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Tag Archives: Health

Super Food

Immunity: जब मौसम सर्दियों का हो तो कभी जुकाम तो कभी स्किन प्रॉब्लम का खतरा बढ़ जाता है। अलावा इसके बुजुर्गों को जोड़ों में दर्द और हृदय में जकड़न के जोखिम को भी बढ़ा देती है। ऐसे में शरीर को हेल्दी रखने के लिए खानपान का ख्याल रखना जरूरी है। अगर आप भी मौसमी बीमारियों के कुप्रभावों से बचना चाहती हैं तो कुछ ऐसे सुपरफूड्स को आहार में जरूर शामिल करें जिससे शरीर में रोग से लड़ने की क्षमता को बढ़ाया जा सके। आइये जानते हैं कुछ खास सुपरफूड्स काम्बो के बारे में जिन्हें आहार में शामिल करके इम्यून सिस्टम को मजबूत करने में मदद मिलती है-

ज्यादातर आहार में फ्लेवर एड करने के लिए कई तरह के मसाले और टेस्ट मेकर्स को रेासपी में मिलाया जाता है जिससे कि आहार की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सके। मगर इसमें पोषण को बढ़ाने के लिए सुपरफूड्स को जोड़ने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगती है। इन सप्लीमेंट्स को मसालों, पत्तियों या फूड्स के तौर पर एड किया जा सकता है। इससे बॉडी को एंटीऑक्सीडेंटस और एंटी बैक्टीरियल प्रॉपर्टीज़ की प्राप्ति होती है।

डायटीशियन बताती हैं कि इम्यून सिस्टम बूस्ट करने के लिए पौष्टिक आहार के सेवन से पहले गट हेल्थ को मज़बूत रखना जरूरी है। इसे शरीर में हेल्दी बैक्टीरिया की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे मेटाबॉलिज्म बूस्ट होता है। शरीर की हेल्दी फंक्शनिंग की मदद से शरीर के वज़न को संतुलित रखा जा सकता है और एनर्जी का स्तर उचित बना रहता है।

इन सुपरफूड्स को मिलाकर इम्यून सिस्टम को करें मजबूत

1. दही और पालक

Super Food with Curd

दही के सेवन से जहां प्रोबायोटिक्ट की मात्रा प्राप्त होती है, तो वहीं पालक में मौजूद बीटा कैरोटीन और फाइटोन्यूट्रिएंट्स की मात्रा शरीर को फ्री रेडिकल्स के खतरे से बचाने में मदद करते है। विटामिन डी के मुख्य स्रोत दही को ब्लैंड करके उसमें कटी हुई पालक को डालकर खाने से न केवल गट हेल्थ मज़बूत होती है बल्कि आयरन और फोलेट की प्राप्ति होती है।

अलावा इसके पोषक तत्वों का एबजॉर्बशन भी बढ़ने लगता है। USDA के अनुसार आहार में 01 कप दही को शामिल करने से 28 फीसदी फासफोरस, 10 फीसदी मैग्नीशियम और 12 फीसदी पोटेशियम की प्राप्ति होती है। इसकी मदद से रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।

2. हल्दी और काली मिर्च

Turmeric Powder with Daal

हल्दी में एंटी इंफ्लामेटरी गुण पाए जाते हैं। इसमें मौजूद एक्टिव कंपाउड संक्रमण के प्रभाव को कम करने में मदद करते है। इसके अलावा हल्दी मे पाई जाने वाली करक्यूमिन की मात्रा इंफ्लामेशन को कम करके हेल्दी ब्लड वेसल्स की फंक्शनिंग में मदद करती है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंटस की मात्रा अलसरेटिव कोलाइटिस से राहत दिलाती है।

किसी भी रेसिपी में हल्दी के साथ काली मिर्च को मिलाकर खाने से शरीर को पिपरिन की प्राप्ति होती है, जिससे पोषक तत्वों का एबजॉर्बशन बढ़ने लगता है। खिचड़ी को तैयार करने के दौरान हल्दी के साथ काली मिर्च को मिलाकर खाने से शरीर को फायदा मिलता है।

3. टमाटर में मिलाएं अदरक

आहार में टेस्ट का तड़का जोड़ने के लिए अदरक का इस्तेमाल किया जाता है। इसके सेवन से शरीर में खांसी जुकाम का खतरा कम होने लगता है और पाचनतंत्र मज़बूत बनता है इसके सेवन से शरीर में व्हाइट ब्लड सेल्स की मात्रा बढ़ती है, जिससे इम्यून सिस्टम को बूस्ट किया जा सकता है। वहीं टमाटर में मौजूद लाइकोपिन कंपाउड से शरीर में हृदय रोगों और कैंसर के चातरे को कम किया जा सकता है। लाइकोपिन फैट सॉल्यूबल है, जिससे इसके एबजॉर्बशन में मदद मिलती है। टमाटर के सूप में अदरक के पेस्ट को एड करके सेवन करने से शरीर को पोषण की प्राप्ति होती है।

4. आंवला में शहद मिलाकर खाएं

मेडिसिनल प्रॉपर्टीज़ से भरपूर आंवला में विटामिन सी की उच्च मात्रा पाई जाती है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंटस मौसमी संक्रमण के प्रभाव को कम करके शरीर को विटामिन और मिनरल प्रदान करते हैं। इसमें पाई जाने वाली एंटी बैक्टीरियल प्रॉपर्टीज़ से बैक्टीरिया और पायरस के प्रभाव को कम किया जा सकता है। वही शहद को आंवला में मिलाकर खाने से डाइजेस्टिव सिस्टम बूस्ट होता है और विटामिन सी की प्राप्ति से एजिंग का प्रभाव कम होने लगता है। कटे हुए आंवला में शहद मिलाकर स्टोर कर लें। रोज़ाना एक चम्मच इस का सेवन करने से शरीर में मौजूद विषैले पदार्थों को डिटॉक्स करने में मदद मिलती है, जिससे वेटलॉस में भी मदद मिलती है।

5. शकरकंदी और एवोकाडो

बीटा कैरोअीन से भरपूर शकरकंदी अक्सर सर्दियों में खाया जाने वाला सुपरफूड है। इससे आहार में स्वाद के साथ पोषण को जोड़ा जा सकता है। इसके सेवन से शरीर को विटामिन ए की प्राप्ति होती है। वहीं इसमें एवोकाडो को मिलाने से शरीर में फैटी एसिड की कमी को पूरा किया जा सकता है। इन दोनों को मिलाकर खाने से इम्यून सिस्टम को बूस्ट किया जा सकता है ।

