त पकड़ती थी।
आई मिस यू मां
आई लव यू लॉट

हम में से ज्यादातर लोग अपनी मां को दिलो-जान से प्यार करते हैं, उतना पिता से नहीं होता। प्यार तो हम उनसे भी करते हैं पर क्या कभी हम उन्हें गले लगाकर या उनके साथ बैठकर बातें करके ये बताते हैं कि वह हमारे लिए कितने खास हैं। मदर्स डे पर हम ना जाने कितनी तैयारियां करते हैं। मां को शॉपिंग के लिए ले जाते हैं, कार्ड्स बनाते हैं हैं या केक बेक करते हैं पर फादर्स डे पर आप ये सब भूल जाते हैं।

मालूम हो कि हर वर्ष फादर्स डे जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। हमारे पिता हमसे बहुत प्यार करने के बाद भी इसे इजहार नहीं करते और ना ही हम कभी उनसे खुलकर अपने इमोशन या फिलिंग्स के बारे में चर्चा कर पाते हैं। ऐसा नहीं है कि हम अपनी जिंदगी में अपने पिता के अहम योगदान और त्याग को भूल जाते हैं।

बाप और बच्चों के रिश्तों के मद्देनजर बॉलीवुड फिल्मों ने बड़ी ही खूबसूरती से कई फिल्मों को दिलचस्प बनाया है। फादर्स डे के मौके पर कुछ चुनिंदा फिल्मों की सूची-

1. पीकू-

Piku

एक मेहनती बेटी (दीपिका पादुकोण) अपने हाइपोकॉन्ड्रिएक पिता (अमिताभ बच्चन) के साथ दिल्ली से कोलकाता के लिए रोड ट्रिप पर जाती है। ‘पीकू’ उन फिल्मों में से एक है जो आपको जितना हंसाएगी, उतना ही रुलाएगी। फिल्म में हम देखते हैं कि बाप-बेटी की यह जोड़ी एक-दूसरे को बेहद परेशान करती है पर यह भी साफ है कि दोनों एक-दूसरे को समझते भी हैं और समर्थन भी करते हैं।

2.दंगल-

Dangal

महावीर सिंह फोगाट (आमिर खान) जो कि एक एक्स रेसलर हैं, जो अपनी बेटियों गीता और बबीता को पहलवान बनाना चाहते हैं। फिल्म में फोगाट एक कठिन टास्क मास्टर की भूमिका निभाते हैं जो अपनी बेटियों को रेसलिंग की ट्रेनिंग देने में कोई कसर नहीं छोड़ते। रियल लाइफ स्टोरी पर बेस्ड यह फिल्म दिखाती है कि जब बच्चों की जिंदगी बनाने की बात आती है तो पिता को अपने बच्चों के लिए बहुत कठोर भी होना पड़ता है। यह खेल पर बेस्ड मूवी आपके वीकेंड प्लान के लिए बेस्ट ऑप्शन है।

3. अंग्रेजी मीडियम-

Angrezi Medium

इसी साल बड़े पर्दे पर रिलीज हुई इरफान खान और राधिका माधन की फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ ने बाप-बेटी के रिश्ते के बेहद सुंदर तरीके से दिखाया। फिल्म की कहानी उस पिता पर केंद्रित है, जो लंदन की एक यूनिवर्सिटी में अपनी बेटी का एडमिशन कराने के लिए किसी हद तक जा सकता है। हालांकि, उनके रास्ते में कई बाधाएं आती हैं जिससे उसकी बेटी के साथ उसका रिश्ता भी प्रभावित होता है। यह फिल्म आपको गुदगुदाने के साथ-साथ इमोशनल करने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ती है।

4. थप्पड़-

Thappad

जब अमृता (तापसी पन्नू) अपने पति के थप्पड़ मारने के बाद तलाक देने का फैसला करती है, तो उसके पिता (कुमुद मिश्रा) उसके साथ खड़े होते हैं। असल में, वह पूरे परिवार में अकेले व्यक्ति होते हैं जो उसके दर्द को समझते हैं व उसके फैसले पर सवाल नहीं उठाते। जैसे अमृता हर रोज एक नई परेशानी का सामना करती है, उसके पिता बिना शर्त उसे समर्थन करते हैं।

5. एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा-

Ek Ladki ko Dekha to aisa laga

रियल लाइफ पापा और बेटी, अनिल कपूर और सोनम कपूर, इस फिल्म में मुख्य किरदारों में नजर आते हैं। हालांकि, इस फिल्म को एक लव स्टोरी के तौर पर दिखाया गया है, लेकिन इसका फोकस स्वीटी पर होता है जो अपने रूढ़िवादी परिवार से निकलकर बाहर आती है। यह एक काफी खूबसूरत फिल्म है, जो एक पिता के रूढ़िवादी होने से प्रोग्रेसिव व्यक्ति बनने तक के सफर को बखूबी दिखाती है।

छोटी बच्ची

आज यही पड़ोस के घर में रोने की तेज आवाजों ने मेरी नींद को तोड़ने में एक क्षण भी नहीं लगाया। लगातार बस यही सुनने को मिल रहा था, कि लड़की हुई है, इससे अच्छा तो होती ही ना।

