Search
  • Noida, Uttar Pradesh,Email- masakalii.lifestyle@gmail.com
  • Mon - Sat 10.00 - 22.00

Tag Archives: Holika Dahan

Holika Dahan: प्राचीन त्योहारों की यही खूबसूरती है कि इनके पीछे छुपे पौराणिक कथा हमें अक्सर आकर्षित करते हैं. आईये जाने होलिका दहन क्यों मनाते हैं और क्या है इसका इतिहास. होलिका दहन का पर्व हमें संदेश देता है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए हमेशा मौजूद रहते हैं.

होलिका दहन, होली त्योहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि वगैरह नामों से भी जाना जाता है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाई जाती है। होलिका दहन (छोटी होली) के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग खेलने का परंपरा है और अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर और गले मिलकर इस पर्व को मनाया जाता है।

भारत में मनाए जाने वाले बेहतरीन त्योहारों में से एक है होली। दीवाली की तरह ही इस त्योहार को भी अच्छाई की बुराई पर जीत का त्योहार माना जाता है। हिंदुओं के लिए होली का पौराणिक महत्व भी है। इस त्योहार के मद्देनज़र सबसे प्रचलित है प्रहलाद, होलिका और हिरण्यकश्यप की कहानी। पर होली की सिर्फ यही नहीं बल्कि और भी कई कहानियां प्रचलित है। वैष्णव परंपरा मे होली को, होलिका-प्रहलाद की कहानी का प्रतीकात्मक सूत्र मानते हैं।

होलिका दहन का शास्त्रों के अनुसार नियम

Why do we celebrate Holika Dahan

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने ज़रूरी होते हैं-

पहला, उस दिन ‘भद्रा’ न हो। भद्रा का दूसरा नाम विष्टि करण भी है, जो कि 11 करणों में से एक है। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है।

दूसरी बात, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए.

पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा कि उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं जपता, तो वह क्रोधित हो उठा और आखिर में उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुंचा सकती। लेकिन हुआ इसके ठीक विपरीत, होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है। होली का पर्व संदेश देता है कि इसी तरह ईश्वर अपने सभी भक्तों की रक्षा के लिए सदा मौजूद रहते हैं। होली की केवल यही नहीं बल्कि और भी कई कहानियां प्रचलित है।

कामदेव को किया था भस्म 

होली की एक कहानी कामदेव की भी है। पार्वती शिव से विवाह करना चाहती थीं लेकिन तपस्या में लीन शिव का ध्यान उनकी तरफ गया ही नहीं। ऐसे में प्यार के देवता कामदेव आगे आए और उन्होंने शिव पर पुष्प बाण चला दिया। तपस्या भंग होने से शिव को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और उनके क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए। कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति रोने लगीं और शिव से कामदेव को जीवित करने की गुहार लगाई। अगले दिन तक शिव का क्रोध शांत हो चुका था, उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित किया। कामदेव के भस्म होने के दिन होलिका जलाई जाती है और उनके जीवित होने की खुशी में रंगों का त्योहार मनाया जाता है।

महाभारत से जुड़ी कहानी

महाभारत की एक कहानी के अनुसार युधिष्ठर को श्री कृष्ण ने बताया कि एक बार श्री राम के एक पूर्वज रघु, के शासन में एक असुर महिला थी। उसे कोई भी नहीं मार सकता था, क्योंकि वह एक वरदान द्वारा सुरक्षित थी। उसे गली में खेल रहे बच्चों के अलावा किसी से भी डर नहीं था। एक दिन, गुरु वशिष्ठ, ने बताया कि उसे मारा जा सकता है, अगर बच्चे अपने हाथों में लकड़ी के छोटे टुकड़े लेकर, शहर के बाहरी इलाके के पास चले जाएं और सूखी घास के साथ-साथ उनका ढेर लगाकर जला दें। फिर उसके चारों ओर परिक्रमा दें, नृत्य करें, ताली बजाएं, गाना गाएं और नगाड़े बजाएं। फिर ऐसा ही किया गया। इस दिन को एक उत्सव के रूप में मनाया गया, जो बुराई पर एक मासूम मन की जीत का प्रतीक है।