6. पपीते में काली मिर्च को करें एड

विटमिन A और C से भरपूर पपीते का सेवन करने से डज्ञइजेशन समेत ओवरऑल हेल्थ को फायदा मिलता है। अलावा इसके फाइबर की उच्च मात्रा मेआबॉलिज्म को भी बूस्ट करने में मदद करता है। इसमें काली मिर्च को जोड़कर खाने से व्हाइट ब्लड सेल्स की मात्रा बढ़ने लगती है, जिससे शरीर में बैक्टीरिया और वायरस का प्रभाव कम होने लगता है।

फोटो सौजन्य- गूगल

Breastfeeding

Breast Feeding को लेकर कुछ जरूरी बातें हमें मालूम नहीं होती, जिससे मां और शिशु दोनों को नुकसान होता है। मां का दूध बच्चे के लिए न्यूट्रीशन से भरा वो आहार है जो उसकी समूचे ग्रोथ में मददगार साबित होता है। ब्रेस्टफीडिंग मां और बच्चे दोनों की सेहत के लिए फायदेमंद है। वैसे तो शिशु के लिए पैदा होने के 06 माह तक ब्रेस्टफीडिंग की सलाह दी जाती है लेकिन कई बार गलत तरीके से फीडिंग मां को तो थका देती ही है साथ-साथ बच्चे को भी कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं।

ब्रेस्टफीडिंग के वक्त कुछ बातों का अमल करना जरूरी है ताकि मां और बच्चे का स्वास्थ्य बिल्कुल सही रहे। आइये जानते हैं ब्रेस्टफीडिंग के दौरान मां को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए-

ब्रेस्टफीडिंग क्यों है ज़रूरी-

breastfeeding

इस बारे में विशेषज्ञ की राय हैं कि ब्रेस्टफीडिंग मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए अहम है। मां के दूध से नवजात शिशु को सभी जरूरी पोषण मिल जाते हैं, जिससे बच्चे की ग्रोथ में मदद मिलती है। अलावा इसके शिशु को पर्याप्त ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा भी कम हो जाता है। पर ब्रेस्टफीडिंग के दौरान कुछ खास बातों का ख्याल रखना भी आवश्यक है।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक ब्रेस्ट मिल्क में इम्युनोग्लोबुलिन या एंटीबॉडी पाई जाती हैं। इससे मिलने वाला प्रोटीन बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करते हैं। अलावा इसके बच्चों में टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज़ का जोखिम भी कम हो जाता है। वहीं, ब्रेस्टफीडिंग करवाने से ब्रेस्ट और ओवरी कैंसर का खतरा भी कम हो जाता है।

ब्रेस्टफीडिंग कराते समय इन बातों का रखें ध्यान

1. बच्चे की जरूरत का रखें ध्यान

 

Breast feeding

बच्चे को जब भी भूख लगे उसे स्तनपान करवाएं। अपनी तरफ से समय निर्धारित करने का प्रयास न करें। बार-बार स्तनपान कराने से दूध पर्याप्त मात्रा में बनता है और बच्चे को पूरा पोषण मिल पाता है। साथ ही किसी तरह के ब्लॉकेज या थक्का बनने का खतरा भी नहीं रहता। अगर वर्किंग मॉम हैं, तो ब्रेस्ट पंपिंग के जरिये दूध निकालकर भी बच्चे को पिलाया जा सकता है। बच्चा जब बड़ा होने लगे, तब अचानक स्तनपान बंद न करें। फीडिंग धीरे-धीरे छुड़ाने से आपके शरीर को ढलने का समय मिल जाता है और किसी तरह की परेशानी नहीं होती है।

2. क्लीनिंग पर ध्यान देना जरूरी

फीडिंग के समय हाइजीन का ख्याल रखना सबसे महत्वपूर्ण है। ब्रेस्ट फीडिंग के दौरान रोज नहाना, कपड़ों की साफ सफाई और नियमित रूप से कपड़े बदलना जरूरी है। ब्रेस्ट फीडिंग के लिए कपड़े ढीले पहनें और उनकी बनावट ऐसी हो, जिससे बच्चे को आसानी से स्तनपान कराया जा सके। स्तनों पर बार-बार हाथ लगाने से बचें। हाथ लगाने से संक्रमण का खतरा रहता है। अगर स्तनों की सफाई के लिए वाइप्स का इस्तेमाल करती हैं, तो ध्यान रहे कि वाइप्स में किसी तरह के रसायन का प्रयोग न हुआ हो।

3. सही पोश्चर में कराएं ब्रेस्टफीडिंग

breastfeeding

कुछ महिलाएं जब बच्चा लेटा हुआ होता है, तभी स्तनपान करवाने लगती हैं। ये पोश्चर बच्चे के लिए सही नहीं है। प्रयास करें कि बच्चे को करवट कराते हुए या गोद में लेकर सही तरह से उसे अपने स्तनों के पास लाएं। इससे मां और बच्चे दोनों का पोश्चर सही रहता है। जिससे कई तरह की शारीरिक परेशानियों से बचा जा सकता है। बच्चे को बारी-बारी से दोनों स्तनों से स्तनपान कराएं।

4. स्वयं को हाइड्रेटेड रखें

वॉटर इनटेक का ध्यान ब्रेस्टफीडिंग के दौरान रखना आवश्यक है। इससे शरीर हाइड्रेट रहता है और दूध न आने की समस्या हल हो जाती है। स्तनपान के दौरान पानी, जूस, शेक्स, हेल्दी सूप और अन्य तरल पदार्थों का सेवन करे। इससे शरीर में मिनरल्स की कमी पूरी हो जाती है। अलावा इसके शरीर एक्टिव और हेल्दी रहता है।

5. अपने खानपान का रखें ख्याल

हेल्दी और संतुलित आहार करना हमेशा जरूरी होता है। विशेषरूप से स्तनपान के समय यह और भी आवश्यक हो जाता है, क्योंकि मां से ही बच्चे को पोषण मिलता है। खानपान पर ध्यान देते हुए यह समझें कि अगर आपके कुछ खाने से बच्चे को परेशानी होती है, तो ऐसी चीजों से दूर रहें। बहुत भारी और मुश्किल से पचने वाले आहार की तुलना में सुपाच्य आहार ग्रहण करना सही रहता है। पानी भी पर्याप्त मात्रा में पीना चाहिए।

फोटो सौजन्य – गूगल

This is why people who take vegan diet have less risk of cancer

VEGAN DIET: आज कई लोग जैसे कि स्पोर्ट्स पर्सन, एथलीट और सेलिब्रिटी हैं जो वीगन डाइट यानी प्लांट बेस्ड डाइट लेटे हैं। वहीं, प्लांट बेस्ड डाइट के मद्देनजर कई स्टडी किए गए जिसमें सामने आया है कि यह एक व्यक्ति के उम्र को बढ़ा देता है। क्या वाकई ऐसा मुमकिन है? क्या प्लांट बेस्ड डाइट एनिमल बेस्ड डाइट से ज्यादासुरक्षित है? आज यहां आपके सभी प्रश्नों के जवाब लेकर आए हैं। तो आइये जानते हैं, प्लांट बेस्ड डाइट और लांगेविटी को लेकर क्या कहती है स्टडी।

