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Tag Archives: समाज

Even today in this male dominated society woman is the only object of consumption..!

हाज़िर हूं जिंदगी से जुड़ी कुछ बेहतरीन बातों औ सच्चाई के साथ। जी हां, कुछ ऐसा जो कड़वा है लेकिन सच है। हो सकता है आप सभी मेरी बात से सहमत ना हो लेकिन आज जो मैं आपके लिए लाई हूं वो एक वर्ग की रोज़ की कहानी है जहां आज भी पुरुष प्रधान समाज का ही राज है। आज भी उस समाज में औरतों को सिर्फ घर संभालने वाली समझा जाता है। आज भी उस समाज में औरतें अपने अस्तित्व ढूंढते हुए अपनी उम्र गुजार देती है। आज भी उस समाज में औरतों को सिर्फ उपभोग की वस्तु समझा जाता है।

कड़वा है लेकिन सच है:

‘दम घुट रहा है, शायद औरत होने की सजा है’

आप लोगों ने तो सिर्फ सुना है एक औरत तो रोज इन परिस्थतियों से रोज़ दो चार होती है, कभी सोचा है उसे कैसा लगता होगा। बचपन से सिखाना शुरू कर दिया जाता है कि अच्छी लड़की वहीं होती है जो सब का अच्छा सोचकर चले। अपने से पहले अपनों का सोचे। लेकिन कभी किसी ने उसके बारे में सोचा? पहले मां-बाप के घर उनके अनुसार रहे, जैसा वो बोले वैसा किया, फिर शादी के बाद तो ये नौबत आ जाती है कि अगर अपने पैरेंट्स से मिलना है तो पहले घर में सबसे आज्ञा लो फिर जाओ।

आज लड़कियां किसी काम में पीछे नहीं है, वो घर और ऑफिस दोनों आराम से चला रही है लेकीन कोई इस पुरुष प्रधान समाज से पूछे कि क्या किसी पुरुष ने ऑफिस से आकर एक ग्लास पानी भी खुद से लिया है। तो जब आज भी लड़कियों के लिए ये समाज पहले जैसा ही है तो ये बराबर के हक़ देने का डोंग क्यों? इससे अच्छा ये है कि आप एक औरत की खूबियों में से उसकी कमियां निकालना बन्द करें और अपनी कमियों पर ध्यान दें।

वैसे, अपनी कमियां खुद निकालना बहुत मुश्किल काम है, इसलिए अगर आपसे ये ना हो तो फिर छोड़ दीजिए औरतों को उनके हाल पर, क्योंकि वो अपने लिए कल भी सक्षम थी, आज भी है, और कल भी होगी।

बस गलती उसकी ये है कि वो आप लोगो की तरह जता नहीं पाई, की आप उसके बिना अधूरे हो और आप लोग तो साहब है, खुद से कभी ये बात समझ नहीं पाओगे। औरतों के लिए कुछ बदल तो नहीं पाया अब तक लेकिन वो अपने आप को बदल सकती है, तो मेरी कोशिश है उन्हें थोड़ा समझाने की…ज़रा गौर फरमइएगा:-