श्रीकृष्ण और पूतना से जुड़ी कहानी

होली का श्रीकृष्ण से गहरा रिश्ता है। जहां इस त्योहार को राधा-कृष्ण के प्रेम के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। वहीं, पौराणिक कथा के अनुसार जब कंस को श्रीकृष्ण के गोकुल में होने का पता चला तो उसने पूतना नामक राक्षसी को गोकुल में जन्म लेने वाले हर बच्चे को मारने के लिए भेजा। पूतना स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराना था। लेकिन कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए। उन्होंने दुग्धपान करते समय ही पूतना का वध कर दिया। कहा जाता है कि तभी से होली पर्व मनाने की मान्यता शुरू हुई।

ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी उल्लेख

विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने उनके साथ जमकर होली खेली थी।

Why is Holika Dahan and Holi worship so special in Hindu tradition?

कभी-कभी आप सोचते होंगे कि जब होलिका (Holika) अपने गलत इरादों के साथ प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठी थी तो फिर हम हर साल फाल्गुन मास में होली की पूजा क्यों करते हैं ?

ऐसा क्या है?

क्यों लोग होली की पूजा और दहन की इतनी तैयारियां करते हैं?

आपके दिमाग में भी कभी ना कभी यह सवाल आया होगा लेकिन परंपरा है यह सोचकर आप ने भी इसकी पूजा और दहन में सहयोग किया होगा ।

अच्छी बात है कि हमें हमारे रीति-रिवाज, संस्कृति को बनाए रखना चाहिए ताकि हमारे पूर्वजों ने जो हमें विरासत में दिया वह हम अपनी आने वाली पीढ़ी को दे पाए और रही बात इस सवाल की तो चलिए इसका जवाब मैं आपको दे देती हूं।

तो आइए जानते हैं कि हिंदुओं के लिए होली पूजन और होलिका दहन इतना खास क्यों है? जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हिरण्यकश्यप एक बहुत अहंकारी राजा था जो खुद को ईश्वर समझता था और वह अपनी प्रजा को भी कहता था कि वह भगवान को त्याग कर सिर्फ उसकी पूजा किया करें क्योंकि वही उनके लिए भगवान है लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। हिरण्यकश्यप का बेटा प्रह्लाद विष्णु भक्त था तथा वह अपने पिता द्वारा कहे वचनों को सिरे से नकारता था। जो हिरण्यकश्यप को पसंद नहीं था। हिरण्यकश्यप की एक बहन थी जिसको एक शॉल वरदान के रूप में मिला था जिसको अगर वो ओढ़ ले तो अग्नि उसको नुकसान नहीं पहुंचा सकती । इसलिए उन्होंने योजना बनाई की होलिका प्रह्लाद को अग्नि में लेकर बैठेगी। होलिका के पास एक शॉल थी जिसको ओढ़ने पर आग से उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचता था। लेकिन जैसे ही वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठी तो वह शॉल उड़कर प्रह्लाद पर जा गिरा जिससे प्रह्लाद तो बच गया लेकिन होलिका जल गई।

यही कारण है कि होली पूजन और दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस साल होलिका पूजन और दहन 17 मार्च, 2022 को किया गया। इसके एक दिन बाद रंगों का त्योहार मनाया जाता है। यह हिंदुओं का एक खास त्यौहार है जिसमें रंगों का प्रयोग कर हम एक दूसरे के प्रति भाईचारे और सद्भावना को प्रदर्शित करते हैं।

होली की पूजा कैसे करें :

होलिका की पूजा करते समय पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठना चाहिए।
एक लोटा जल, रोली, चावल, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, गुलाल आदि का प्रयोग कर विधि पूर्वक पूजा करनी चाहिए।
होलिका दहन की विधि : होलिका दहन के लिए लकड़ियां इकट्ठी की जाती हैं। लकड़ियों के आसपास कंडे और उपले रखे जाते हैं। लोग दहन के समय गेहूं की बालियों को होली की आंच में पकाते हैं तथा उन्हें घर लाकर प्रसाद के रूप में खाते हैं।

होलिका के दहन के पश्चात उसकी राख को घर लाने का प्रचलन भी है ऐसी मान्यता है कि इससे साल भर घर की बरकत बनी रहती है और अगर घर में किसी को लंबी बीमारी का सामना करना पड़ रहा है तो आरोग्य रहने की इच्छा से राख का तिलक नित्य उस व्यक्ति को लगाएं, जल्दी असर देखने को मिलेगा।