जानें प्लांट बेस्ड डाइट और लोंगेविटी को लेकर क्या कहती है स्टडी-

साल 2020 में दो अध्ययन किए गए और उसमें पाया गया कि प्लांट बेस्ड डाइट लेने से किसी भी इंसान की उम्र ज्यादा लंबी हो सकती है। हार्वर्ड और तेहरान विश्व विद्यालयों के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक स्टडी में पाया गया कि जिन लोगों ने प्लांट बेस्ड डायट से अपने प्रोटीन की जरूरतों को पूरा किया है, उसमें वक्त से पहले मौत का जोखिम 05 फीसदी कम होता है।

JAMA इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि रेड मीट और अंडे की जगह प्लांट बेस्ड प्रोटीन का सेवन करने वाले पुरुषों में समय से पहले मौत का जोखिम 24 फीसदी और महिलाओं में 21 फीसदी तक कम होता है।

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन द्वारा प्रकाशित अध्ययन के अनुसार प्लांट बेस्ड डाइट एंटीऑक्सीडेंट का एक बेहतरीन स्रोत है, जो आपकी बॉडी सेल्स को फ्री रेडिकल्स के प्रभाव से बचाता है और बॉडी इन्फ्लेमेशन को कम कर देता है। अलावा इसके इसमें फाइटोकेमिकल्स पाए जाते हैं, जिन में एंटी इन्फ्लेमेटरी और एंटी कैंसर प्रॉपर्टीज होती हैं और यह शरीर को इस तरह की बीमारियों से बचाते हैं।

जानें प्लांट बेस्ड डाइट के फायदे

This is why people who take vegan diet have less risk of cancer

मणिपाल हास्पिटल, गाज़ियाबाद में हेड ऑफ न्यूट्रीशन और डाइटेटिक्स डॉ अदिति शर्मा ने वेगन डायट यानी कि प्लांट बेस्ड डाइट फॉलो करने के कुछ महत्वपूर्ण फायदे बताएं हैं। डॉक्टर के अनुसार यह खुद को स्वस्थ एवं सुरक्षित रखने का एक अच्छा तरीका है।

1. वेट लॉस में होती है मदद

This is why people who take vegan diet have less risk of cancer

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार वीगन डाइट में कम फैट और अधिक फाइबर होता है। नट्स, पालक, केला आदि जैसे फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ खाने से आपको संतुष्टि प्राप्त होती है और आप कम खाती हैं।

2. ब्लड शुगर करता है कंट्रोल

विगन डाइट आपको ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। प्लांट बेस्ड डायट में अधिक साबुत अनाज, ताजी सब्जियां और अन्य खाद्य पदार्थ होते हैं, जो ग्लाइसेमिक इंडेक्स में कम रैंक करते हैं। इस प्रकार यह ग्लूकोज के स्तर को सामान्य रखने में आपकी मदद करता है। प्लांट बेस्ड डायट में सैचुरेटेड फैट भी कम होता है, जो इसे टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए आदर्श बनाता है।

3. CANCER के खतरे को करें कम

This is why people who take vegan diet have less risk of cancer

मोटापा, गतिहीन जीवनशैली आदि जैसे कई जीवनशैली कारक किसी व्यक्ति को कुछ प्रकार के कैंसर, विशेष रूप से पेट, लिवर, पेनक्रियाज, पित्ताशय आदि के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकते हैं। अधिक फलियां और क्रूसिफेरस सब्जियां खाने और रेड मांस जैसे रिफाइंड खाद्य पदार्थों का सेवन कम करने से कैंसर होने का खतरा काफी हद तक कम हो सकता है।

4. मेटाबॉलिज्म को बनाए बेहतर

प्लांट बेस्ड डाइट हमारे आंत में बैक्टीरिया/माइक्रोबायोम को बढ़ावा देता है। इस प्रकार हेल्दी बैक्टीरिया बेहतर पाचन में मदद करते हैं, साथ ही साथ मेटाबॉलिज्म भी बेहतर होता है। इससे पाचन संबंधी समस्याओं का खतरा कम हो जाता है। साथ ही साथ वेट मैनेजमेंट में भी मदन मिलती है।

5.हेल्दी हृदय को बढ़ावा दें

बता दें कि यह डाइट कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और साथ ही ब्लड शुगर और पुरानी सूजन को भी कम करता है, इसलिए यह हृदय स्वास्थ्य की रक्षा के लिए भी बहुत अच्छा है। बढ़ता कोलेस्ट्रॉल और क्रोनिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस दो ऐसे वजह हैं, जो अक्सर हार्ट अटैक का कारण बनते हैं।

फोटो सौजन्य- गूगल

If the liver is happy then your health will also smile

Healthy LIVER: अगर हम अपने पूरे हेल्थ के बारे में सोचते हैं तो हम हमेशा आहार, व्यायाम और टेंशन प्रबंधन जैसे कारकों पर ध्यान फोकस करते हैं। बता दें कि ये एक हेल्दी लाइफ के जरूरी घटक हैं पर एक अंग है जिसे अक्सर स्वास्थ्य की चर्चाओं में अनदेखा कर दिया जाता है और वो है लिवर। आपका लिवर आपके आपके शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है लेकिन बहुत से लोग इससे अनजान हैं कि इसका आपके मेंटल हेल्थ पर भी अहम प्रभाव पड़ता है। हम लिवर हेल्थ और मेंटल हेल्थ के बीच संबंध का पता लगाएंगे और जानने की कोशिश करेंगे कि दोनों हेल्दी रखना क्यों आवश्यक है।

लिवर शरीर का सबसे खास अंग है और इसके कई कार्य हैं, जिसमें डिटॉक्सिफिकेशन, मेटाबॉलिज्म और पोषक तत्वों का स्टोरेज शामिल है। लिवर का स्वास्थ्य जिस तरह मेंटल हेल्थ को प्रभावित करता है, उसी तरह मानसिक स्वास्थ्य लिवर के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है।

जानें सेहत के लिए कितना महत्वपूर्ण है लिवर-

If the liver is happy then your health will also smile

1. डिटॉक्सिफिकेशन में मदद करता है

लिवर दवाओं, शराब और पर्यावरण खराब पदार्थों को चयापचय करके हानिकारक पदार्थों को डिटॉक्सिफाई करता है। यह इन पदार्थों को कम हानिकारक रूपों में परिवर्तित करता है या उन्हें बाहर करने के लिए तैयार करता है।

2. पोषक तत्वों का स्टोरेज

लिवर विटामिन और खनिजों को जमा करता है, जिसमें विटामिन ए, डी, ई, के, और बी-12, साथ ही आयरन और कॉपर शामिल हैं। इन जमा किए गए पोषक तत्वों को आवश्यकतानुसार रक्तप्रवाह में छोड़ा जाता है।