लड़की को पैदा करने के जुर्म में उसकी मां को भी लगातार गालियां सुनने को मिल रही थी, बार बार उसको ये अहसास दिलाया जा रहा था कि उसने कितना भयानक जुर्म किया है। बार बार उसे ताने देकर बताया जा रहा था कि अगर वो लड़की की जगह लड़का पैदा करती तो आज मातम की जगह खुशियां मनाई जाती। उसे पड़ोस वाली औरतें भी ये बता रही थी कि उसमें लड़का पैदा करने कि क्षमता नहीं है, इसलिए लड़की पैदा करने के बाद वो किसी से भी ये उम्मीद न रखे कि सब लोग उसे इज्ज़त बक्शेंगें।

लेकिन इन सब के बीच वो नन्हीं सी परी अपनी मोटी-मोटी आंखो को खोले बहुत आस से एक एक करके सबको देख रही थी कि गलती से कोई मुस्करा कर उसे गोदी में उठा ले। लेकिन बच्ची है, नादान है, जानती ही नहीं कि ये सारे बेशर्म लोग उसके आने से खुश नहीं बल्कि उनपर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो। कोई उसे गोदी लेना तो दूर उसको देखना तक नहीं चाहता।

वाकई ये सच कितना कड़वा है ना कि बहु सब को सर्वगुण संपन्न चाहिए लेकिन आज भी समाज में ऐसे लोग है जो बेटी को पैदा करना ही नहीं चाहते, उसे आज भी बोझ मानते है, आज भी नानी दादी सिर्फ पोते की चाह रखती है। आज भी लड़की होने पर कभी उसे कचरे के डिब्बे में फेंक दिया जाता है या मार दिया जाता है।

ये समाज आज भी पहले की तरह ही अनपढ़ रवैया वाला समाज है, जो लड़कों के लिए अलग है और लड़कियों के लिए अलग।

आज की चर्चा उन लड़कियों के लिए है जिनके लिए आगे बढ़ना तो दूर…आगे बढ़ने के सपने देखना भी गुनाह है ।

बहुत दुख हो रहा है ये कहते हुए भी की आज भी लोग लड़को और लड़कियों में भेद करते है…

लाख बंदिश है जो उन्हें ये समझने ही नहीं देती कि उन्हें भी हक है अपनी ज़िन्दगी अपने तरीके से जीने का..बिल्कुल वैसे ही जैसे उनके भाई जीते है।

पता नहीं लोग क्यों ये नहीं समझना चाहते कि जब भगवान ने कोई फ़र्क नहीं किया तो वो क्यों इस पाप के भागीदार बन रहे है…जीने दो इन परियों को भी अपने तरीके से…. उड़ान भरने दो इन्हे भी अपनी गति से…।

और यकीन मनिए….एक दिन वो भी आएगा जब आपको इनपर नाज़ होगा … क्योंकि ये उस मुकाम पर होंगी जहां आपने कभी ख्वाहिश भी नहीं की होगी…

गौरतलब है कि उस वक़्त आपको यकीन नहीं होगा कि ये आपकी वहीं परियां है…. जिनके हंसने पर भी आपने पाबंदियां लगाई थी।।

चलिए जिसे समझना होगा वो इतने में समझ जाएगा… बाकी जिसको ये समझ नहीं आया उनके लिए कुछ और है मेरे पास….

मैं क्या जानू आज़ादी को, कैसे खुद को लड़का मानू,

मिले ही नहीं जो पंख मुझे, कैसे फिर मैं उड़ना जानूं ।

कैसे भुला दू इस हकीकत को, कैसे सच को सपना मानू,

जब आए अपने आंसू देने को, कैसे फ़िर मैं रिश्ते जानूं ।

सुकून दिया जिन फूलों में मुझे, कैसे उनको काटें मानू

हर पल जब खाई ठोकरें मैंने,कैसे फिर मैं उठना जानूं ।

दिखाए मैंने जो सपने दिल को, कैसे उनको टूटा मानू,

मिला ही नहीं कभी दरिया मुझे, कैसे फिर मैं प्यास को जानूं ।

भिगोया ही नहीं जिसने मुझे, कैसे उसको रिमझिम मानू,

जब मिली ही नहीं मूर्त मुझे, कैसे फिर मैं पूजा जानूं।

हर पल रुलाया जिसने मुझे, कैसे उसको अपना मानू

मिली ही नहीं कभी खुशी इस दिल को, कैसे फिर मैं हंसना जानूं ।

पाया है हर पल चार दीवारों मैं खुद को, कैसे इसको दुनिया मानू

मिला ही नहीं कभी जीवन मुझे तो, कैसे फिर मैं मौत को जानूं ।

मैं क्या जानूं आज़ादी को, कैसे खुद को लड़का मानू,

मिले ही नहीं कभी पंख मुझे तो कैसे फिर मैं उड़ना जानूं।।

 

फाइल फोटो- गूगल