कभी कभी यूंही बैठे-बैठे हम याद का हाथ थामे बहुत पीछे चले जाते हैं… जहां ज़िंदगी बहुत हसीन हुआ करती थी।
आज यूंही वो समय याद आ गया जब हम उस दौर को जिया करते थे, जिसमें लोग एक दूसरे की मदद के लिए हर समय तैयार रहते थे, एक का दर्द दूसरे के आसूं निकलवाने के लिए काफी होता था, एक की खुशी सब को नचाने के लिए काफी होती थी, एक का हक कभी दूसरा लेने की कोशिश नहीं करता था। वो ढेर सारा अपनापन, वो एक साथ चलने वाले संस्कार, वो किसी को नीचा ना दिखाने वाली सोच… कितने खुशनुमा सफ़र में थे हम..! मैं जानती हूं और आप सब लोग भी जानते है कि परिवर्तन संसार का नियम है। कुछ समय बाद हालात बदल ही जाते हैं लेकिन एक सच ये भी है कि कुछ परिवर्तन हम स्वीकार नहीं कर पाते। पर कुछ भी हमारे लिए नहीं रुकता और वो दौर भी बीत गया जहां ‘मासूमियत’ सिर्फ ‘मासूमियत’ हुआ करती थी। कभी कभी लगता है कि हम कहां से कहां आ गए, ऐसा क्या पाना था हमें जो वो मासूमियत भरा दौर हमें पीछे छोड़ना पड़ा और आज जब हम सब पीछे छोड़ ही आए है तो फिर क्यों दुबारा उसी दौर में मन बार-बार जाना चाहता है।
दरअसल, दिल तो आज भी बच्चा है जिसे सिर्फ अपनापन, प्यार, ढेर सारे अपनापन वाले रिश्ते और उस दौर वाली मासूमियत ही समझ आती है.. आज इस दौर को ये दिल समझ ही नही पाता.. जिसमें सिर्फ और सिर्फ मतलब छुपा है। ..तो चलिए फिर कुछ पंक्तियां के माध्यम से जान लेते है कि ये दिल क्यों बार बार उस दौर को याद करता है और इस दौर से निकल जाना चाहता है-
आजकल कौन किसको बेवजह गले लगाता है,
मतलब निकल जाए तो हर शख्स बदल जाता है,
तुम कौन से भ्रम में हो जनाब,
हम उस दौर में जी रहे है, जहां “मासूमियत” को बेवकूफी कहा जाता है।
अपनी बेपरवाहियों को बड़ी आसानी से मजबूरियों का नाम दे दिया जाता है,
किसी के कुछ हसीन किस्सों को बेवजह ही कहानियों में बदल दिया जाता है,
तुम तो चीज़ ही क्या हो जनाब, यहां दुआएं पूरी न होने पर भगवान तक को बदल दिया जाता है,
यकीनन, हम उस दौर में जी रहे है, जहां “मासूमियत” को बेवकूफी कहा जाता है।
किसी से कुछ लेकर उसे कहां वापिस लौटाया जाता है,
प्यार की आड़ में यहां दिलो से खिलवाड़ किया जाता है,
किसी की आपबितियों को यहां खामोशियों के हवाले कर दिया जाता है,
यकीनन, हम उस दौर में जी रहे है, जहां “मासूमियत” को बेवकूफी कहा जाता है।
किसी की मेहरबानियो को, चालाकियों से नोच लिया जाता है,
झूठों की इस दुनियां में, सच बेचारा कहीं दब कर रह जाता है,
उड़कर कोई चाहे अगर, उस नीले आसमान को छूना, तो उसके अपनों द्वारा ही उसके पंखों को कतरा जाता है,
यकीनन, हम उस दौर में जी रहे है, जहां “मासूमियत” को बेवकूफी कहा जाता है।
कोई छूले आसमान अपनी जिद से तो, उसको बड़ी तेज़ी से नीचे खींच लिया जाता है,
फिर उसकी रात दिन की मेहनत को, क़िस्मत के हवाले कर दिया जाता है,
दोबारा कभी वो उठ खड़ा ना हो, इसके लिए उसे सबकी नज़रों से गिराया जाता है,
तुम कौन से भ्रम में हो जनाब,
यकीनन, हम उस दौर में जी रहे है, जहां मासूमियत को बेवकूफी कहा जाता है।