3. रक्त का थक्का जमना

लिवर रक्त के थक्के जमने के लिए आवश्यक अधिकांश प्रोटीन का उत्पादन करता है। इन प्रोटीनों के बिना, शरीर प्रभावी रूप से खून के बहने को रोकने में सक्षम नहीं होगा।

4. पित्त का उत्पादन करता है

लिवर द्वारा उत्पादित पित्त पित्ताशय में संग्रहीत होता है और फैट्स और फैट्स में घुलनशील विटामिन के पाचन और अवशोषण में सहायता के लिए छोटी आंत में छोड़ा जाता है।

लिवर हेल्थ और मेंटल हेल्थ में संबंध

If the liver is happy then your health will also smile

1 जहरीले पदार्थों को बाहर निकालना

लिवर का प्राथमिक कार्य डिटॉक्सिफिकेशन है, रक्त से जहरीले पदार्थों को निकालना। जब लिवर ठीक से काम नहीं कर रहा होता है तो मस्तिष्क सहित शरीर में विषाक्त पदार्थ जमा हो सकते हैं। इससे कंफ्यूजन, याद रखने में समस्याएं और यहां तक ​​कि मूड स्विंग या अवसाद जैसे दिमान से संबंधित लक्षण दिखाई दे सकते है।

2 पोषक तत्वों का ठीक से अवशोषण

लिवर ग्लूकोज, प्रोटीन और फैट्स सहित मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण पोषक तत्वों के मेटाबॉलिज्म में अहम भूमिका निभाता है। खराब लिवर कार्य इन पोषक तत्वों में असंतुलन या कमी का कारण बन सकता है, जो मस्तिष्क के कार्य और मूड को प्रभावित कर सकता है।

3 अमोनिया और हेपेटिक एन्सेफैलोपैथी

प्रोटीन मेटाबॉलिज्म के उप-उत्पादों में से एक अमोनिया है, जिसे लिवर सुरक्षित बाहर करने के लिए यूरिया में परिवर्तित करता है। अगर लिवर खराब है या ठीक से काम नही कर रहा है, तो रक्त में अमोनिया का स्तर बढ़ सकता है, जिससे लिवर एन्सेफैलोपैथी हो सकती है। यह स्थिति सोचने समझने को कमजोर, व्यक्तित्व परिवर्तन और गंभीर तरह से मूड को प्रभावित कर सकती है।

4 हार्मोनल असंतुलन

लिवर हार्मोन के मेटाबॉलिज्म में शामिल होता है। लिवर की समस्या इस प्रक्रिया को बाधित कर सकता है, जिससे हार्मोनल असंतुलन हो सकता है जो मूड और संज्ञानात्मक कार्य को प्रभावित कर सकता है।

5 नींद पर पड़ता है असर

लिवर खराब होने की स्थिति में मेटाबॉलिज्म संबंधी गड़बड़ी और खराब पदार्थों के निर्माण के कारण नींद की गुणवत्ता और पैटर्न को प्रभावित कर सकता है। खराब नींद अवसाद और चिंता जैसे मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों को बढ़ा सकती है।

फोटो सौजन्य- गूगल

Red wine is beneficial for skin and hair

Red Wine: एक थकाऊ और लंबे दिन के बाद एक पेग वाइन लेना ये कुछ लोगों के लिए टेंशन दूर करने का तरीका हो सकता है। वैसे तो किसी भी तरह से अल्कोहल का सेवन हेल्थ के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। लेकिन कई स्टडी में यह बात सामने आई है कि थोड़ी मात्रा में वाइन पीना आपके हेल्थ के लिए अच्छा हो सकता है। ज्यादातर स्टडी में इसे हार्ट हेल्थ, वेट मैनेजमेंट और स्किन के लिए फायदेमंद कहा जाता है।

रेड वाइन त्वचा और बालों के देखभाल में अपने कई लाभों के लिए भी जानी जाती है। अंगूर से हासिल रेड वाइन एंटी ऑक्सिडेंट, विटामिन और अन्य पदार्थों से भरपूर होती है। जो इसके चिकित्सीय गुणों में योगदान करते हैं। आइये जानते हैं कि हेयर और स्किन केयर में रेड वाइन आपके लिए कैसे पायदेमंद हो सकती है और इसके इस्तेमाल का सही तरीका क्या है?

ये 4 कारण बनाते हैं रेड वाइन लाभदायक-

Red wine is beneficial for skin and hair

1. एंटी-एजिंग गुण

रेड वाइन में फ्लेवोनोइड्स, रेस्वेराट्रोल और टैनिन जैसे एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं, जो उम्र बढ़ने की प्रक्रिया में प्रमुख योगदान देने वाले फ्री रेडिकल्स और ऑक्सीडेटिव तनाव से लड़ने में मदद करते हैं। ये एंटीऑक्सीडेंट फाइन लाइन और झुर्रियों को कम कर सकते हैं, जिससे त्वचा जवां दिखती है। रेस्वेराट्रोल, विशेष रूप से, कोलेजन उत्पादन को उत्तेजित करने के लिए दिखाया गया है, जो त्वचा की लोच और मजबूत बनाए रखने के लिए जरूरी है।

2. त्वचा की बनावट और निखार

रेड वाइन में प्राकृतिक अल्फा-हाइड्रॉक्सी एसिड होते हैं, जो त्वचा को धीरे-धीरे एक्सफोलिएट करते हैं, मृत त्वचा कोशिकाओं को हटाते हैं और सेल टर्नओवर को बढ़ावा देते हैं। इससे त्वचा चिकनी और अधिक चमकदार हो सकती है। रेड वाइन में मौजूद पॉलीफेनॉल त्वचा को चमकाने और त्वचा की रंगत को एक समान करने में मदद कर सकते हैं, जिससे काले धब्बे और पीगमेंटेशन कम हो जाती है।

3. एक्ने को ठीक करती है

रेड वाइन में प्राकृतिक एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो मुहांसे पैदा करने वाले बैक्टीरिया से लड़ने में मदद कर सकते हैं। इसे स्किन के ऊपर लगाने से सूजन कम हो सकती है और मुहांसे नहीं होंगे। रेड वाइन में मौजूद रेस्वेराट्रोल तेल उत्पादन को नियंत्रित करने में भी मदद कर सकता है, जिससे त्वचा कम तैलीय और अधिक संतुलित रहती है।

4. हाइड्रेशन और पोषण देने में मददगार

रेड वाइन में विटामिन और खनिज होते हैं जो स्किन को पोषण देते हैं, इसे हाइड्रेटेड और हेल्दी रखते हैं। यह विशेष रूप से ड्राई या संवेदनशील त्वचा के लिए फायदेमंद हो सकता है।