हां, मान लिया अब तुम अपनी जगह बनाना जानती हो,
हां, मान लिया की कढ़ाई में कलछी चलाने के साथ अब तुम लैपटॉप चलना भी जानती हो,
लेकिन पगली तुम भूल गई हो शायद कि,
सब करने के बाद भी तुम, इस पुरुष प्रधान समाज में आज भी सिर्फ एक उपभोग की वस्तु हो।।
दो मीठे बोल बोले जाए तुम्हें, तो तुम फूल सी खिल उठती हो,
जो भी दिया जाए तुम्हें, तुम हमेशा उसका डबल ही देती हो,
सब कर लोगी तुम, बात फिर भले ही चार काम एक साथ करने की हो,
लेकिन पगली तुम भूल गई हो शायद कि,
सब करने के बाद भी तुम, इस पुरुष प्रधान समाज में आज भी सिर्फ एक उपभोग की वस्तु हो।।
बीमार हो जाए अगर घर में कोई अपना, तो तुम उसका पूरा ख्याल रखती हो,
फिर होती हो अगर कभी खुद बीमार, तो किसी के स्नेह भरे हाथ को अपने माथे पर ढूंढती हो,
एक जोड़ी पायल गिफ्ट में पा लेने पर, तुम दिन भर ठुमकती हो,
इस दिखावटी प्यार के जाल में, तुम हर बार फंसती हो,
लेकिन पगली तुम भूल गई हो शायद कि,
सब करने के बाद भी तुम, इस पुरुष प्रधान समाज में आज भी सिर्फ एक उपभोग की वस्तु हो।।
किसी का वंश आगे बढ़ाने की तुम सिर्फ एक कड़ी हो,
वारिस दोगी उन्हे तुम, इसलिए उस घर से जुड़ी हो,
इतने सारे काम के बदले सिर्फ दो रोटी ही तो खाती हो,
उसपर भी कोई कहे की ” सारा दिन क्या किया” तो तुम बिना कुछ कहे सब सुन लेती हो,
लेकिन पगली तुम भूल गई हो शायद कि,
सब करने के बाद भी तुम, इस पुरुष प्रधान समाज में आज भी सिर्फ एक उपभोग की वस्तु हो।।
सुबह उठ कर पांच बजे तुम रात ग्यारह बजे तक लगी रहती हो,
अपने परिवार के आस पास अपनी पूरी दुनिया बसा लेती हो,
तुम्हारी भी एक ज़िन्दगी है, हर बार ना जाने तुम ये कैसे भूल जाती हो,
सबकी खुशी की खातिर तुम अपना सर्वस्व दांव पर लगा देती हो
लेकिन पगली तुम भूल गई हो शायद कि,
सब करने के बाद भी तुम, इस पुरुष प्रधान समाज में आज भी सिर्फ एक उपभोग की वस्तु हो।
अपने अंदर भावनाओं को ज़िंदा रखने के लिए तुम रोज खुद को झूठी तसल्ली भी देती हो,
उन सड़े गले रिश्तों के बिना तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं तुम ये मान कर बैठी हो,
उड़ सकती हो खुले आसमान में, तो क्यों तुम खुली हवाओं से कतराती हो,
एक दिन वो दिया खुद के लिए भी रोशन करो, जो रोज तुम दूसरों के अंधेरे मिटाने के लिए जलाती हो।।
लेकिन पगली तुम भूल गई हो शायद कि,
सब करने के बाद भी तुम, इस पुरुष प्रधान समाज में आज भी सिर्फ एक उपभोग की वस्तु हो।
लगाकर मेंहदी हाथों में उसपर तुम लाल चूड़ा सजाती हो,
किसी की लंबी उम्र के लिए तुम करवाचौथ भी रखती हो,
बड़ी बिंदी पसंद ना हो उसे, तो उसके लिए तुम छोटी लगाती हो,
लेकिन मौका मिले तो उससे भी पूछ लो कभी कि उसकी ज़िन्दगी में तुम क्या अहमियत रखती हो।।
मानो मेरी बात कुछ अपने लिए भी करो खास,
क्योंकि तुम भूल गई हो शायद कि,
सब करने के बाद भी तुम, इस पुरुष प्रधान समाज में आज भी सिर्फ एक उपभोग की वस्तु हो।।

फोटो सौजन्य- गूगल

अमीरी का दिखावा

समाज में बहुत से लोग होते हैं जिनसे मिलकर आपको लगेगा कि वो बहुत ज्यादा जिद्दी है  या बहुत ज्यादा गुस्से वाले है… या कभी-कभी हम उन्हें घमंडी भी समझ लेते है लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि हम कभी-कभी लोगों को बहुत ज्यादा जल्दी जज कर लेते हैं… और ये मान लेते है कि हमें उनसे कोई वास्ता नहीं रखना चाहिए।

