आज यही पड़ोस के घर में रोने की तेज आवाजों ने मेरी नींद को तोड़ने में एक क्षण भी नहीं लगाया। लगातार बस यही सुनने को मिल रहा था, कि लड़की हुई है, इससे अच्छा तो होती ही ना।
लड़की को पैदा करने के जुर्म में उसकी मां को भी लगातार गालियां सुनने को मिल रही थी, बार बार उसको ये अहसास दिलाया जा रहा था कि उसने कितना भयानक जुर्म किया है। बार बार उसे ताने देकर बताया जा रहा था कि अगर वो लड़की की जगह लड़का पैदा करती तो आज मातम की जगह खुशियां मनाई जाती। उसे पड़ोस वाली औरतें भी ये बता रही थी कि उसमें लड़का पैदा करने कि क्षमता नहीं है, इसलिए लड़की पैदा करने के बाद वो किसी से भी ये उम्मीद न रखे कि सब लोग उसे इज्ज़त बक्शेंगें।
लेकिन इन सब के बीच वो नन्हीं सी परी अपनी मोटी-मोटी आंखो को खोले बहुत आस से एक एक करके सबको देख रही थी कि गलती से कोई मुस्करा कर उसे गोदी में उठा ले। लेकिन बच्ची है, नादान है, जानती ही नहीं कि ये सारे बेशर्म लोग उसके आने से खुश नहीं बल्कि उनपर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो। कोई उसे गोदी लेना तो दूर उसको देखना तक नहीं चाहता।
वाकई ये सच कितना कड़वा है ना कि बहु सब को सर्वगुण संपन्न चाहिए लेकिन आज भी समाज में ऐसे लोग है जो बेटी को पैदा करना ही नहीं चाहते, उसे आज भी बोझ मानते है, आज भी नानी दादी सिर्फ पोते की चाह रखती है। आज भी लड़की होने पर कभी उसे कचरे के डिब्बे में फेंक दिया जाता है या मार दिया जाता है।
ये समाज आज भी पहले की तरह ही अनपढ़ रवैया वाला समाज है, जो लड़कों के लिए अलग है और लड़कियों के लिए अलग।
आज की चर्चा उन लड़कियों के लिए है जिनके लिए आगे बढ़ना तो दूर…आगे बढ़ने के सपने देखना भी गुनाह है ।
बहुत दुख हो रहा है ये कहते हुए भी की आज भी लोग लड़को और लड़कियों में भेद करते है…
लाख बंदिश है जो उन्हें ये समझने ही नहीं देती कि उन्हें भी हक है अपनी ज़िन्दगी अपने तरीके से जीने का..बिल्कुल वैसे ही जैसे उनके भाई जीते है।
पता नहीं लोग क्यों ये नहीं समझना चाहते कि जब भगवान ने कोई फ़र्क नहीं किया तो वो क्यों इस पाप के भागीदार बन रहे है…जीने दो इन परियों को भी अपने तरीके से…. उड़ान भरने दो इन्हे भी अपनी गति से…।
और यकीन मनिए….एक दिन वो भी आएगा जब आपको इनपर नाज़ होगा … क्योंकि ये उस मुकाम पर होंगी जहां आपने कभी ख्वाहिश भी नहीं की होगी…
गौरतलब है कि उस वक़्त आपको यकीन नहीं होगा कि ये आपकी वहीं परियां है…. जिनके हंसने पर भी आपने पाबंदियां लगाई थी।।
चलिए जिसे समझना होगा वो इतने में समझ जाएगा… बाकी जिसको ये समझ नहीं आया उनके लिए कुछ और है मेरे पास….
मैं क्या जानू आज़ादी को, कैसे खुद को लड़का मानू,
मिले ही नहीं जो पंख मुझे, कैसे फिर मैं उड़ना जानूं ।
कैसे भुला दू इस हकीकत को, कैसे सच को सपना मानू,
जब आए अपने आंसू देने को, कैसे फ़िर मैं रिश्ते जानूं ।
सुकून दिया जिन फूलों में मुझे, कैसे उनको काटें मानू
हर पल जब खाई ठोकरें मैंने,कैसे फिर मैं उठना जानूं ।
दिखाए मैंने जो सपने दिल को, कैसे उनको टूटा मानू,
मिला ही नहीं कभी दरिया मुझे, कैसे फिर मैं प्यास को जानूं ।
भिगोया ही नहीं जिसने मुझे, कैसे उसको रिमझिम मानू,
जब मिली ही नहीं मूर्त मुझे, कैसे फिर मैं पूजा जानूं।
हर पल रुलाया जिसने मुझे, कैसे उसको अपना मानू
मिली ही नहीं कभी खुशी इस दिल को, कैसे फिर मैं हंसना जानूं ।
पाया है हर पल चार दीवारों मैं खुद को, कैसे इसको दुनिया मानू
मिला ही नहीं कभी जीवन मुझे तो, कैसे फिर मैं मौत को जानूं ।
मैं क्या जानूं आज़ादी को, कैसे खुद को लड़का मानू,
मिले ही नहीं कभी पंख मुझे तो कैसे फिर मैं उड़ना जानूं।।
फाइल फोटो- गूगल