रेड वाइन के जरिए बालों को मिलने वाले ये 3 फायदे

Red wine is beneficial for skin and hair

हेयर ग्रोथ में मददगार

रेड वाइन से मालिश करने पर स्कैल्प में रक्त संचार में सुधार होता है, जो बबालों को बढ़ाने में मदद करता है और बालों के रोम को मजबूत करता है। रेड वाइन में विटामिन और खनिज आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं जो बालों को हेल्दी तरीके से बढ़ने में मदद करता है और झड़ने को रोकते हैं।

चमकदार और सिल्की बाल

रेड वाइन में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट बालों को नुकसान पहुंचाने वाले मुक्त कणों से लड़ने में मदद करते हैं, जिससे बाल चमकदार और चिकने होते हैं। फ्लेवोनोइड्स और रेस्वेराट्रोल बालों की बनावट को भी बेहतर बना सकते हैं, जिससे बाल अधिक मैनेजेबल हो जाते हैं। रेड वाइन एक प्राकृतिक कंडीशनर के रूप में काम करता है, जो बालों को नमी प्रदान करती है।

डैंड्रफ़ दूर करती है रेड वाइन 

रेड वाइन के एंटीफंगल गुण डैंड्रफ़ और स्कैल्प की अन्य स्थितियों का इलाज करने में मदद कर सकते हैं। नियमित रूप से लगाने से स्कैल्प का स्वस्थ वातावरण बना रहता है, जिससे पपड़ी और खुजली की समस्या नहीं होती। रेस्वेराट्रोल के सूजनरोधी गुण सिर की जलन को शांत कर सकते हैं और सेबोरहाइक डर्माटाइटिस जैसी स्थितियों से राहत प्रदान कर सकते हैं।

स्किन और हेयर केयर के लिए रेड वाइन का इस्तेमाल ऐसे करें-

1. फेस मास्क-

रेड वाइन को दही, शहद या ओटमील जैसी सामग्री के साथ मिलाकर हाइड्रेटिंग और एक्सफोलिएटिंग फेशियल मास्क बनाएं। साफ त्वचा पर लगाएं और कुछ देर रखने के बाद इसे धो कर साफ कर ले।

2. बालों को धोएं-

शैम्पू करने के बाद, बालों को चमक और कोमलता देने के लिए रेड वाइन से धोएं। ठंडे पानी से धोने से पहले इसे कुछ मिनट के लिए लगा रहने दें।

3. टोनर-

एक कॉटन पैड को भिगोकर और चेहरे को साफ करने के बाद इसे अपने चेहरे पर लगाकर टोनर के रूप में रेड वाइन का उपयोग करें। यह रोमछिद्रों को कसने और त्वचा को चमकदार बनाने में मदद कर सकता है।

4. स्कैल्प मसाज-

रेड वाइन को नारियल या जैतून के तेल जैसे कैरियर ऑयल के साथ मिलाएं और अपने स्कैल्प पर मसाज करें। अपने नियमित शैम्पू से धोने से पहले इसे 30 मिनट के लिए लगा रहने दें।

If laziness has made a home in your fitness journey then don't panic

Electronic Gadget का इस्तेमाल और देर रात तक जगे रहने से सुबह उठना काफी मुश्किल हो जाता है। नींद की कमी आलस की मुख्य वजह होती है जिसका कुप्रभाव वर्कआउट रूटीन पर भी पड़ता है। ऐसे में ज्यादातर लोग वर्कआउट रूटीन को स्किप करने लगते हैं जिसका निगेटिव असर उनके स्वास्थ्य पर भी दिखने लगता है। ऐसे में बॉडी को हेल्दी और एक्टिव बनाए रखने के लिए वर्कआउट से पहले महसूस होने वाले आलस्य को दूर करना जरूरी है।

If laziness has made a home in your fitness journey then don't panic

इसे लेकर एक्सपर्ट का कहना है कि नियमित रूप से वर्कआउट में शामिल ना होना आलस्य को काफी बढ़ावा देता है। इसके कारण वर्कआउट रूटीन को नियमित बनाए रखने नामुमकिन लगने लगता है। इससे बचने के लिए सुबह उठते ही गैजेट्स के इस्तेमाल से बचें और बेड पर ही लेग स्ट्रेचिंग योगाभ्यास करें। इससे आलस्य को दूर भगाने में मदद मिलती है। अलावा इसके दूसरे दोस्तों के साथ एक्सरसाइज करने से कॉम्पीटिशन की भावना बढ़ने लगती है।

इन टिप्स की मदद से सुस्ती को दूर किया जा सकता है

1. फिटनेस गोल्स करें सेट

वर्कआउट रूटीन को कामयाब बनाने के लिए सबसे पहले गोल्स को सेट करना बहुत ज़रूरी है। इससे व्यायाम से पहले बढ़ने वाला आलस्य और नींद की समस्या को दूर करने में मदद मिलती है। इसके लिए स्वयं वर्कआउट चैलेंज तय करें और उसे पूरा करने के लिए खुद को प्रोत्साहित करते रहें। समय-समय पर गोल्स सेट करते हैं और उन्हें अचीव करते हुए आगे बढ़ें।

2. आसान एक्सरसाइज़ से करें शुरुआत

If laziness has made a home in your fitness journey then don't panic

वेट लिफ्टिंग और हाई इंटैसिटी एक्सरसाइज़ शुरूआत में थकान का कारण बनने लगते है। इससे शारीरिक तनाव की समस्या बढ़ने लगती है। लेकिन तन और मन दोनों के लिए ही फायदेमंद साबित होती है। ऐसे में व्यायाम को नियमित बनाए रखने के लिए आसान एक्सरसाइज़ को अपने रूटीन का हिस्सा बनाएं और फिर धीरे धीरे उसें बदलाव लेकर आएं। इससे शरीर को न केवल थकान से बचने में मदद मिलती है बल्कि बॉडी फिश्र रहती है।

3. स्ट्रेचिंग से होगा आलस्य दूर

सुबह उठने के बाद आलस्य की समस्या को दूर करने के लिए कुछ देर स्ट्रेचिंग करें। इससे शरीर का ब्लड सर्कुलेशन नियमित हो जाता है और लेज़ीनेस दूर होने लगती है। टांगों की स्ट्रेच करने से लेकर बाजूओं और कमर की स्ट्रेचिंग आवश्यक है। इससे शारीरिक अंगों में महसूस होने वाली स्टिफनेस से बचा जा सकता है और ऑक्सीज़न का फ्लो भी उचित बना रहता है।

4. दोस्तों के साथ करें वर्कआउट प्लान

अपनी फिटनेस जर्नी को रेगुलर बनाए रखने के लिए वर्कआउट पार्टनर चुनें। इससे फिटनेस रूटीन को पूरा करने के लिए कॉपिटिशन की भावना बढ़ने लगती है, जिससे आलस्य की समस्या से राहत मिलती है और सेल्फ मोटिवेशन की भावना काफी हद तक बढ़ जाती है।