लेकिन कई बार वो नहीं बल्कि उनके बारे में हम गलत होते है। दरअसल हमें सब को एक जैसा देखने की आदत हो गई है इसलिए हम उन अलग से लोगों को पचा नहीं पाते। क्योंकि वो लोग हमारी दिखावे की दुनिया का हिस्सा नहीं होते, झूठ से उन्हें नफरत होती है, धोखा से वो कोसों दूर होते है, और अपने फायदे के लिए उन्हें किसी को नीचा दिखाना नहीं आता… हां थोड़े सडू हो सकते है… गुस्सा भी नाक पर हो ये भी हो सकता है.. लेकिन दोस्तों मेरे हिसाब से ऐसे इंसान हमारे समाज के लिए ज्यादा अच्छे है…क्योंकि इन्हें अपने फायदे के लिए गिरगिट बनना नहीं आता…. लेकिन आज समाज में इस तरह के लोग बहुत ज्यादा अकेलापन और पिछड़ा हुआ महसूस करते हैं।

क्योंकि आज कल के दिखावे से ये लोग कोसो दूर होते हैं और समाज में आज वही अपना पैर जमा लेता है जो दिखावे से भरा हुआ है। आज कल लोगों को सच सुनने की आदत नहीं रही लेकिन ये लोग तो सिर्फ और सिर्फ सच बोलते है। आज कल लोगों को अपनी निंदा सुनने की आदत नहीं रही  लेकिन ये लोग तो जो बोलना होता है वो मुंह पर बोल देते है। आज कल लोगों को झूठी तारीफों से बड़ा मोह है, लेकिन ये लोग ऐसा कर पाने में असमर्थ होते हैं।

अमीरी का दिखावा

सबसे बड़ी परेशानी इनको यही होती है कि आजकल का समाज इनको स्वीकार नहीं पाता और न ये इस दिखावे वाले और दोगले समाज का हिस्सा बनना चाहते है। इसलिए कभी कभी ये लोग ऐसी स्थिति का सामना करते है जब ये अपने आपको दुनिया से बिल्कुल कटा हुआ महसूस करते है। बाकी आप इन पंक्तियों से भी समझ सकते है जो किसी ऐसे ही इंसान पर लिखी गई हैं-

भर जाती हूं आत्मग्लानि से,

जब कभी सोचती हूं कि मैं पिछड़ गई हूं,

हर उस इंसान से जो दिखावा करता है,

मन दुखी हो जाता है, जब कभी मैं उस दिखावे का हिस्सा नहीं बन पाती,

लोगों की तरह बाहर कुछ और अंदर कुछ नहीं हो पाती।

भर जाती हूं आत्मग्लानि से,

जब कभी ये पाती हूं कि अकेली रह गई हूं,

दूर हो गई हूं हर उस इंसान से जो धोखा करता है,

बहुत परेशान हो जाती हूं, जब किसी को धोखे मे नहीं रख पाती,

हां, जब लोगों की तरह किसी की पीठ में छुरा नहीं घोंप पाती।।

 

भर जाती हूं आत्मग्लानि से,

जब कभी सोचती हूं की मैं कितनी गरीब हो गई हूं,

लोगो को देखा है पैसे के लिए कुछ भी करते हुए,

मन उदास हो जाता है जब कभी मैं इस मुहिम का हिस्सा नहीं बन पाती,

हां, मैं पैसों के लिए किसी के तलवे नहीं चाट पाती।।

 

भर जाती हूं आत्मग्लानि से,

जब कभी सोचती हूं कि दुनिया से बहुत अलग रह गई हूं,

हर उस इंसान से अलग जो किसी को नीचा दिखाना चाहता है,

मन बैचेन हो जाता है, जब मैं किसी को नीचा नहीं दिखा पाती,

हां, दुनिया की इन उम्मीदों पर मैं खरा नहीं उतर पाती।।

 

हां बहुत जिद्दी हूं, हर किसी की हां में हां नहीं मिला पाती,

दिमाग़ है मेरे पास इसलिए किसी और के हिसाब से नहीं चल पाती,

मुझे गलत के लिए बोलना आता है,

इसलिए आखें बंद किए चैन से बैठ नहीं पाती।।

 

मेरे लिए वो हर इंसान गलत है जो गलत को बढ़ावा दे,

लेकिन मैं गलत के खिलाफ बोले बिना रह नहीं पाती,

इसलिए बहुत कम लोग है मेरी जिंदगी में जो पसंद करते है मुझे,

बाकियों के लिए तो बहुत बुरी हूं मैं क्योंकि झूठ, धोखा, दिखावा, फरेब मैं पचा नहीं पाती।

फोटो सौजन्य- गूगल