5. सोने और उठने का समय तय करें

बहुत बार नींद पूरी ना होना भी लेज़ीनेस को बढ़ा देता है। ऐसे में वर्कआउट से पहले आलस्य को दूर करने के लिए रोज़ाना एक नियमित समय पर सोएं और उठें। इससे न केवल स्वास्थ्य संबधी समस्याओं से बचा जा सकता है बल्कि नींद की गुणवत्ता भी बढ़ने लगती है और शरीर एक्टिव बना रहता है। खुद को वर्कआउट के लिए तैयार करने से पहले 06 से 08 घंटे की नींद रोज़ाना लें और समय से उठें।

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Government's alert on the havoc of heat

गर्मी का कहर दिनों दिन बढ़ रहा है और इसी वजह से दिल्ली का तापमान 48 डिग्री तक जा पहुंचा है। यहां कई इलाकों में हद से ज्यादा गर्मी बढ़ने से लू के कारण रेड अलर्ट घोषित किया गया है। चिलचिलाती गर्मी जहां निर्जलीकरण का कारण बनती है। वहीं, बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में तेज़ धूप और गर्मी के कारण सिरदर्द और डायरिया का जोखिम बढ़ रहा है। जानते हैं हीट एग्जॉर्शन के नुकसान और इससे बचने के उपाय।

सेहत के लिए नुकसानदेह है गर्मी का बढ़ना

अत्याधिक गर्मी के संपर्क में रहने से शरीर में हीट स्ट्रोक का खतरा बना रहता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक गर्मी का प्रभाव बढ़ने से पैरों में क्रैंप्स, चक्कर आना, सिरदर्द और डिज़िनेस बढ़ने लगती है। इंटरनल मेडिसिन एक्सपर्ट के मुताबिक हीट स्ट्रोक के कारण अक्सर बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी को थकान महसूस होना, अत्यधिक पसीना और हीट क्रैप्स का सामना करना पड़ता है।

इस बारे में फिजीशियन बताती हैं कि तापमान बढ़ने के चलते शरीर का थर्मोरेग्यूलेशन असंतुलित होने लगता है। जिससे हीटस्ट्रोक की समस्या का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में गर्भवती महिलाओं, हृदय रोगियों, बच्चों और बुजुर्गों को इस समस्या से बचने के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।

हीट एग्जॉर्शन से बचने के लिए शरीर में इलेक्‍ट्रोलाइटस की मात्रा को बनाए रखना ज़रूरी है। इससे शरीर हाइड्रेट रहता है।

जानते हैं हीट स्ट्रोक से बचने के कुछ खास उपाय

1. सिर को अच्छे से ढकें

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक धूप के संपर्क में आने से सिर, आंखों, स्किन, बालों और होठों पर बुरा असर नज़र आने लगता है। ऐसे में तेज़ गर्मी से बचने के लिए स्कार्फ, कैप, हैट और छाते का प्रयोग करें। अलावा इसके आंखों को प्रोटेक्ट करने के लिए काला चश्मा ज़रूर पहनें। साथ ही दोपहर के समय बाहर निकलने से भी बचना चाहिए।

2. बाहरी एक्टीविटी से बचें

Government's alert on the havoc of heat

लू से शरीर को बचाने के लिए आउटडोर खेलों से बचें। इससे शरीर में निर्जलीकरण का जोखिम कम हो जाता है। लगातार बढ़ते तापमान को देखते हुए इनडेर खेलों में हिस्सा लें और शरीर को ठंडा रखने की कोशिश करें। अन्यथा थकान, चक्कर आने और बेहोशी का सामना करना पड़ सकता है।

3. ठंडे शरबत का सेवन करें

आहार में नींबू पानी, नारियल पानी, बेल का शरबत और सत्तू जैसे नेचुरल ड्रिंक्स को अपने रूटीन में शामिल करें। इससे शरीर में इलेक्‍ट्रोलाइटस का नियमित स्तर बना रहता है। इसके अलावा मौसमी फलों और सब्जियों का सेवन करनें इससे डाइजेशन बूसट करने में मदद मिलती है।

4. बाहर का खाना खाने से करें परहेज़

फ्रेस और घर का पका खाना खाने से शरीर नॉज़िया, सिरदर्द डायरिया के खतरे से बचा रहता है। ऐसे में मसालेदार और ऑयली खाना खाने की जगह हल्का खाना खाएं और घर का पका खाना आहार में शामिल करे। इसके अलावा किसी भी मील को स्किप करने से बचें। इससे शरीर में एनर्जी की कमी को सामना करना पड़ता है। साथ ही कमज़ोरी और थकान बढ़ने लगती है।

गर्मी में बुजुर्गों का इस प्रकार से रखें ख्याल

तेज़ धूप में बाहर निकलने से अक्सर बचें। इससे शरीर में थकान बढ़ने लगती है और शरीर का संतुलन खोने लगता है। इससे चक्कर आने की संभावना बनी रहती है।
बासी खाना खाने से बचें और घर का पका ताज़ा और हल्का खाना अपने आहार में शामिल करें।
ज्यादा मात्रा में चाय और कॉफी का सवेन करने से बचें। इससे शरीर में निर्जलीकरण का खतरा बना रहता है।
कमरे का तापमान गर्म न रहने दें। शरीर का ठंडा रखने के लिए एयर कंडीशनर, कूलर और पंखे के सामने बैठें।
हल्के रंगों और ब्रीथएबल फ्रब्रिक यानि कॉटन के कपड़े पहनें। इससे शरीर गर्मी के प्रकोप से दूर रहता है।

बच्चों का गर्मी में ऐसे रखें ख्याल

  • धूप में निकलने से बचें। इससे बच्चों में डिहाइड्रेशन का खतरा बना रहता है। घर से बाहर निकलने से पहने पानी की बोतल अपने साथ रखें।
  • गर्मी में लगातार खेलने से बच्चो में थकान बढ़ने लगती है। ऐसे में दिन में कुछ देर उनके आराम के लिए समय निकालें। इससे बच्चे के शरीर में एनर्जी बनी रहती है।
  • शाम के समय आउटडोर एक्टीविटीज़ के लिए जाएं। उस समय तापमान कम होने लगता है, जिससे शरीर में लू का खतरा कम हो जाता है।
  • प्रोसेस्ड फूड और शुगरी पेय पदार्थों का सेवन करने से बचें। इसकी जगह प्राकृतिक पेय पदार्थ पीएं और हेल्दी मील लें।

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Prepare yourself before becoming a mother

Pregnancy: अगर आप प्रेग्रेंट हैं और बार-बार उल्टियां आ रही है? आपके वजन में भी कमी आ रही है? हो सकता है कि आप मॉर्निंग सिकनेस की शिकार हैं। अब आपके दिमाग में यह सवाल लाज़मी है कि आपको तो यह समस्या दिन के किसी भी पहर में हो जाती है। तो क्या ऐसा होना मुमकिन है। यह समस्या किसी भी वक्त आपकी परेशानी का सबब बन सकती है।यहां सवाल है पैदा होता है कि भला यह समस्या होती कब है? इसे लेकर डॉक्टर का कहना है कि प्रेग्रेनेंसी के दौरान एक महिला के बॉडी में हार्मोन का बदलाव या असंतुलन होना आम बात है।

खासतौर पर एस्ट्रोजन हार्मोन का बढ़ना, जिसका नतीजा हो सकती है मॉर्निंग सिकनेस। यह समस्या 16 से 20 हफ्तों में खत्म हो जाती है। अध्ययन बताते हैं कि लगभग 75 फीसदी गर्भवती महिलाएं इससे जूझती हैं। यह समस्या तनाव, अधिक काम करने, कुछ खाद्य पदार्थो को खाने आदि के कारण भी हो सकती है। यह समस्या इनके अलावा ब्लड शुगर के कम स्तर के कारण भी हो सकती है। थायरॉइड और लिवर से जुड़ी बीमारियां भी इसका कारण बन सकती हैं। लिहाजा, बेहतर होगा कि आप अपनी इस समस्या का कारण जानें और उसके हिसाब से इससे निपटने की रणनीति तय करें। जरुरत होने पर मेडिकल परामर्श लें।

क्या है लक्ष्ण

सबसे पहले तो यह समझ लेना होगा कि आखिर है क्या मॉर्निंग सिकनेस? दिन में कई बार उल्टी होना, शरीर में पानी की कमी होना (जिसका अंदाजा पेशाब के रंग से लगता है), खड़े होने पर चक्कर आना, वजन कम होना, किसी तरह की खास महक, खाने-पीने की चीजों के स्वाद के प्रति संवेदनशील हो जाना और उसके कारण उल्टी होना, बुखार, बार-बार सिर दर्द, धड़कन का तेज होना आदि मॉर्निंग सिकनेस के लक्षण हैं।

इन बातों का रखें ध्यान

If you are troubled by vomiting during pregnancy then don't panic

कुछ बातों का ख्याल रखकर मॉर्निंग सिकनेस को काफी हद तक नियंत्रित रखा जा सकता है। इस बाबत आहार सलाहाकार के मुताबिक रात के खाने और सुबह के नाश्ते के बीच का अंतराल लंबा हो जाता है। ऐसे में यह समस्या और बढ़ सकती है। लिहाजा, इस बात का ख्याल रखें। इसके लिए आपको अपने रात के खाने को देर से करने की जरूरत नहीं है बल्कि आप उसे जितना जल्दी और हल्का लेंगी, उतना ही अच्छा होगा। मुमकिन हो तो सोने के कुछ देर पहले दूध को अपनी खुराक में जगह दें। उसमें आप पिसे हुए मेवे भी मिला सकती हैं। सुबह उठते ही काम में जुटने से बचें।

डॉक्टर के अनुसार समस्या के दौरान खुद को समझें यानी आपको किन चीजों से परेशानी हो रही है, उस पर जरूर गौर करें। साथ ही इस सोच से दूर रहे कि आपको दो लोगों के हिस्से की खुराक लेनी है। अपने पोषण में बढ़ोतरी करें खुराक में नहीं। ज्यादा खाना भी शरीर में भारीपन और थकान का कारण बन सकता है। नीबू पानी का सेवन करें। नारियल पानी पोटैशियम का अच्छा स्रोत है। इसे भी खुराक में शामिल करें। एकमुश्त खाने की जगह आपको 2-2 घंटे के अंतराल में कम-कम मात्रा में कुछ-न-कुछ खाना चाहिए। ये छोटे-छोटे ब्रेक न सिर्फ आपको जलन से बचाएंगे बल्कि गैस से भी निजात मिलेगी।

भारी खाने के बाद 30 मिनट तक बलबलगम चबाना आपके पाचन को सुधारने में सहायक रहता है। इससे लार ग्रंथियां उत्तेजित होती हैं और लार अधिक बनती है, जो कि पेट के एसिड कम करने का काम करता है। अदरक का सेवन करें। यह शुगर स्तर को भी नियंत्रित रखेगी। अदरक सुबह की थकान से भी निजात देती है। हल्दी जलन कम करने में तो कारगर है ही, साथ ही यह दर्द कम करती है। यह ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करती है। वहीं, कालीमिर्च में यह क्रोमियम सर्वोत्तम श्रोत है। यह ब्लड शुगर को ठीक रखती है। इसे रोज 30 एमसीजी खाना चाहिए। इलाइची खाने से आपका जी नहीं मिचलाएगा।

कब होती है समस्या?

आमतौर पर महिलाओं का मॉर्निंग सिकनेस की यह समस्या गर्भावस्था के दौरान हो सकती है। अलावा इसके यह समय शरीर में ब्लड शुगर के स्तर में कमी आने पर भी होती है। थायरॉइड और लिवर से जुड़ी बीमारियां भी मॉर्निंग सिकनेस की वजह बन सकती हैं। समस्या होने पर अपने डॉक्टर से राय जरूर लें।

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can have a negative effect on your health

Magnesium: पूरे शरीर के लिए पोषक तत्व बेहद जरूरी होता है। ये पोषक तत्व विटामिन, मिनरल के रूप में मौजूद होते हैं। मिनरल के रूप में मैग्नीशियम हेल्थ के लिए अहम है। ये हमारे शरीर में दिल-दिमाग और दूसरे अंगों के लिए जरूरी होते हैं। अगर इसकी कमी हो जाती है तो कई तरह के स्वास्थ्य समस्या का सामना करना पड़ सकता है, साथ-साथ शरीर में इसकी मात्रा का इजाफा सही नहीं होता। इसलिए सही मात्रा में मैग्नीशियम का इस्तेमाल सबसे ज्यादा आवश्यक है।

सबसे पहले जाने मैग्नीशियम के बारे में-

जानकारी की कमी के कारण हम मैग्नीशियम के महत्व को समझ नहीं पाते हैं। 07 एसेंशियल मिनरल में से एक है मैग्नीशियम। यह शरीर के फंक्शन में मदद करता है और बेहतर हेल्थ बनाए रखने में अहम रोल निभाता है। मैग्नीशियम की कमी से कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। मैग्नीशियम 300 से ज्यादा एंजाइम की एक्चिविटी में मौजूद होता है। यह हमारे शरीर में बायोलॉजिकल केमिकल एंजाइम्स को संतुलित करने में सहायता करता है।

यहां हैं मैग्नीशियम से पहुंचने वाले फायदे

1. दिल और दिमाग के लिए फायदेमंद

WHO warning: Long working hours increase the risk of heart disease and heart attack

हर्ट मसल्स सहित मैग्नीशियम नर्व और मसल्स फंक्शन को रेगुलेट करने में मदद करता है। मैग्नीशियम हृदय को स्वस्थ बनाये रखने में मदद करता है। यह ब्लड प्रेशर को रेगुलेट करने और कोलेस्ट्रॉल प्रोडक्शन में शामिल होता है।

2. बोन हेल्थ के लिए है खास

स्केलेटल फंक्शन के लिए मैग्नीशियम जरूरी है। यह बोन स्ट्रक्चर (bone structure) और उम्र बढ़ने के साथ बोन डेंसिटी बनाये रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

3. ब्लड शुगर बैलेंस करने में मदद

यह एसिड और प्रोटीन के पाचन को बनाए रखता है और ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखने में मदद करता है।

4. अच्छी नींद में मददगार

good sleep

मैग्नीशियम कुछ न्यूरोट्रांसमीटर की गहराई तक जाकर आरामदेह नींद लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह नर्वस सिस्टम को शांत करता है और ब्रेन को आरामदायक स्थिति में लाने में मदद करता है।

5. स्ट्रेस का प्रबंधन

शरीर मेंस्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल लेवल को कम करने में मदद करता है जिससे कि स्ट्रेस लेवल मेंटेन रहता है।

शरीर को कितनी चाहिए मैग्नीशियम-

शरीर में मैग्नीशियम का उत्पादन नहीं होता है। इसलिए इसे बाहरी तत्वों से मिलना चाहिए। यह या तो खाये जाने वाले भोजन से मिलना चाहिए या सप्लीमेंट से।

  • 19-51 वर्ष की महिलाओं के लिए- 310-320 एलपीजी प्रति दिन
  • 19-51 वर्ष की आयु पुरुषों के लिए – 400-420 एलपीजी प्रति दिन
  • गर्भवती महिलाओं के लिए – 350-360 एलपीजी प्रति दिन
  • 51 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को अपने लिंग के अनुसार हाई सीमा का लक्ष्य रखना चाहिए

मैग्नीशियम लेवल के लिए खाद्य पदार्थ

ऐसे कई खाद्य पदार्थ हैं, जिनहीं भोजन में शामिल करने से ज्यादा मैग्नीशियम लेवल पाया जा सकता है। सबसे अधिक मैग्नीशियम युक्त खाद्य पदार्थ में शामिल हैं:

ब्राज़ील नट्स – 250 मिली ग्राम आधा कप साबुत
पालक – 157 मिली ग्राम
कद्दू के बीज – 150 मिली ग्राम
ब्लैक बीन्स – 120 मिली ग्राम
बादाम – 80 मिली ग्राम
काजू – 72 मिली ग्राम

डार्क चॉकलेट – 64 मिली ग्राम
एवोकाडो – 58 मिली ग्राम
टोफू – 53 मिली ग्राम
सैल्मन – 53 मिली ग्राम
केला – 37 मिली ग्राम
रास्पबेरी/ब्लैकबेरी – 28 मिली ग्राम

ज्यादा मैग्नीशियम लेना है नुकसानदायक

बहुत ज्यादा मैग्नीशियम मतली, दस्त, उल्टी और पेट में ऐंठन की वजह बन सकता है। गंभीर मामलों में यह सांस लेने में परेशानी, तेज़ या अनियमित दिल की धड़कन, ट्रॉमा और कार्डियक अरेस्ट का कारण बन सकता है। याद रखना जरूरी है कि ना सिर्फ मैग्नीशियम की कमी, बल्कि मैग्नीशियम की अधिक मात्रा भी शरीर के लिए हानिकारक है।

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Feeding

Pregnancy: एक अध्ययन के अनुसार शाकाहारी भोजन करने वाली महिलाओं के दूध में मांसाहारी महिलाओं की तुलना में कम कीटनाशक पाए गए। यूपी में पिछले दिनों 111 नवजात बच्चों की मौत हो गई और इन नवजात की मौत की वजह गर्भवती महिलाओं के दूध में पाए जाने वाले कीटनाशक को बताया गया। लखनऊ के क्वीन मैरी अस्पताल के अध्ययन के मुताबिक यह दावा किया गया है कि महाराजगंज में हुई इन मौत के लिए महिलाओं के दूध में पाए जाने वाले कीटनाशक हैं। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि मां के दूध तक कीटनाशक कैसे पहुंचे।

अस्पताल ने इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए कुछ गर्भवती महिलाओं का परीक्षण किया। इस स्टडी में 130 शाकाहारी और मांसाहारी प्रेग्नेंट महिलाओं को शामिल किया गया था। यह शोध डॉक्टरों की एक टीम द्वारा किया गया था। इस शोध को एनवायरमेंटल रिसर्च जनरल में पब्लिश किया गया है। इस रिसर्च में कहा गया है कि शाकाहारी भोजन करने वाली महिलाओं के दूध में मांसाहारी महिलाओं की तुलना में कम कीटनाशक पाए गए पर कीटनाशक दोनों ही महिलाओं में पाए गए।

केमिकल फार्मिंग है कीटनाशक होने की वजह

Breast Feeding

 

अध्ययन के अनुसार मांसाहारी खाने से दूर रहने वाली महिलाओं के स्तन के दूध में कम कीटनाशक पाए गए हैं। शोध में यह भी कहा गया है कि दूध में कीटनाशक होने की वजह केमिकल फार्मिंग है। दरअसल, हरी सब्जियों या तमाम फसलों को उगाने के लिए तरह-तरह के कीटनाशकों और रसायनों का प्रयोग किया जाता है। जानवरों को भी सप्लीमेंट्स और केमिकल्स के इंजेक्शन्स दिए जाते हैं, जिसकी वजह से मांसाहारी भोजन करने वाली महिलाओं के दूध में कीटनाशक उत्पन्न हो जाते हैं।

मांसाहारी भोजन करने वाली महिलाओं के दूध में मौजूद कीटनाशक शाकाहारी महिलाओं की तुलना में तीन गुना ज्यादा थे। इस शोध में कहा गया है कि मां के दूध के जरिए बच्चे में भी कीटनाशक आराम से पहुंच सकते हैं। स्तन के दूध में मौजूद कीटनाशकों ने मासूम शिशुओं को गंभीर नुकसान पहुंचाया, जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई।

बहरहाल, इस अध्ययन से स्पष्ट हो गया है कि प्रेग्नेंसी में ज्यादा से ज्यादा हरी सब्जियों का ही सेवन करना चाहिए ताकि नवजात बच्चों में कीटनाशक मां के दूध के जरिए ना पहुंच सके।